लड़ते-लड़ते भी हारे नहीं युद्ध बिन भी गुजारे नहीं मैँने चख कर बताए हैं, यार, आपके अश्रु खारे नहीं ! झील के मन में कुछ रोज से चांद, सूरज, सितारे नहीं ये गरीबों का आक्रोश है, ये किसी दल के नारे नहीं ! आप तन तक ही समित रहे, आप मन में पधारे नहीं अब तो मुश्किल से दो-चार हैं, दोस्त भी ढेर सारे नहीं पूरी उसकी दुआ हो गई, शब्द जिसने उचारे नहीं | हम अनुभवों के कई रत्न ले के घर लौटे जिन्हें सिखाने गए, उनसे सीख कर लौटे ! ये बात और, वो लौटे हैं तीस साल के बाद, प्रवासी यादों के मेहमान रात भर लौटे लहर ने वादा किया था कि फिर छुएगी जरूर है तट प्रतीक्षा में कब से कि वो लहर लौटे लड़ाके, युद्ध की धरती से लौट आए हैं, हैं कम ही लोग, जो रण-भूमि से निडर लौटे ! जो अपने स्वप्न निराकार छोड़ आए थे, उन्हीें के स्वप्न, हमेशा इधर-उधर लौटे छुड़ा के जान, अधिक उम्र के समंदर से, मैं सोचता हूं-नदी काश अपने घर लौटे ! शिखर को छू के, उतरना पड़ा जमीन की ओर, कम ही लोग, उतर कर, जो शीर्ष पर लौटे | न कोई आम लगे और न कोई खास लगे उदास होते ही, दुनिया बहुत उदास लगे सुखों के पेड़ तो उगते हैं पर्वतों पे कहीं, दुखों के पेड़ हमारे ही घर के पास लगे बुझाई प्यास नदी ने असंख्य लोगों की, बुझाए कौन भला, जब नदी को प्यास लगे ? नई सदी में हुआ प्यार देह तक सीमित, है कम ही लोग जो 'मजनूं' या 'देवदास' लगे ! शहर में दंगे या विस्फोट की खबर सुनकर, शहर के लोग अचानक ही बदहवास लगे हमेशा भाग्य को रोने से कुछ नहीं होगा, मुझे तो उसके सफलता से कम प्रयास लगे लगेगा वक्त अभी उसका मन बदलने में नवीन रुत को भी आने में चार मास लगे ! |
ठहरे पानी में पत्थर न फेंका कभी इस तरह भी, न 'बहुमत' ने सोचा कभी शर्म है या कोई हीनता-बोध है, उसने नजरें उठा कर न देखा कभी इसलिए उनको ईश्वर पे विश्वास है, कर न पाए स्वयं पर भरोसा कभी एक दिन, अपने घर से निकलने के बाद, लौट पाई न घर कोई नदिया कभी कुछ विषय सबके जीवन में वर्जित मिले, खुल के होती नहीं जिन पे चर्चा कभी कितने बरसों से आंखों में छाया है जो, चाह कर भी, वो बादल न बरसा कभी शांति के साथ जीने की, संसार में, मिल न पाई हमें नागरिकता कभी | वो जो मुश्किल में डाल जाता है हां, वही हल निकाल जाता है साल में एक बार बेटा भी, खुद मुझे देख-भाल जाता है उसका हंसना तो है बड़ी पीड़ा, मुस्कुराना भी साल जाता है अपना अधिकार मान कर मुझ पर, रोज अस्मत खंगाल जाता है ! जब भी ज्वालामुखी फटा कोई, पूरा गुस्सा निकाल जाता है उनका अनुरोध मुस्कुराते हुए, वो मुहब्बत से टाल जाता है ! | सुविधा से बढ़ गई है अनायास शान भी छत पर खड़ा हुआ है निजी वायुयान भी कुछ बेचने चले हैं तो फिर मुस्कुराइए, मुस्कान के बिना नहीं चलती दुकान भी बिन मांगे सीख की तो रही है परंपरा, कुछ लोग बांटते हैं बिना मांगे ज्ञान भी राजा है सिर्फ एक, मगर, रानियां हजार, नदियों का रह न पाया समंदर को ध्यान भी ! जो लोग जलती आग में घी डालते रहे, है उनके पास लोग, जो दे देंगे ज्ञान भी चादर थी एक के लिए, उसमें घुसे हैं तीन, चादर की हो रही है बहुत खींच-तान भी जब से चलन में आई है बाजार पर विजय, निकला न दिग्विजय को सिकंदर महान भी ! |
जो शिखर पर दिखाई दिए सबको सुंदर दिखाई दिए घर के अंदर कई बार हम, हद से बाहर दिखाई दिए कुछ विरल दृश्य आकाश के, सिर्फ उड़ कर दिखाई दिए सत्य का पक्ष लेने के बाद, लोग कायर दिखाई दिए उस परीक्षा में हर प्रश्न के, चार उत्तर दिखाई दिए ! लोग पाला बदलने लगे, ज्यों ही अवसर दिखाई दिए जब भी अन्तस में झांका गया, सैकड़ों डर दिखाई दिए | पुराने तीर और तलवार बदले सियासत ने भी अब हथियार बदले हमेशा स्वार्थ के अनुरूप उसने, 'अमीवा' की तरह आकार बदले नजर आने लगी है पेड खबरें, चुनावी दौर में अखबार बदले ! न हो पाया सपन साकार कोई अगर सपने हजारों बार बदले किराए पर पुरुष को प्राप्त करके अचानक रूप के किरदार बदले ! नहीं अब याद मौलिक शक्ल अपनी, मुखौटे उसने इतनी बार बदले चपल पूंजी बनीं निर्लज्ज पूंजी, उसी की शक्ति से बाजार बदले ! | जिसने सोचा-विचारा बहुत द्वंद्व से वो हारा बहुत वो बहुत साफ-सुथरा लगा, जिसने मन को बुहारा बहुत जाने क्यों, जन का आक्रोश भी, मुझको लगता है नारा बहुत ! पिछले कुछ दिन से, उस घर के बीच, है हमारा-तुम्हारा बहुत अब वो प्रतिभा से है शीर्ष पर, तुमने जिसको नकारा बहुत सिर्फ संकेत से आपके, गिर गया उनका पारा बहुत ! कोई उसका सहारा भी है, जो लगे बेसहारा बहुत |
लोभ की रोशमी चाल में पंख फंसने लगे जाल में मिलने आता है बेटा मेरा, अपनी सुविधा से दो साल में कुछ निकल कर नहीं आएगा, मत उलझ जांच-पड़ताल में ! मुस्कुराने की है नौकरी, मुस्कुराना है हर हाल में तुम न पहचान पाए उसे, वो जो था शेर की खाल में ये भी है जिन्दगी का सबक, है लचक पेड़ की डाल में ! क्रोध भू का प्रकट हो गया, कल अनायास भूचाल में |
परिचय : अब तक सात गजल-संग्रह प्रकाशित, देश के दो विश्विवद्यालयों में हिंदी स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में 25 गजलें शामिल. निरंतर लेखन पता – 108, त्रिलोचन टावर, संगम सिनेमा के सामने, गुरुबख्श की तलैया, स्टेशन रोड, भोपाल, मो.9425790565