कीर्त्तियस्य सः जीवति
- डाॅ. चन्द्रशेखर श्रीवास्तव
जिसका मिलन अत्यन्त सुखद एवं बिछुड़न अत्यन्त दुःखद हो, निःसन्देह वह मनुष्य महिमामण्डित अवश्य होता है। सन् 1999 का वर्ष बज्जिकांचल के लिए अत्यन्त दुःखद वर्ष रहा है। एक साथ बज्जिकांचल के कई नक्षत्र टूटते दिखाई दिए बज्जिका एवं बज्जिकांचल की धरोहर श्री कृष्णवन्दन सहाय, भूतपूर्व महापौर अभी-अभी चिर-निद्रा में सोये ही थे कि कवि-मनीषी श्री अजित सुखदेव भी उनके साथ गहरी निद्रा में सोने चले गए। कहीं-न-कहीं महात्माओं के मिलन के आंतरिक तार अवश्य जुड़े होते हैं। बज्जिकांचल की आँखों के आंसू अभी सूखे भी नहीं थे कि बज्जिका, भोजपुरी एवं हिन्दी के कवि-कोकिल श्री उमाकान्त वर्मा भी सदा के लिए चिर निद्रा में सो गए। उनकी अनुपस्थिति में शोक-समारोह होना ही था कि इसी मध्य डॉ. योगेन्द्र प्रसाद सिंह सदा-सदा के लिए आँखें बन्द कर लिए।
मृत्यु की तिथि का निर्धारण अनिश्चित रहना, अपने आप में काफी महत्त्वपूर्ण है। पता नहीं, प्राण-पखेरूओं को उड़ते समय थोडी शर्म भी होती है कि नहीं? जिस महामानव ने अपने पत्रों से जीवन की हँसी-खुशी, विषाद-अवसाद एवं बज्जिकांचल की अच्छी-बुरी सूचनाएँ जन-जन तक प्रसारित की, वही प्रेमी जन-जन का मित्र, भला बिना सूचना दिए एकाएक कैसे काल-कवलित हो गया? प्रकृति का यह क्रूर अट्टहास हजारों नेत्र को अश्रु पूर्ण कर दिया। मैं अपनी पुस्तक ‘शिव-सीतायन खण्ड काव्य की एक प्रति डॉ. शान्ति कुमारी जी को देने गया था। डॉ. शान्तिजी पूजा पर बैठीं थीं। उनकी सुपुत्री भावुक कवयित्री सुश्री भावना जी बाहर निकलीं और बैठने का अनुरोध की। इसी बीच वार्ताक्रम में उन्होंने
उनकी कविता, लेख एवं विचारों के दर्शन अवश्य हुए हैं। वे खुले दिलवाले थे। काफी निर्भीक थे। अपनी ओजपूर्ण वाणी की प्रस्तुति बड़ी स्पष्टता के साथ करते थे। उनके हृदय में कोई गुत्थी नहीं थी। पत्र लिखने, पत्रोत्तर देने एवं सूचनाएँ प्रसारित करने में वे बड़े माहिर थे। उनके इस खुलेपन से कुछ लोगों का अहित भी हो जाता था ,पर वे उसकी परवाह नहीं करते थे।
सुना था कि वे कई संस्थाओं के संचालक थे। अपनी संस्थाओं के माध्यम से इन्होंने कितनों की जिन्दगी बनायीं। ऐसे सुगन्धित पुष्प अथवा मानवतावादी महापुरूषों को मृत्युदेव निष्ठुरता के साथ बिना कुछ सोचे समझे क्यों और कैसे उठा लेते हैं? पता नहीं, प्रकृति की यह क्रूर लीला कब तक चलती रहेगी! आज उनके कितने पत्र-मित्र, कवि, लेखक, समीक्षक, गुरू, छात्र एवं उपकार के ऋणी विलख रहे हैं, इसे कौन देख रहा है? परमात्मा उनकी आत्मा को चिर शान्ति प्रदान करें यही उनसे मेरी वंदना है। ऐसे ही कुशल, परोपकारी एवं विद्वान महात्माओं के संदर्भ में यह कहा जाता है “कीर्ति यस्य सः जीवति”।
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बज्जिका विद्यापीठ, मुजफ्फरपुर, भिढनपुरा, रमना-८४२००२