ख़ास कलम :: मधुकर वनमाली

बरसाणे की बावरी
बरसाणे की बावरी,राधा सुंदर नाम।
धवल सरीखी दूध जो,मीत मिला घनश्याम।।
वनमाली यह सोचते,अलग हुआ जो रंग।
हंस मिले ज्यों काग से, नहीं जँचेगा संग।।
मैया जसुमति ने कहा,सुन रे भोले बाल।
होली अबकी आ रही,कर देना सब लाल।।
बड़े प्रेम से भेजकर,राधा को संदेश।
बुलावाया घनश्याम ने, मतवालों के देश।।
मधुकर में फागुन हुआ,बरसे रंग अबीर।
भीगी सबकी गात है,रंगीले सब चीर।।
छली बड़े हैं सांवरे,जतन बुलाया पास।
मन भीतर जो चोर था, हुआ नहीं आभास।।
पिचकारी से रंग दी,गोरी कोरी देह।
राधा ऐसी भीगती,चंदन बरसे मेह।।
तनिक नहीं पर रोष कुछ,हँसती सुता अहीर।
मन जब विह्वल हो गया,नयन बहे थे नीर।।
प्रीत कहां कुछ देखता,कुल वैभव या रंग।
माधव कब से सोचती, होली खेलूं संग।।
ब्रज की होली क्या कहें, मधुकर मचती धूम।
रंग अधर का घोलती,लता विटप को चूम।।
कीचड़ सनती देह में, कहीं चले लठमार।
ग्वाले डरकर भागते,ग्वालिन की सरकार।।
वृंदावन में मच गया, होली है का शोर।
दर्शन राधे कृष्ण का, करते सब कर जोर।।
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परिचय : मधुकर वनमाली, मुजफ्फरपुर (बिहार)

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