सोनरुपा विशाल की ग़ज़लों में अंदर की बेचैनी : डॉ भावना

सोनरुपा विशाल की ग़ज़लों में अंदर की बेचैनी
                                                 – डॉ भावना
‘सपनों से जब निकले हम ‘सोनरूपा विशाल का ताजा बेहतरीन ग़ज़ल संग्रह  श्वेतवर्णा प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह का मूल्य 299 रुपए है ।  112 पृष्ठों की यह किताब कई मायने में बेहद खास है।बेहतरीन कवर से सुसज्जित  इस  संग्रह में कुल 88 गज़लें  हैं, जो विभिन्न पृष्ठभूमि पर लिखी गई हैं। संग्रह की शुरुआत में कई महत्वपूर्ण रचनाकारों के साथ बुद्धिनाथ मिश्र  जी तथा ओमप्रकाश यती जी की टिप्पणी भी रेखांकित करने योग्य है। संग्रह के पहले ही ग़ज़ल में जब सोनरूपा जी कहती हैं –
 शाम -सी नम, रातों- सी भीनी,भोर सी है उजियारी माँ
  मुझ में बस थोड़ी सी मैं हूँ मुझ में बाकी सारी माँ
 जब मुश्किल हालात के अंगारों से हमको आँच मिली
 बारिश -सी शीतलता हमको देती रही हमारी माँ
 फिर अगली गज़ल में वे पिता को याद करते  कहती हैं कि-
 जीवन से लबरेज हिमालय जैसे थे पुरजोर पिता
मैं उनसे जन्मी नदिया हूँ , मेरे दोनों छोर पिता
 प्रश्नों के हल,खुशियों के पल, सारे घर का संबल थे
 हर रिश्ते को बांधने वाली थे इक अनुपम डोर पिता
जीवन के सब तौर तरीके, जीवन की हर सच्चाई
 सीखलाया करते थे हम पर रखकर अपना जोर पिता
जब हम बच्चों की नादानी माँ से संभल न पाती थी
तब हम पर गरजे बरसे थे बादल से घनघोर पिता
संग्रह की तीसरी ग़ज़ल बिल्कुल अलग तरह के काफिये के साथ लिखी गयी है। ‘ब्याहता है जोश की  जो शौर्य से परिणीत है,
 वो शहादत मौत क्या है जिंदगी की जीत है
 मन में गीता के वचन और तन में फौलादी जुनूं
 फिर विजय हर जंग में अपना  सदा निर्णीत है
देशभक्ति से लबरेज यह ग़ज़ल हर देशभक्त को प्रभावित किये बिना नहीं रह सकती।
 डॉ सोनरूपा विशाल एक ऐसी ग़ज़लकार हैं जो सिर्फ लिखने के लिए नहीं लिखतीं। उनकी हर एक ग़ज़ल उनकी भीतर की बेचैनी को प्रस्तुत करती है। सोनरूपा विशाल न केवल मंचों की बेहतरीन कवयित्री हैं बल्कि पत्र पत्रिकाओं में भी ससम्मान छपती हैं।  बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो कि मंच और लेखन दोनों को साथ साध पाते हैं। कहना न होगा उसमें एक महत्वपूर्ण नाम सोनरूपा विशाल का है।
 या तो वापस पलटके  आओ तुम
या कोई रास्ता बताओ तुम
बहुत सहज ,सरल शब्दों में कही गई  इनकी ग़ज़लें पाठकों को बार-बार पढ़ने को विवश करती हैं। उनके हर एक शेर पढ़ने के बाद बिल्कुल अपना सा  प्रतीत होता है। यही इस संग्रह की खासियत भी है।
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पुस्तक- सपनों से जब निकले हम
ग़ज़लकार- सोनरूपा विशाल
समीक्षक-डाॅ भावना
प्रकाशन- श्वेतवर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य-299

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