विशिष्ट ग़ज़लकार :: विकास

ग़ज़ल

  • विकास

जिस घर में माँ का साया है
कौन उसे दुख दे पाया है

माँ के चरण कमल के नीचे
दुनिया की स्नेहहिल छाया है

चाहे जितनी पीड़ा सह ले
माँ ने कब यह बतलाया है

संतानों की हर ग़लती को
माँ ने हंसकर झुठलाया है

इस कलयुग के कुछ बेटों ने
माँ पर ज़ुल्म बहुत ढाया है

विकास

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