साहित्य में बदलाव का साक्षी ‘रास्ता दिल का’

– डॉ भावना
‘रास्ता दिल का’ ऋषिपाल धीमान ‘ऋषि’ का पांचवा सद्य: प्रकाशित ग़ज़ल-संग्रह है, जो भारतीय ज्ञानपीठ से छप कर आया है । इस संग्रह में कुल 100 ग़ज़लें हैं ,जो उनके सृजन के शैल्पिक और तथ्यात्मक उत्कृष्टता की गवाही देते हैं। संग्रह की भूमिका में ग़ज़ल पर बात करते हुए उन्होंने स्वयं कहा है कि “ग़ज़ल पढ़ने- सुनने में बड़ी दिलकश लगती है परंतु कहने में कठोर अनुशासन की मांग करती है ।महबूब से गुफ्तगू का नाम ग़ज़ल है ऐसा माना जाता है। इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि प्रेम श्रृंगार की बातें करना ही ग़ज़ल है ।ग़ज़ल के शेर का भाव या विषय कुछ भी हो सकता है, परंतु कहन में महबूब से गुफ्तगू जैसी नफासत की दरकार है। मेरे विचार में ग़ज़ल शेरीयत या तगज्जुल से भरपूर शेरों का समूह है जो एक ही ज़मीन (बहर ,रदीफ ,काफिये का विधान) में कहे गए हों। ग़ज़ल का हर शेर भाव की दृष्टि से स्वतंत्र इकाई होता है अर्थात हर शेर एक कविता, एक कहानी होता है ।
साहित्य समाज का दर्पण है। जिस तरह समाज में बदलाव होते हैं, साहित्य भी उन बदलाव का साक्षी बनता है। यह संयोग है कि हम एक ऐसी पीढ़ी में जन्म लिए हैं ,जिन्होंने अंगीठी पर पतीली में खाना बनाते मां और दादी को देखा है, वहीं स्टोव और गैस पर कुकर की मदद से खाना बनाती स्वयं की पीढ़ी को ।आज की पीढ़ी माइक्रोवेव और एयर फ्रायर में भोजन बनाना पसंद करती है ।इन्हीं बदलाव को शिद्दत से महसूस करते हुए ऋषिपाल धीमान ऋषि जी का यह शेर देखें –
शोर ‘कुकर’ का बहुत है पर वह बात कहां?
कब करती थी मां की पतीली आवाजें?
– पृष्ठ 20
यह संग्रह जब पहली बार मेरे हाथों में आया तो एक शेर जिसमें ‘वाद’ संबंधी बातें कही गई थी ,मुझे व्यक्तिगत रुप से बहुत पसंद आया था। दरअसल यह एक शेर आजकल हो रहे साहित्य में गुटबंदी को बड़ी बेबाकी से अभिव्यक्त करता है।उन्होेंने अपने शेर के माध्यम से बहुत बड़ी बात कह दी है। आपका दृष्टिकोण मानवीय हो या न हो किसी वाद का होना चाहिए, का फलसफा कम से कम मेरी समझ में कभी नहीं आया। शेर देखें –
मुझे जीवन के हर पहलू को छूने की तमन्ना है
मुझे भाता नहीं रहना किसी भी वाद का होकर
– पृष्ठ 21
ग़ज़ल में छोटी बहर में अपनी बात कहना सबसे मुश्किल होता है। पर, इस संग्रह की कई ग़ज़लें छोटी बहर में बड़ी बात कहती नज़र आती है ।’रद्दोबदल ‘ रदीफ़ से’ फाइलातुन फाइलुन’ बहर में बड़ी सलीके से बात कही गई है ।कहा गया है कि ‘खता लम्हों ने की ,सज़ा सदियों ने पाई ‘इसी बात को एक अलग अंदाज़ के साथ धीमान जी कहते हैं –
उम्र भर को कर गई
इक घड़ी रद्दोबदल
– पृष्ठ 23
जिंदगी एक ऐसी पाठशाला है, जिसमें कदम कदम पर इम्तिहान देने होते हैं। कभी मनुष्य सफल होता है तो कभी असफल। पर ,वह हार नहीं मानता । पुनः आगे बढ़ने के लिए उठाए खड़ा होता है ।जीवन में ऐसे कई ‘ठोकर’ मिलते हैं ,जिसमें दोस्त होतें हैं तो कई दुश्मन। हम जिनकी हज़ारों गलतियां हंसकर माफ कर देते हैं , उन्हीं लोगों में से कुछ लोग हमारी एक गलती पर आसमान सिर पर उठा लेने में भी गुरेज नहीं करते। वैसे लोगों को इंसानियत का पाठ पढ़ लेना चाहिए। शेर देखें –
इक भूल मेरी तुझसे पचाई न जा सकी
तेरे हजार ऐब भी मैंने छिपा लिए
– पृष्ठ 25
इसमें तीखा पका लो या मीठा
जिंदगी का भगोना एक- सा है
– पृष्ठ 31
पाठ इंसानियत का पढ़ ले जरा
वेद ,बाइबिल, कुरान से पहले
– पृष्ठ 35
बेशक बुरा हूं यार, मगर पीठ देखकर
तुझ-सा तो मैं नहीं हूँ ,कि खंजर निकाल लूँ
– पृष्ठ 66
समर्थ व ताकतवर लोग अपनी छोटी-छोटी कठिनाइयों पर ऐसे ही विजय प्राप्त कर लेते हैं जैसे सांप के हमले के बावजूद नेवला मौत को चकमा देने में कामयाब होता है। ग़ज़ल में इस तरह का बिम्ब मेरे ख्याल से सर्वथा नया व अलग है। शेर देखें –
देता है चकमा मौत को तर्रार नेवला
ऐसा नहीं कि सांप उसे काटता नहीं
– पृष्ठ 28
गांव की चहल- पहल अत्यधिक सुख सुविधा अर्जित करने की चाहत ने लील ली है। अब गांव वीरान है। बुजुर्गों को छोड़कर युवा कम दिखाई पड़ते हैं। यह युवा अपने पैतृक जमीन को छोड़कर रोजी-रोटी की तलाश में शहर पलायन कर चुके हैं ।अधिकतर लोगों को यह सामान्य घटना लगे पर, एक रचनाकार का दिल दिन- रात कचोटता है ।शेर देखें-
वो घड़ी आज भी रह -रहके दुखाती है दिल
जिस घड़ी हमने बुजुर्गों का ठिकाना छोड़ा
– पृष्ठ 38
प्रेम जीवन का शाश्वत सत्य है। रोटी अगर शरीर की जरूरत है, तो प्रेम उसके मन की ।दोनों में से किसी एक के न होने की कल्पना मात्र से हमारा रूह कांप उठता है ।शेर देखें –
जिंदगी की मछलियां मर जाएंगी
प्यार की सूखी नदी पर गौर कर
– पृष्ठ 41
कहते हैं प्रेम में हमारी जुबान भले ही कम बोले पर मन सबसे ज्यादा स्वयं से बातचीत करता है। हर वक्त अपने प्रियतम को सोचना और उसे बतियाना, उसकी यादों में खो जाना ,प्रेम में होना नहीं तो और क्या है? इंसान जिसको चाहता है, उसकी हर अदा उसे बहुत प्यारी लगती है । या यूँ कहें कि दिल का रास्ता बहुत सीधा है जहां आंख बंद करके भी गंतव्य तक पहुंचा जा सकता है। शेर देखें-
तुझे जिंदगी सोचता हूं मैं हर पल
लगा तू न इल्जाम कम बोलता हूं
– पृष्ठ 47
बोल मिसरी में पगे हैं दिल रंगा है प्रेम में
रंग गोरा कुछ नहीं उस सांवली के सामने
– पृष्ठ 40
बंद आंखें किए चले आओ
सीधा- साधा है रास्ता दिल का
– पृष्ठ 115
संग्रह के शेरों के अवलोकन से स्पष्ट है कि ॠषिपाल धीमान ‘ऋषि’ हिंदी ग़ज़ल के चंद ऐसे ग़ज़लकारों में शुमार हैं ,जिनका लेखन सामाजिक सरोकार को केंद्र में रखकर शिल्प और कहन को साधते हुए ग़ज़ल कहने के लिए प्रतिबद्ध है।
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गज़ल -संग्रह – रास्ता दिल का
ग़ज़लकार- ऋषिपाल धीमान ऋषि
समीक्षक- डॉ भावना
प्रकाशन -भारतीय ज्ञानपीठ
मूल्य – 240