हिंदी ग़ज़ल में नदी, पोखर, झील, दरिया और समुन्दर :: डॉ.भावना

हिंदी ग़ज़ल में नदी, पोखर, झील, दरिया और समुन्दर 

  • डॉ. भावना

जल ही जीवन है। जल के बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। प्रकृति ने हमें  झील, नदियां, पोखर ,दरिया और समुन्दर के रूप में अपार जल राशि दी है । विश्व की बढ़ती जनसंख्या की वज़ह से पानी का अंधाधुंध दोहन जल संरक्षण पर ठहर का सोचने पर विवश करता है।

गर्मी में आए दिन पानी का स्तर बहुत कम हो जाता है एवं मोटर भी उसे धरती के भीतर से खींचने में असमर्थ हो जाते हैं, तब हमें जल संरक्षण की याद आती है।  ‘आरो मशीन’ से 1 लीटर शुद्ध पानी पीने योग्य निकालने के बदले 3 लीटर पानी की बर्बादी तथा कम कपड़े रहने पर भी कपड़े धोने के लिए वाशिंग मशीन का उपयोग करना गृहणियों के जल संरक्षण के प्रति सचेत नहीं रहने की वज़ह से है ।पृथ्वी के कुल जल स्रोत का केवल एक छोटा- सा प्रतिशत ही ताजा व तरल जल है ,जो मानव के उपभोग में आता है ।

भारत गांवों का देश है और गांव के सुंदरता का कारण नदी, पोखर ,दरिया व तालाब हैं । भारत में कुल मिलाकर लगभग 200 नदियां प्रवाहित होती हैं, जिनमें से प्रमुख सिंधु, ब्रह्मपुत्र नर्मदा ,तापी, गोदावरी ,कृष्णा और महानदी है ।विश्व की बात करें तो लगभग डेढ़ लाख नदियाँ दुनिया भर में प्रवाहित होती हैं, जिसमें से अकेले करीब सात सौ नदियाँ केवल बांग्लादेश में प्रवाहित होती हैं ।नदियों की अधिक संख्या की वज़ह से ही बांग्लादेश को नदियों का देश कहा जाता है। नदी हमारे लिए मीठे जल का स्रोत है, वहीं  पोखर वन्यजीवों के पीने व सिंचाई का मुख्य साधन।

पृथ्वी पर रहने वाला हर जीव पानी पर निर्भर है।  पानी के बगैर हम जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकते। जनसंख्या विस्फोट, पर्यावरण की क्षति एवं मानव के अति सुविधा भोगने की प्रवृति ही मानव को जल संकट  से जूझने पर मजबूर कर दिया है। भूजल स्रोतों का दोहन शहर में समरसेबल लगाकर भी किया जाता है, वहीं देहात में सिंचाई के लिए भी इसका अंधाधुंध दोहन होता है।

सरकारी सुविधाओं में नल- जल योजना प्रमुख है । इस योजना  के तहत गांव में पीने योग्य पानी की सुविधा दी जाती है, पर अधिकांश नल दिन-रात खुला रहता है ।दिन-रात पीने योग्य पानी का बाहर जाना भी जल संकट का एक बड़ा कारण बन गया है, इसमें संदेह नहीं है।  शहरी जीवन जीने वालों लोग पानी पीने के लिए आर ओ पर निर्भर हैं, जो कालांतर में भारत को भी जल संकट की ओर ले जाएगा। सरकार को कोशिश करके इसका विकल्प खोजना चाहिए एवं इस पर बैन कर देना चाहिए।

भारत के विभिन्न राज्यों में नदी पोखर एवं झीलों की संख्या में उत्तरोत्तर कमी आ रही है। शहरों में नदियों को भर- भर कर अपार्टमेंट बनाए जा रहे हैं। पोखर काल कलवित हो चुके हैं। कभी गांव में कई-कई पोखर का होना  गांव की समृद्धि की निशानी हुआ करते थे। मवेशियों को नहलाना ,कपड़े धोना, बड़े बुढो को स्नान ध्यान का बड़ा साधन पोखर ही हुआ करता था।

बिहार में पोखर किनारे का छठ विश्व का ध्यान आकर्षित करने में सफल है। विश्व के एक बिलियन से ज्यादा लोग जल संकट वाले क्षेत्रों में रहने को मजबूर हैं। डब्ल्यू आर आई के अनुसार विश्व में 17 देश गंभीर जल संकट से जूझ रहे हैं ,इसमें कतर सबसे ज्यादा जल संकट से त्रस्त है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व की 26% आबादी अभी भी साफ एवं सुरक्षित  जल से दूर है। ऐसे में ,समय आ गया है कि हम अपने नदियों, तालाबों और झीलों के प्रति संवेदनशील बनें।

हमारा देश सांस्कृतिक विभिन्नताओं से परिपूर्ण है। प्राचीन समय में हम तालाबों को न केवल पूजते थे बल्कि उसका नामकरण एवं विवाह संस्कार भी बड़ी धूमधाम से किया करते थे। जल संरक्षण के इन प्राकृतिक धरोहरों को पुनः हमें जीवित करना होगा। तालाबों में कचरा डालने का काम बंद करना होगा तथा नदियों की स्वच्छता की भी गारंटी हमें ही लेनी होगी।

स्मरण रहे कि यह नदी, तालाब व झील नहीं होंगे तब हमारा अस्तित्व भी नहीं रहेगा। हमें जल की एक-एक बूंद की कीमत समझ लेनी होगी। पानी को रिसाइकल करने की दिशा में भी हमें प्रयास करना होगा।

केंद्र सरकार ने जल संरक्षण के लिए दो प्रमुख योजनाओं को लागू किया है। पहले जल जीवन मिशन तथा दूसरा स्वच्छ भारत मिशन। जल जीवन मिशन का लक्ष्य 2024 तक हर घर में नल  कनेक्शन के जरिए शुद्ध पेयजल को उपलब्ध कराना है। परंतु सिर्फ सरकारी योजनाएं इस गंभीर संकट का निदान नहीं कर सकती। एक जिम्मेदार लेखक को भी आम जनता को जागरूक करने हेतु अपनी प्रतिबद्धता दिखानी होगी।

हिंदी ग़ज़ल हिंदी कविता की प्रमुख विधा है। वह अपने जन सरकारों के लिए भी जानी जाती है। नदी ,झील, पोखर  दरिया एवं समुन्दर हिंदी ग़ज़लकारों को किस तरह से प्रभावित करती है, यह देखना भी दिलचस्प होगा ।कहना न होगा कि हिंदी ग़ज़लकारों ने इसे कई बार बिंबो व प्रतीकों के द्वारा भी बहुत ही सरलता और सहजता से कहा है। इस आलेख में मैं हिंदी गज़ल के प्रमुख ग़ज़लकारों के शेरों के द्वारा यह उद्धृत करना चाहती हूँ कि हिंदी ग़ज़ल  किस तरह अपने सरकारों के प्रति प्रतिबद्ध है।

बलवीर सिंह रंग  ने अपने शेर में नदी ,निर्झर और समुन्दर के संबंध को बड़ी ही खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है।नदी का उत्स ही समुन्दर से मिलना है।नदी के हाथ झरना को जो पत्र भेजा गया है वह कोई साधारण पत्र नहीं बल्कि प्रेम की पराकाष्ठा है।यह प्रेम दैहिक नहीं बल्कि रूहानी है।

नदी के हाथ निर्झर को मिली पाती समंदर को

सतह भी आ गई गहराइयों तक तुम नहीं आए

दुष्यंत कुमार हिन्दी ग़ज़ल के प्रणेता हैं ।  वे उद्धृत शेर में गंगा नदी को बस नदी की तरह न देखकर जीवन के कष्ट से छुटकारा की तरह देखते हैं ।जब पीड़ा पर्वत की तरह हो गई हो तो उसे पिघलना ही होगा। दुख का पहाड़ होना एक मुहावरा है। हिमालय से गंगा निकालना समस्या का समाधान होना ही तो है। –

हो गई है पीर पर्वत -सी पिघलनी चाहिए

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

कमल किशोर श्रमिक कहते हैं आज पर्यावरण संकट में है।दरिया सूख रहे हैं ।पर उसके पास पानी के बदले आग है।

सूखे दरिया के किनारो को है पानी की तलाश

प्यास की बच्ची चली आई है अंगारों के पास

पुरुषोत्तम प्रतीक कहते हैं कि जल के लिए सभी अपने हैं ।समुन्दर,बादल ,नदी, झरने सब जगह पानी ही तो है।बिल्कुल वैसे ही जैसे पानी रे पानी तेरा रंग कैसा…

सागर, बादल, निर्झर, नदियां

जल का कौन पराया होता

माणिक वर्मा झील और बादल का अद्भुत बिम्ब प्रस्तुत करते हैं वे कहते हैं –

प्यासी झील लजाकर बोली

इधर से कब बादल निकलेगा

आनंद परमानंद कहते हैं कि जब तक आँखों में पानी है जिंदगी की फसल कभी मुरझा नहीं सकती।

जिंदगी तुमको कभी मैं सूखने दूंगा नहीं

मेरी आंखों में भरे हैं आज भी सागर कई

सूर्यभानु गुप्त अपनी ग़ज़लों मे समंदर की पड़ताल करते हैं, वे नदी के समंदर में विलीन होने की जगह तलाश रहे हैं।कश्तियों के संग वह देखना चाहते हैं कि नदी आखिर कहां समंदर से मिली है।

निकला हूँ इस नदी का समंदर को ढूंढने

कुछ दूर कश्तियों के अभी संग संग हूँ

बुद्धि सेन शर्मा ने अपने इस शेर से यह कहना चाहा है कि लोगों को अपनी जमीन पर ही रहना चाहिए।जिन्हें नाले की गहराई का अंदाजा नहीं है, वह दरिया को नापने की बात करते हैं, हम खुद को आंके, फिर कोई बात करें।

जरा से नाले में फिसले फिसल के डूब गए

जिन्हें गरुड़ था दरिया को है खंगाले हुए

कुंवर बेचैन गरीबों का दर्द समझते हैं। वे कहते हैं कि मुझे नही पता कि कल्याण की बातें कहां से होती है। सरकारी योजनाओं का लाभ किसे मिलता है। हम भी इंतजार में हैं। लाभर्थी का चयन कैसे हुआ, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। शेर देखें –

तुम्हारी ही तरह हम भी रहे हैं आज तक प्यासे

न जाने दूध की नदियां किधर होकर बहीं बाबा

बालकृष्ण गर्ग कहते हैं, आक्रोश तो बहुत है, लेकिन संवेदना आंसू बनकर आंखों से निकल रही है – शेर देखें –

धड़क रहे दिल में अंगारे

आँखों में दरिया बहता है

धनंजय सिंह कहते हैं, बाजारवाद के दौर में हर तरफ भीड़ का आलम है। ऐसा महसूस होता है कि मैं भी उसी भी़ड़ का हिस्सा हूँ और बाजारवाद के चंगुल में फंसकर दलदल में फंस रहा हूं शेर देखें –

इस तरह भीड़ के सैलाब से गुजरता हूँ

जैसे दलदल भरे तालाब से गुजरता हूँ

राम गोपाल सिंह ने इस शेर में कहा है कि कमल पाना है तो कीचड़ में जाना ही होगा।बिना गंदगी में उतरे तुम्हें कमल नहीं मिलेंगे। यानी जीवन में कुछ पाना है तो संघर्ष करना ही होगा, तभी कमल की तरह खूबसूरती जीवन में आयेगी

गंदले गंदले यह ताल ही  तो तुम्हें

मुस्कुराते हुए कमल देंगे

उद्भ्रांत कहते हैं कि मंजिल की तलाश में न जाने कितने सफर तय कर लिये। मुझे तो याद भी नहीं कि किस-किस रास्ते से गुजरा हूँ –

मैं कौन हूँ मैं क्या हूँ यही सोच रहा हूँ

तूफा हूँ कि दरिया हूँ यही सोच रहा हूँ

सहराओं से नदियों से पहाड़ों से न जाने

किस राह से गुजरा हूँ यही सोच रहा हूँ

एहतराम इस्लाम ने अपने शेर में कहा है, सत्ता की आगोश में आकर हम अपनी स्वार्थसिद्धि कर लेते हैं, लेकिन हमारा जीवन नर्क हो जाता है -धन की राहे ढूंढ लीं सत्ता की गलियां ढूंढ लीं

डूब मरने के लिए लोगों ने नदियाँ ढूंढ लीं

डॉ विनोद गुप्ता शलभ ने अपने इस शेर के माध्यम से कहा है कि मुसीबत जब आती है तो कोई न कोई उससे निकालने वाला भी मिल जाता है, शेर देखें-

आसमानों में कहीं आग लगी हो जैसे

इक नदी झूम के सहरा में बसी हो जैसे

दिनेश कुमार शुक्ल ने पानी की त्रासदी के बहाने यथार्थ लिखा है, मां पानी की तरह अपने बच्चों की जीवन-ऊर्जा को सींचती है, लेकिन जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो मां के उस कतर्व्य का कोई मोल नहीं रह जाता –

पानी घर मछली के सौदे

नदियाँ किसको दुख बतलाती

रामबाबू रस्तोगी ने सियासत पर चोटी की है, जब सियासत को जरूरत पड़ती है तो वह आपके पास होती है, लेकिन जब आपकी जरूरत हो तो सियासत का रंग बदल जाता है –

समंदर पर बरसता है नदी को भूल जाता है

सियासत दान बादल दोस्ती को भूल जाता है

योगेंद्र दत्त शर्मा कहते हैं कि हमारे सियासतदान की आँख मछली की तरह है, वे जनता की आंकांक्षाओं को समझते हैं. शेर देखें –

मछली की आँख पूरे समंदर को पी गई

सीपी में कांपता रहा जलदान का चेहरा

ओंकार गुलशन नदियों को अविरल बहने देने की बात करते हैं. वे कहते हैं कि नदियों को बांधा गया तो वह कहीं न कहीं अपना रास्ता बना लेगी, इससे जो विनाश होगा, उसे रोका नहीं जा सकता. शेर देखें –

इस बार देखिए तो नदी के चढ़ाव को

तूफां में न ले जाइए कमजोर नाव को

बस्ती को बहा दे न कहीं बाँध तोड़कर

इतना भी रोकिए न नदी के बहाव को

हरी लाल मिलन कहते हैं कि  बादल, वर्षा, सरिता और सागर भले  कलकल बहती रहे, लेकिन हमारी व्यथा तो बस आंसुओं से ही शांत होती है –  न बादल न  वर्षा न सरिता न सागर

ब्यथाओं की ज्वाला बुझाते हैं आँसू

विनय कुमार कहते हैं कि खुले में झील खूबसूरत दिखती है, लेकिन सागर के लिए जंगल जैस विस्तार चाहिए। शेर इस प्रकार है –

खुला में ढूंढता फिरता है झीलें

मगर सागर से सहरा मांगता है

वशिष्ठ अनूप कहते हैं कि नदी का मतलब वही जानता है, जिसके जलते पैरों को तपिश नदी की लहरों से बुझी हो, शेर देखें –

रेत पर पाँव जलते रहे रेत पर

जब नदी ने पखारा तो अच्छा लगा

हातिम जावेद सिमटती नदियों की पीड़ा का बयान करते हैं. उनकी शिकायत समंदर से है. नदियों को विस्तार देने में समंदर की खामोशी को उन्होंने कुछ यूँ बयां किया है –

लहू नदियों का पीता आ रहा है

समुन्दर ने अभी तक क्या किया है

सुशील साहिल कहते हैं नदी में जब तक पानी रहेगा, यह दुनिया बची रहेगी, शेर देखें –

खत्म दुनिया अभी नहीं होगी

आज भी कुछ नदी में पानी है

सुरेंद्र चतुर्वेदी ने आंसुओं की नमी को नदियों और दरिया से बेहतर माना है. उनका मानना है कि जब आँखें बरसती है, तो नदियों की तरलता कम हो जाती है

पर्वत झरने दरिया और बरसातें थीं

सफर में लेकिन सबसे आगे आंखें थीं

इंदु श्रीवास्तव कहती हैं कि साहिल नदी के सच को बेहतर जानता है. उसे पता है कि कौन-सी नदियाँ कब और कहां विलुप्त हो गयी, शेर देखें –

किसको पता है रेत में खोई नदी का सच

साहिल ही जानता है मेरी तिश्नगी का सच

अशोक अंजुम कहते हैं कि राह में चाहे जितनी मुश्किलें हों लेकिन बिना संघर्ष सफलता नहीं मिलती. प्यासे को दरिया तक आना ही पड़ता है़।

भले ही धूप हों, कांटें हों चलना ही पड़ता है

किसी प्यासे को घर बैठे कभी दरिया नहीं मिलता

विवेक भटनागर दरिया की तरह चलने की बात कहते हैं. उनका शेर इस बात को पुख्ता करता है कि वक्त के साथ नहीं चलने पर व्यक्ति मंजिल से दूर हो जाता है।

वक्त का दरिया बहुत तेज है चलते रहिए

वक्त के साथ में न चलिए तो डूबा देता है

हरीश दरवेश  इस शेर में लाल पानी से बचने की सलाह देते हैं. वे कहते हैं कि जीवन में उजाला भरना है तो लाल पानी की नदी से बचना होगा।

अंधेरे में तुम्हें ही फिक्र रखनी है उजाले की

उन्हें तो लाल पानी की नदी में डूब जाना है

समीर परिमल कहते हैं कि जिंदगी दरिया बन भी जाए तो पांव रखने की जमीन की तपिश कम नही होती. शेर देखें –

मेरे ख्वाबों में भी पांव जलने लगे

बन के दरिया नज़र में उतर जिंदगी

अनु जसरोटिया धरती के दोहन को अपने शेर में व्यक्त करती हैं। वे कहती हैं कि ऐसी ही हालत रही तो समंदर के सिवा कुछ नहीं बचेगा।शेर देखें –

पाँव रखने को भी बाकी न बची जो धरती

क्या समंदर के तले जाके रहेगी दुनिया

अभिनव अरुण कहते हैं कि गंगा निर्मल है और हमेशा रहेगी हम गंगा को प्रदूषित कह कर उससे दूर नहीं हो सकते।शेर देखें –

दूषित होकर भी गंगा, गंगा ही है

बेशक हमने अपना ही नुकसान किया

मालिनी गौतम कहती हैं कि नदी का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। समंदर में भले ही लाख गहराई और फैलाव हो, लेकिन उसकी बूंदों की मिठास की बराबरी समंदर नहीं कर सकता। शेर देखें –

समंदर दे नहीं सकता किसी को बूँद भर पानी

वो मीठी सी नदी फिर भी समुद्र में समाती है

वह बहती इक नदी है तुम उसे पोखर समझना मत

है इतना वेग उसमें राह का पत्थर हटाती है

राकेश रंजन कहते हैं, झूम के आने वाली हवा, झरना से नहीं आती। वह कहीं से भी आ सकती है, लेकिन हवा हमेशा झरना की याद दिलाती है, शेर देखें –

झरना हूँ क्या जो गाता ही रहता हूँ उसका नाम

आती है झूम के वो मिलन को हवा है क्या

माधव कौशिक ने जीवन के जद्दोजहद को इस शेर में ढाला है। उन्होंने कहा है, भंवर के बीच दरियों का पार करना जीवन की चुनौती है, यह शेर देखिए –

बस एक काम यही बार-बार करता था

भंवर के बीच से दरियों को पार करता था

अजय जनमजेय कहते हैं, जीवन में जो संवदेना का मरूस्थल है, उसमें कोई हरापन ला सकती है तो वह नदी है, शेर देखें –

एक मरुथल फैलता जाता था यादों में मेरी

ऐसे में लाई हरापन उस नदी का शुक्रिया

डॉ रंजना गुप्ता कहती हैं कि नदियों का पानी अब किसी काम का नहीं. नदियाँ प्रदूषित हो चुकी हैं। अब इसको बचाने की जरूरत है –

है हवाओं में जहां पानी नदी का भी विषैला हो गया

आसमां बेबस जमीं लाचार हमको बोलने तो दीजिए

गरिमा सक्सेना कहती हैं कि नदियां हमें इस बात का अहसास कराती हैं कि हमें भी अपनी संवेदनओं के साथ बहना है। शेर देखें –

वो पत्थर रेत बन बैठे समुंदर तक पहुंचने में

नदी ने जब उन्हें गरिमा जरा बहना सिखाया है

ए .एफ. नज़र ने अपने शेर में कहा है, यह बिल्डिंगें और बस्तियां, इसलिए मौजूद हैं कि हमारी नदियां अविरल बह रही हैं. नदियां नहीं होंगी तो हमारा जीवन दूभर हो जायेगा।

राह का सच झील के दामन पर लिक्खा है नज़र

थरथराती बिल्डिंगें और गीली गीली बस्तियाँ

रमेश कँवल कहते हैं कि नदियाँ भले ही जीवन दायिनी है, लेकिन नदियाँ डुबाती भी है –

किनारे खड़ा  था भला आदमी

नदी में रहा डूबता आदमी

अंजू केशव कहती हैं लहरों के साथ अठखेलियां तो ठीक है, लेकिन जब नदी के साथ छेड़खानी हो तो बर्बादी का मंजर सामने आता है –

कायदे लहरों के जब बेबाकियों तक आ गए

तब नदी ने दायरे बर्बादियों तक आ गए

सत्यशील  राम त्रिपाठी नदियों को जीवन दायिनी मानते हैं, उनका कहना है कि नदियां अविरल बहती हैं। हवा के झोंके से जब नाव चलने लगती है तो नदियों का इसमें योगदान है-

साथ थोड़ा सा हवा ने दे दिया

नाव फिर से झील में चलने लगी

डॉक्टर मंजीत सिंह कहते हैं, नदियां अब विलुप्त हो रही हैं। उस नदी से अपेक्षाएं भी समाप्त हो गयी हैं। वैसी नदी में अब जाल फेंकने का कोई मतलब नहीं रहा।

वह नदी जो सूख कर अब रेत है

उस नदी में जाल फेंका मत करो

सुरेखा कादियान कहती हैं, नदी, झरना सब जीवनदायिनी है। मीठा-सा झरना जीवन के लिए जरूरी है. प्यास मिटाने के लिए इस झरने के अलावा कोई दूसरे विकल्प की जरूरत नहीं।

उस ही रास्ते से मेरी प्यास गुजरती है

जिस रास्ते मीठा सा इक झरना पड़ता है

नज़्म सुभाष अपने शेर में कहते हैं, झील की पानी में फूल तो खिलते हैं, लेकिन मछिलयों को आश्रय नहीं मिलता. पानी की कैटेगरी को वे अपने शेरों में व्यक्त करते हैं।

झील में शायद कोई जादू का पानी है जनाब

फूल केवल खिल रहे हैं मर रही हैं मछलियां

डॉ भावना कहती हैं, समंदर एक सैलाब है, लेकिन अगर ठान लिया जाए तो वहाँ से भी मोती निकाला जा सकता है।

समंदर से मोती निकालने के बहाने शायरा ने आत्मबल को बढ़ाने की बात कही है।

समंदर से भी मोती छान लूंगी

किसी भी दिन अगर मैं ठान लूंगी

राहुल शिवाय नदियों को लेकर काफी चिंतित हैं. ये कहते हैं कि हमने नदियों को सीमित कर दिया है. अपने स्वार्थ के कारण नदियों को हम सिमटने के लिए बाध्य कर रहे हैं-

नदी के रास्ते में कंकरीट क्या बोये

बदल गयी है नदी रिसते चंद छालों में

डॉ. रंजना गुप्ता कहती हैं, दरियां हमारी जिंदगी का हिस्सा है., लेकिन हमने खुद दरिया को गंदा कर दिया है। इसी का खामियाजा हमें भुगतना पड़ रहा है

दरिया तो निर्मल बहता था

कंकड़ हमने ख़ुद डाले है

डाॅ जियाउर रहमान जाफ़री ने अपने शेर में नदी को प्रतीकात्मक  रूप में  व्यक्त किया है।नाव को गमन करने के लिए पानी की जरूरत होती है।पर,नाव ही अगर पानी के खिलाफ साजिश करे तो उसका हस्र क्या होगा?

नदी से करने लगी थीं जो साजिशें इतनी

वो नाव डूब गयी मछलियाँ पकड़ते हुए

अनिरुद्ध सिन्हा नदी और समुन्दर के माध्यम से बड़ी बात कह जाते हैं वे कहते हैं कि नदी तो अब भी समुन्दर में मिलने के लिए बेचैन है मगर रास्ते की दुश्वारियाँ उसे मिलने नहीं देती।शायर का इशारा किस तरफ है इसे सहज ही समझा जा सकता है ।

समुन्दर दूर होता जा रहा है

नदी की बेबसी को कौन समझे

डॉ भावना कहती हैं, नदियाँ जीवन दायिनी हैं। वे हमें जीवन देती हैं, लेकिन जब हम नदी के रास्ते को  रोक देते हैं तो वे हमें डूबोती भी हैं।

नदी के द्वार पर जाकर बसेरा मत बना लेना

बचाती है ये जीवन को तो सब कुछ भी डुबाती है

नदियाँ हमारे लिए माँ समान है। यह केवल जमीन ही सिंचित नहीं करती, बल्कि अपनी गतिशीलता से हमें निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देती है। ग़ज़लकारों ने नदी के कई रूपों का वर्णन किया है। नदी अपने विस्तृत रूप में हमारे जीवन में भी मौजूद है। नदी और झील को कई गज़लकारों ने प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया है। आँखों से बहती नदियां भी इस आलेख में समग्रता से रेखांकित हुई है। नदियाँ, झील और पोखर हमारी जरूरत है। यदि यह नहीं होती तो शायद हम जीवित भी नहीं रहते, लेकिन एक नदी हमारे बाहर हमें जीवन देती है, दूसरी नदी हमारे अंदर है, जो हमारी आँसुओं से निर्झर झरने का रूप लेती है।नदी चाहे भीतर हो या बाहर , नदी हमारे जीवन की शर्त है।यहाँ कई ग़ज़लकारों ने नदी की व्याख्या अपने- अपने समझ से की है।लेकिन इतना जरूर है कि जीवन में नदी का होना जरूरी है, चाहे बाहर हो या हमारे अंदर।

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परिचय : डॉ भावना, आद्या हाॅस्पिटल, सीतामढ़ी रोड, जीरोमाईल, मुजफ्फरपुर 842004

 

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