श्री रंग शाही के प्रति श्रद्धांजलि
– डा० लक्ष्मीनारायण पाण्डेय ‘प्रेमी’
हे साहित्य मर्मज्ञा सदा जन-जन हितकारी
तुम थे बज्जिका हिन्दी के अनुरक पुजारी
माँ की गोद सूना लगता तेरे जाने से
हे ‘शाही श्री रंग’ जग योद्धा हठधारी
आध्यापन, आध्ययनशील साहित्य स्नेही
रचन-रच विविध विधा में गाथा गायन तू ही
भर भरकर तूने गागर शिक्षा सागर से
सोच सोच जन मन में खिला दिया तू जूही
हे साहित्य सेवी तूने सबको उकसाया
गाँव-गाँव में पुस्तकालय तूने बनवाया
दे-देकर वरदान तुम्ही ने नर-नारी को
शिक्षा से साहित्य जगत का मान बढ़ाया
हे बज्जिका के अमर पुत्र हे अमर विभूति
थे तू बज्जिका भाषी क्षेत्र के हीरे-माती
बज्जिका मातृभाषा अपनी, यह सिखलाया
बज्जिकांचल में घूम-घूमकर जला दी ज्योति
आज तेरे बिन बज्जिकांचल सूना लगता है
आ जाते एक बार काश! यह दिल कहता है
त्याग, लगन, कर्तव्य निष्ठ, की मिली प्रेरणा
हरदम आगे बढ़ने को प्रेरित करता है
तुमको शान्ति मिले वहाँ, जहाँ तू गये हो
बज्जिका का जो कार्य भार तू सौंप गये हो
अब श्रद्धा का सुमन मेरा स्वीकार करो तुम
लहरायेंगे विजय पताका थमा जो गये हो
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अध्यक्ष, वि.रा.ब.वि. परिषद, शिवहर