विशिष्ट कवि :: मणि मोहन

शाम
शाम ढ़लते ही
अपने घरों की तरफ
लौट गए परिंदे
आज फिर
अपनी परछाईयाँ
गिरा गए
मेरी छत पर ।
बिटिया के लिए
ज़िन्दगी के बीहड़ में
जब कभी हो जाये
दुःख या दुर्दिनो से सामना
तो पीछे हट जाना
हट जाना
तन जाना
प्रत्यंचा की तरह !
परिभाषाएँ
पहले जैसी नहीं रहीं
अब परिभाषाएँ
सरल और सहज
संज्ञा – सर्वनाम की तरह
कि किसी ने पूछा
और झट से बता दी
अब तो हथियारों के साये में
शान से चलती हैं परिभाषाएँ
परिभाषा पूछी
तो गोली चल जायेगी
और गोली के बाबत सवाल किया
तो परिभाषा बता दी जायेगी.
एक सर्द रात
बहुत सर्द थी रात
जब घर लौटा
तो देखा
दरवाज़े पर लटक रहा था
बर्फ़ का ताला
जिसकी चाबी नहीं थी मेरे पास
मैं इंतज़ार करता रहा
बर्फ़ के पिघलने का ….
मातुल
औघड़ शिव के हिस्से में आया
बीहड़ में खिलता यह फूल
शिव की तरह इसे भी एकांत पसन्द है
बिना किसी बाड़ या बागड़ के
खिला हुआ
अपने ही बीहड़ में उन्मत्त
जैसे किसी की प्रतीक्षा नहीं मातुल को …….
वसंत
उसके हाथों छनते – बिनते
राई के कुछ दाने
आख़िर लुढ़क ही जाते हैं
इधर – उधर
और उग आते हैं ….
हर बार
घर के आँगन में
कुछ इस तरह
आ ही जाता है
वसंत ….
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परिचय : मणि मोहन कविता के सशक्त हस्ताक्षंर हैं. इनके कई काव्य और अनुवाद संग्रह प्रकाशित हो चुके हैँ.
 सम्प्रति : शा. स्नातकोत्तर महाविद्यालय , गंज बासौदा ( म.प्र ) में अध्यापन ।
 संपर्क : 185/2  , विजयनगर , सेक्टर – बी, गंज बासौदा ( विदिशा ) म. प्र. 464221
 मोबाइल : +91-9425150346
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