विशिष्ट ग़ज़लकार :: मधुवेश

ग़ज़ल

  • मधुवेश

हो रहा था मैं बड़ा माँ का चिमटना देखता
इक अदद घर के लिए दिन-रात खटना देखता

हाथ मेरे और भी ज्यादा जला देता तवा
मैं नहीं माँ का अगर रोटी पलटना देखता

नक़्श पाँवों के बनाकर मैं लिपाई पर कभी
हाथ में झाडू लिये माँ का डपटना देखता

खींच लेती गंध धनिए की मुझे माँ की तरफ
एक बटने का जहाँ सिल पर घिसटना देखता

हाल भाई का सुने तो रो पड़े छोटी बहन
और मैं चुपचाप माँ की राम-रटना देखता

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