महाकवि आरसी प्रसाद सिंह की काव्य-साधना
- डॉ. प्रो. श्रीरंग शाही
छियासी वर्ष की आयु में महाकवि आरसी प्रसाद सिंह जी का स्वर्गारोहण पन्द्रह नवम्बर 1996 को पटना स्थित कुर्जी अस्पताल में हुआ। सरकार की कृपा से राजकीय सम्मान के साथ उनको अंत्येष्टि की गयी। यह सम्मान साहित्यकारों में राष्ट्रकवि दिनकर और राज्य सभा सदस्य और साहित्यकार डॉ० शंकर दयाल सिंह को मिला था। मैथिली भाषा की रचना ‘सूर्यमुखी’ पर आरसी बाबू को साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला था। आपका जन्म 19 अगस्त 1911 को समस्तीपुर जिला के एराँव गाँव में हुआ था। आपने उच्च विद्यालय की शिक्षा नौर्थबूक जिला स्कुल दरभंगा में पायो थी। विश्वविद्यालय की शिक्षा आपने टी०एन०बी० कॉलेज भागलपुर और बी०एन० कॉलेज पटना में प्राप्त की थी। बेनीपुरी सहाय सम्पादित ‘युवक’ पत्रिका से भी आरसी बाबू का सम्बन्ध था और 1935 ई० में आरसी बाबू की गणना चर्चित कवियों में होती थी। विश्वमित्र और विशाल भारत में भी आरसी बाबू को रचनाएँ छपती थीं। 1940 में आरसी बाबू ने अपनी प्रकाशन संस्था तारामण्डल की स्थापना की थी और उसकी शाखा मुजफ्फरपुर में भी थी। जीवन और यौवन, चन्दा मामा, नयी दिशा एवं कालरात्रि के प्रकाशन के उपरान्त आरसी बाबू ने हिन्दी साहित्य में अपना स्थान बना लिया था। आरसीबाबू कवि के अतिरिक्त कहानीकार भी थे और पंच पल्लव और ‘खोटासिक्का’ आपकी कहानियों का संग्रह है। एक प्याली चाय, और आँधी के पत्ते आपकी लोकप्रिय रचनाएँ हैं। 1948 से 1951 ई० के बीच आरसी बाबू कोशी कॉलेज खगड़िया में हिन्दी का प्राध्यापक थे। मेरी कोटा-यात्रा, यात्रा-वृतान्त उसी काल की रचना है।
1951 से 1856 के बीच आपकी सात पुस्तकें प्रकाशित हुई जिनमें चित्रों में लोरियाँ, ओनामासी, रामकथा, जादू की वंशी और ठंढी हवा प्रमुख है। 1956 में आरसी बाबू ने आकाशवाणी की भी सेवा की थी और इलाहाबाद में हिन्दी कार्यक्रम के प्रभारी थे।
इसकाल की आपकी रचनाओं में माटीक दीप (मैथिली) संजिवनी, ईदसमास, सोने का झरना, कथा माला, हीरा-मोती, बाल गोपाल, पूजा का फूल, कलम और बन्दूक प्रमुख हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने हिन्दी साहित्य का इतिहास में आरसी बाबू को छायावादोत्तर काल का कवि माना है। कलापो कविता संग्रह के आधार पर ही आचार्य शुक्ल ने यह अभिमत दिया था।
मनीषी आलोचक डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने आरसी बाबू को मस्त कवि के रुप में विवेचित किया है। इस प्रसंग में आरसी बाबू की चर्चित कविता जीवन का झरना को प्रस्तुत किया जा सकता है।
“यह जीवन क्या है निझर है, मस्ती ही इसका पानी है।
सुख दुख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है।
महाकवि आरसी ने जीवन को परिभाषित करते हुए कहा था-
“चलना ही केवल चलना है, जीवन चलता ही रहता है।
मर जाना है रुक जाना ही निर्झर यह हार कर कहता है”
डॉ० नामवर सिंह जी ने भी अपनी पुस्तक वाद-विवाद सम्याद में आरसी बाबू की चर्चा की है। आरसी बाबू की काव्य भाषा छायावादी थी । कलापी कविता पुस्तक की अधिकांश रचनाएँ छायावादी ध्वनि के साथ स्पष्ट लिखी गयी है। आरसी बाबू ध्वनि और लय के क्षेत्र में महाकवि पन्त जी से प्रभावित थे । नौ सर्गों में विभाजित संजीवनी आरसी बाबू का खण्ड-काव्य है। कथदेवयानी की पौराणिक कथा के आधार पर इस खण्ड काव्य की रचना की गई है। संजीविनी खण्डकाव्य के प्रथम सगं में देवासुर संग्राम का मार्मिक चित्रण है। इस खण्ड काव्य का अंतिम सर्ग शान्ति विजय है । संजीवनी खण्ड काव्य में युग-स्वर भी मुखरित है ।
“चित में हो कृपा निष्ठता समर में
जाग मेरे देश ले करवाल कर में ।
1944 में आरसी बाबू की लोक प्रिय कविता पुस्तक जीवन और दॉबना का प्रकाशन हुआ था। कवि ने गाया था ।
“ऊपर मन्द मधुर मलयानिला भीतर में जल रही अंगीठी।
आरसी बाबू गीति-चेतना के कवि थे ।
आरण्यक कविवर आरसी के राष्ट्रीय गीतों का मनोरम संकलन है । आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री ने आरण्यक के विषय में कहा था कि यह अवाक की वाणी है। कविवर आर सी जी ने बच्चों के लिए भी बहुत अधिक लिखा था। आरसी जी की कविताएँ पाठ्य पुस्तक में भी संकलित हैं। सच होने वाला है सपना नाम की कविता में कवि ने गाया –
“सारे जग को पथ दिखलाने वाला है जो ध्रुवतारा है। भारत-भू ने जन्म दिया है, यह सौभाग्य हमारा है ।।
कथा-माला का प्रकाशन 1966 में हुआ। कथा माला की अधिकांश कविताएँ धार्मिक पत्रिका कल्याण गोरखपुर में छप चुकी है। आरसी बाबू पटना से प्रकाशित त्रैमासिक धर्मायण के स्थायी रचनाकार थे ।
इतनी महान साधना के उपरान्त आरसी बाबू को साहित्यिक सम्मान या विशिष्ट पुरस्कारो से अलंकृत नहीं किया जा सका। डॉ० बेचन ने आरसी बाबू का साक्षात्कार लिया था। उनका कहना था कि साहित्यकार निरंकुश होता है वह राजसत्ता की चाटुकारिता नहीं कर सकता । अभाव में ही अच्छी साधना हो सकती है। आरसी बाबू को साहित्य-क्षेत्र में प्रोत्साहन राम बृक्ष बेनीपुरी जी से मिला था ।
1957 में वीर सेनानी वीर कुंअर सिंह पर आरसी बाबू ने एक खण्ड काव्य की रचना की थी। नन्द दास भी आरसी बाबू का चर्चित खण्ड काव्य है ।
चाणक्य शिखा और युद्ध अवश्यम्भावी है, आरसी बाबू को नवीनतम रचनाएँ हैं। इन पुस्तकों में तीव्र यर्थाथवाद मिलता है। महाकवि आरसी प्र० सिंह को मैथिली भाषी अभिनव विद्यापति मानते हैं। कवि ने स्वयं कहा था
“अभिनव विद्यापतिक भवानी जाग रहल आछि
आरसी बाबु की नवीनतम रचनाओं में आस्था का अग्निकुण्ड, बदल रहा है हवा, मैं किस देश में ‘हूँ’ रजनी गंधा प्रमुख हैं।आर सी बाबू के विषय में राष्ट्रकवि दिनकर ने गाया
“विद्यापति की कमलाभूमि के नव मधुमय आलिगुंजन
छन्द आरसी सरलस्निग्ध निच्छलमानव – दर्पण ।”
हमारे काव्य-संसार के कवि प्रजापति आरसी बाबू आज नहीं हैं ,पर उनकी रचनाएँ उनको अमरता प्रदान करती है।
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