पंखुरी सिन्हा की कविताएं

प्रिया सिंचितप्रिय मुदितरात प्रेमिका
किंचित, प्रिया सिंचित,
है यह फसल सारी,
यह सारी फसाद,
ये निपटाना नहीं,
उलझाना केवल,
ये फिजूल की गाठें बांधना,
डालों, टहनियों में,
ये बना देना एक जीते, जागते पेड़ का बोनसाई,
कि रक्त न पहुंचे पत्तों तक,
कि दम घुटे सब नसों का,
किंचित,
प्रिया सिंचित,
है यह सारी फसाद,
दखल के बुलावे सारे,
सब फसाद की जड़।
किंचित, प्रिया सिंचित।
प्रिय मुदित,
प्रिय चकित,
प्रिय अचंभित क्यों नहीं?
प्रिय विस्मित क्यों नहीं?
अनूठा है आलाप संध्या सुंदरी का,
दिवंगत मेरी आत्मा,
अपूर्व है संध्या का अनुष्ठान,
अद्भुत कुछ प्रयोजन,
अलौकिक है बात,
दिग्भ्रमित मेरे उत्तर, सन्न प्रत्युत्तर,
सन्न है हवा,
चकित दिशायें,
अचंभित सब वृक्ष,
मौन सब पत्ते,
डोलता है पाटल,
प्रिय अचंभित क्यों नहीं?

आदेश है संध्या,
निर्देश है संध्या,
दिखावा है मधुर,
षड़यंत्र मिठास,
बुझी हुई है रोशनी,
विष बुझे हैं नख दन्त,
देय दीप्यमान अँधेरा,
प्रमाण अँधेरा,
देय दीप्यमान युद्ध का सूर्य,
प्रिय विस्मित क्यों नहीं?

अवरोध है प्रेरणा यह,
व्यवधान प्रोत्साहन ऐसा,
आघात यह वास्तव में,
पीछे से, जबकि आये सामने से,
ढिठाई ऐसी कि ऐन सामने खड़े होकर करे षड़यंत्र,
प्रिय चकित क्यों नहीं?
रात खाली है, रात अपनी है, रात प्रेमिका।
रात बागी है, कातिल भी,
बोझिल, सपनों से।
जैसे फूलों से लदी डाली,
करीब हो कहीं।
रात को सपने देखा किए,
रात, सपने चुगने का,
देखने का वक़्त,
चुनने का,
गुनगुनाने का उन्हें,
सस्वर, दुबारा,
वही जो एक अरसे से देखते आ रहे,
और जिन्हें नकारा करता रहा कोई,
हर कोई, हर संभव कोई,
हर कोई, हर संभव कोई,
कैसे सजीं थीं आलमारियों में किताबें सारी,
इस उस रंग के जिल्द की,
हार्डकवर,
आधी नींद से उठकर,
खोलकर बीच का कोई पन्ना,
देखना कि याद हो,
सफा सारा,
सबक,
कि किताब में हो तुम,
कि उस अलबेली भाषा के अक्षर,
अब तुम्हारे हैं,
तुम्हारी है वह अलबेली कथा,
रात फिर भी खाली है,
जैसे तोड़ लिए हों,
डाली से फूल किसी ने,
रात प्रेमिका।
दिन आवारानीली, नीली सर्दी मेंउदासी
दिन आवारा,
दिन फक्कड़,
बिंदास,
दिन बंजारे,
दिन इकहरे,
दोहरे,
दिन अकेले,
दुकेले,
दिन साथ, साथ,
दिन पास, पास,
दिन करीब कहीं,
नज़दीक ही,
दिन पकड़ से दूर,
दिन दूर दूर,
दिन दूरी,
दिन डाल डाल,
दिन पात पात,
दिन बात बात,
दिन सुरीले,
दिन कँटीले,
दिन खामोश,
दिन ख़ामोशी,
दिन धुनों से भटकाव,
दिन बेज़ार,
दिन बेकार,
दिन बेरोजगार,
दिन बेगाने,
दिन भूखे,
दिन अखबारों के इश्तहार,
दिन खूबसूरत बत्तियों वाले कैफेज़ के आगे,
सजे मुलायम बिस्किट्स के कांच के शेल्फ,
दिन कुछ भी न खरीद पाने की नियति,
दिन अंतहीन सड़कें,
दिन सड़क बंद,
दिन रास्ता जाम,
दिन अदृश्य बाधाएं,
दिन कहीं और का युद्ध,
दिन किसी और की बातें,
दिन बहलाव,
दिन व्यतीत,
दिन उम्र,
दिन अगवा,
दिन क्षणिक,
दिन शाश्वत।
नीले, नीले से होठों वाली वो लड़की,
नीले हो आये होठों वाली वो लड़की,
नीली, नीली सी सर्दी में चलती हुई बाहर,
बर्फीली सी सर्दी में चलती हुई बाहर,
कंटीली सर्दी में चलती हुई बाहर,
करती लोगों से सवाल, हकों के बारे में,
और जीती हुई एक बिल्कुल बेमज़ा ज़िन्दगी,
बेज़ार, बेकार, बर्बाद, बेजान,
गीले, गीले, बालों पर पहनती हुई,
टोपी भी नीली, नीली अपनी,
अपने गीले, गीले बालों से,
भिगोती कंधे उसके,
किसी पहाड़ी कन्दरा में चलती किसी बस पर,
फंतासी या कि सच कोई,
नीले हो आये होठों से,
आरे, तिरछे, मुस्कुराकर करती सवाल तमाम,
थामती उसे दोनों हाथों से,
जैसे अभी गिर पड़ेगी,
थामती उसे पुरज़ोर,
कभी तलाशती उसे,
अपने सारे सामानों में,
इर्द, गिर्द उसके,
भूखी, भूखी आँखों से, देखती हुई,
सामने वाली औरत को ट्रेन में,
घूँट भरते, डोनट के साथ, कॉफ़ी की,
एक बहुत बड़ी, खुशबूदार प्याली से,
भूखी, भूखी, नज़रों से देखती,
सूप के साथ, ब्रेड और मक्खन खाती, उस लड़की को,
लॉ ऑफिस की शाम की क्लिनिक में,
लीगल एड के दफ्तर में,
अजनबी राज्य के गरीबों के लॉ ऑफिस में,
बहुत भूखी आँखों से पसारते हुए, मक्खन को ब्रेड पर,
पिघलते हुए मक्खन को ब्रेड पर,
ये सोचते हुए कि वो उसके साथ सोकर उठती,
तो कैसा होता, गर्म ब्रेड के साथ,
मक्खन खाना ।
एक बीते हुए प्यार की आवाज़ थी,
उसकी सब बातों में अब,
या रीते हुए उम्मीदों की,
खाली गए सालों की,
जब कोई नहीं उखाड़ रहा था,
नाखून उसके,
बस खाली, बंजर छोड़ गयी थी,
सरकार उसके खेत,
न खाद, न पानी, न बीज, न अनाज,
न कोई बारिश, न बादल,
रूखे हो गए थे, होंठ उसके,
पपड़ियाँ पड़ गयीं थीं,
सूख गई थीं उगलियाँ,
उनकी गाठों की चमड़ियों पर,
झुर्रियां थीं,
बेडौल हो गयी थी,
काया उसकी,
कोई नहीं उखाड़ रहा था,
नाखून उसके,
वह बस चीखती जा रही थी,
आंसुयों के साथ।

 

परिचय – पत्र-पत्रिकाअो के अलावा कई काव्य संग्रह प्रकाशित. निरंतर लेखन. सामयिक लेखन में विशेष पहचान.
संपर्क : A-204, Prakriti Apartments, Sector 6, Plot no 26, Dwarka, New Delhi 110075
मो. 9968186375, ईमेल—-nilirag18@gmail.com

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