दिनेश तपन की ग़ज़लें
1
धन दौलत संजोते रह गए
पाप उमर भर ढोते रह गए
थी ख़ुशियों की जिन्हें तमन्ना
वे ही सब दिन रोते रह गए
दर्द जमाने भर का देखा
ताहम जह्र ही बोते रह गए
अम्न जहाँ आसान कभी था
उस मौके को खोते रह गए
जाग रहे थे दुनिया वाले
हम ग़ाफ़िल थे सोते रह गए
चोरी ही जिनकी फ़ितरत थी
माल ‘तपन’ वो टोते रह गए
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शब्दार्थ : ताहम = तथापि,
अम्न = शांति
ग़ाफ़िल = असावधान
2
कभी उल्फ़त कभी इकरार बनकर
मिली वो आज मुझसे प्यार बनकर
ख़ुशी से भर गया दामन हमारा
गले लिपटी गले का हार बनकर
ये मेरी ज़िंदगी का फ़लसफ़ा है
मिला करता हूँ मैं दिलदार बनकर
मुहब्बत कैस रांझे से है तो क्या
रहा उसका ही मैं बीमार बनकर
तू रब,तू ही ख़ुदा ईश्वर है तू ही
दिखा तू रास्ता करतार बनकर
मैं इतने यारबाशों के सदन में
चला आया तपन फ़नकार बनकर
3
बेसबब जिंदगानी हुई
जिस्म की आग पानी हुई
चाहतों के महल ढह गये
ग़र्क जिसकी ज़वानी हुई
हुस्न से इस्क जब भी मिला
शाम तब तब सुहानी हुई
रात दिन वो घुला सोच में
जिसकी बिटिया सियानी हुई
वो निरंतर सुलगता रहा
पीर जिसकी पुरानी हुई
प्यार पाए कहाँ अब सुकूं
इस्क उल्फ़त गरानी हुई
पुरकशिश जिंदगी अब कहाँ
बात गो सब पुरानी हुई
दास्तां क्या कहेगा ‘तपन’
ख़त्म जिसकी कहानी हुई
4
देख ‘तपन’ यह फानी दुनिया
कुछ जानी पहचानी दुनिया
प्यार मुहब्बत में दिखती है
क्यों अक्सर दीवानी दुनिया
उल्फ़त की लेकर आयी है
फिरसे एक कहानी दुनिया
खून खराबा कत्लो गारत
क्यों चाहे इन्सानी दुनिया
जख़्म अमूमन देते मज़हब
कर देते बेमानी दुनिया
खुद असमत नीलाम हुई तो
होती पानी पानी दुनिया
कास समझ पाता हर बंदा
है कितनी लासानी दुनिया
5
आओ चलकर हमभी देखें इस दुनिया का हाल मियाँ
क्यों हैं चंद अमीर जहाँ में बाकी सब कंगाल मियाँ
अपने बल बूते जिसने भी चलने की कोशिश की है
किसमत के परचम लहराएऔर हुए खुशहाल मियाँ
आनेवाले दिन उनके हैं जो मिल्लत से रह लेंगे
शायद वक्त उन्हें कर जाए इक दिन मालामाल मियाँ
जो ग़ुरब़त केनाम शिकायत ले किसमत को रोता है
खाट खड़ी होनी है उसकी जाएगा पाताल मियाँ
खेकर जाना पार जिसे है फौरन दरिया पार करे
हिक़मत की कश्ती में बांँधे वो हिम्मत के पाल मियाँ
हो कोई भी जो नाहक तक़दीर के आड़े आता हो
बेशक करना दूर उसे फिर क्यूँना हो वह काल मियाँ
हाय करें अब हम भी कितनी रार सियासतदानों से
पूछरही जनता मरक़ज से सीधे तल्ख़ सवाल मियाँ
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पुण्य स्मरण :: दिनेश ‘तपन, भागलपुर 812001,