विशिष्ट कवि :: डॉ.विमलेंदु सिंह

डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह की चार कविताएं
ढेर सारे अक्टूबर 
मैं अपने ऊपर का आकाश
बदल दूंगा अब,
छूट जाएंगी बहुत बातें,
यहीं रह जाएंगी,
क्वार की उमस,
कपासी मेघ,
तिरछी पड़ती,
सूरज की किरणें
धूप बत्ती की महक,
हवाओं में
आने वाली सर्दी की
एक दबी सी आहट,
और, इन सबसे भरकर
ढेर सारे अक्टूबर,
तुम्हारे ही रहेंगे
जब तक मना सको
उत्सव, इसी समय मनाना|
  मेरा शहर
अचानक चला गया
बिना कुछ बताए
बिना कुछ कहे
लज्जित रहा होगा
पूरा नहीं कर पाने पर,
वो सब, जिसके स्वप्न
लगातार दिखाए थे उसने,
अपनत्व का जो भ्रम
बना रखा था उसने
उस पर भी
क्षोभ रहा होगा उसे
अलविदा भी नहीं कहा
मेरे शहर ने मुझसे
मेरे अंदर से
चले जाने के पहले|
 मैं बीतना चाहता हूँ 
बीतना एकमात्र सत्य है
और मैं बीतना चाहता हूं
गर्मियों की दोपहर की तरह
श्रम के बाद के विश्राम
और संध्या-उत्सव की
प्रत्याशा के बीच,
पूरे ताप और शांति के साथ|
अपादान कारक 
मैं उपस्थित रहने को
संबंधित रहना, नहीं मानता
संलग्न होने को
निष्ठा का परिचय भी,
नहीं मानता मैं
ठीक वैसे ही
जैसे तुम नहीं मानते,
मेरे सर्वस्व को,अल्प भी
मेरी पीड़ा की पराकाष्ठा को
जैसे, प्रेम नहीं मानते तुम,
इस नश्वर विश्व के पृष्ठ पर
हम दोनों ही
एक दूसरे के जीवन-वाक्य में
अपादान कारक जैसे उपस्थित हैं
प्रति क्षण अलग होने की,
सूचना देते हुए
………………………………………………………………………………………………………………………
परिचय : डॉ. विमलेंदु सिंह की कई कविताएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैँ. ये पटना में रहते हैँ.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *