बदल गई इमोजी
घर में आकर सीमा एकदम शांत चित्त बैठ गई। चेहरे पर उसकी विषाद की घनी-घनी सिलवाटें पड़ चुकी थीं। आंखों में कोई नमी तैर रही थी।‘‘क्या हुआ बेटी?’’ मां ने पानी का गिलास उसे थमाते हुए हौले से पूछा, तो वह एकदम चौंक पड़ी।
दो घूंट पानी पीकर गिलास टेबल पर रख कर वह बोली-‘‘कुछ नहीं बस यूं ही।’’ उसके सामने आकर मां ने आश्चर्य से कहा, ‘‘कुछ तो जरूर है बेटी?’’
अब तो वह एकदम से फूट पड़ी। मां के गले से लिपट गयी, चिंहुकते हुए बोली-‘‘मां हम लोग मंच पर नाच-गा करके अपनी जिंदगी गुजर-बसर करते हैं, तो क्या इसमें कोई गुनाह करते हैं।’’
मां ने कहा-‘‘नहीं बेटी? यह कोई गुनाह नहीं? अपनी आजीविका चलाने के लिए आखिर इंसान को कुछ न तो कुछ करना ही पड़ता है। तेरे पिता भी तुझे प्रसिद्ध नृत्यांगना के रूप में देखना चाहते थे, जीते जी तो वह न देख सके, पर मुझे पूरा विश्वास है, एक दिन तू जरूर उनके सपनों को साकार करेगी। फिर उस दिन ऊपर आकाश से ढेर सारा आशीर्वाद तेरे पापा तुझ पर लूटाएंगे। बेटी नृत्य कला को साधना एक कला है। इसमें बरसों की तपस्या लगती है, कठिन परिश्रम करना होता है, जो इसे ओछी नजरों देखता है या ओछी टिप्पणी करता है, वह निरा मूर्ख और अज्ञानी है। बेटी आज किसी मूर्ख ने कुछ कहा क्या तुझसे?’’
वह बोली-‘‘मां मैं अपना नृत्य का कार्यक्रम समाप्त करके ऑडिटोरियम की गैलरी से गुजर रही थी। लोग मेरी प्रशंसा के तमाम पुुल बांध रहे थे। तभी किसी ने पीछे से फब्ती कसी-पतुरिया बड़ा अच्छा नाचती है। बड़ा अच्छा मुजरा करती़ है।’’
‘‘बेटी कौन था वह।’’
मैंने फौरन मुड़कर देखा, नाम तो पता नहीं, हाँ कुछ चेहरा जाना-पहचाना सा लग रहा था। शायद अपने ही इलाके का कोई छुटभैया नेता टाइप का था। मैं चाहती तो उसका जवाब वहीं दे सकती थी, पर वहां से गुजर रहे लोगों और तमाम संभ्रांत समाज के सामने कोई बखेड़ा नहीं खड़ा करना चाहती थी। कनखियों से मैंने फिर पीछे देखा तो वह पीछे से ही कहीं सरक कर दफा हो चुका था। मैं उसकी ओछी टिप्पणी को सुनकर अनसुना कर चुकी थी। फिर बात आई-गई हो गई।’’
‘‘बेटी चिंता न कर कभी न कभी, कोई न कोई उसकी फब्ती का जवाब बढ़िया देगा। ऐसे लोग अपनी हरकतों से कहीं न कहीं एक दिन फंसते जरूर हैं। तब उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है। तब उन्हें अपनी असली औकात पता चलती है।’’ बरसों बीतते गये। सीमा नृत्य कला में बहुत पारंगत होते हुए प्रसिद्ध होती चली गयी। अब रंगमंच से उसकी नृत्य कला देखने लिए महंगे टिकट लगने लगे। संभ्रांत समाज में उसने बहुत ही मान-सम्मान कमाया। धन कमाया।
एक दिन वह अपने मोबाइल पर कुछ सर्च कर रही थी। फिर कुछ मनोरंजन के लिए अनायास रील्स देखने लगी। अचानक उसकी नजर एक रील पर ठहर गई। अरे! यह तो वही छुटभैया नेता है। जिसने बरसों पहले मेरे नृत्य कला को मुज़रा कहा था। देखो आज यह कैसी बेशरमी से एक महिला के साथ फूहड़ता से नाच रहा है। भद्दे-भद्दे इशारे करके लाइक शेअर कमेंट की भीख मांग रहा है। सीमा ने कमेंट बॉक्स में लिखा-मुज़रा करना कोई गुनाह नहीं, बस इसे पेशेवर रूप से करेंगे, सही ढंग से करेंगे, तभी असल फायदा होगा तुम लोगों को।’’
उसने जवाब दिया-‘‘मेरी कुछ मजबूरियां हैं,नाचना-गाना हमारा पेशा नहीं। कृपया अपमान न करें मोहतरमा।’’
‘‘किसी का अपमान करना मेरा मकसद नहीं,पर जिस अश्लीलता और जिस फूहड़ता से तुम लोग नाच रहे हो, उसे देख कर तो यही लग रहा है कि यह तुम्हारा नाच तो मुजरे से भी गया गुजरा है। अगर कुछ नृत्य कला सीख लो तो मैं तृम्हारी कुछ मदद कर सकती हूं। मैं तुम्हारे ही क्षेत्र की नृत्यांगना सीमा हूं।’’
‘‘ओह! आप सीमा जी है। क्षमा करें। बरसों पहले……बीच में ही सीमा ने कमेंट झोंक दिया-हां हां याद है, बरसों पहले आपने मुझे बड़ा मान-सम्मान दिया था। मैं उससे आज भी अभिभूत हूूं। हमेशा आप की आभारी रहूंगी। इसलिए मैं आप की कुछ मदद करना चाह रही हूं। किसी का परिहास उड़ाना या अपमान करना मेरा कोई मकसद नहीं रहा? मैं जो हूं जैसी भी हूं, यह सभी जानते हैं।’’ फिर प्रणाम की तमाम इमोजी बनाते हुए उसने लिखा-‘‘एक प्रसिद्ध नृत्यांगना का सहयोग मिलेगा तो अवश्य ही मेरे गुरबत दिन सुधर जाएंगे बहन जी।’’
सीमा ने प्रणाम की इमोजी बनाकर जवाब लिखा-‘‘किसी के काम आ सकूं तो अपने इस जीवन को धन्य समझूंगी भैया।’’