दुष्यंत के सीने में जलती आग
- डॉ अभिषेक कुमार
अगर वास्तव में तुम
दुष्यंत के सीने में
जलती आग को
महसूस करना चाहते हो तो
कभी जाकर देखो
उस सड़ान्ध बदबू वाली झुग्गी में
जहाँ सुख चुके हाथ – पैर
और बढ़ी हुई पेट
के बीच जमीन पर पड़े
गंदले कटोरे में बासी भात
का छप्पन भोग सजता है
कभी जाकर देखो , और महसूस करो
उस तंग गली में बने घरों
की सरकती खिड़कियों को
जहाँ रोशनी कम आती है
और सभ्य इंसान अपनी सीलन
को उस बेबस लाचार दर्द से तड़पते
स्त्री के जिस्म में छोड़ने जाते हैं
कभी जाकर देखो उस चौक पर
जहाँ आज भी सुबह शाम
दस – बीस आदमी जमा होकर
वर्तमान की विषमताओं पर
निष्पक्ष चर्चा करते हैं
कभी जाकर देखो उस गाँव मे
जहाँ आज भी मरीजों को
खटिया पर टाँग कर
चार आदमियों के सहारे
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद तक
लाया जाता है
कभी बात करो उस बीस साल के युवा से
जो मेरिट रहने के बाद भी
पंद्रह सौ की नौकरी के लिए
अपनी चप्पलें घिस रहा है
ताकि जवान होती बहन ,
बूढ़े हो रहे माँ-बाप को
कुछ सहारा दे सके
कभी जाकर देखो और महसूस करो
मोटे सीसे वाले चश्मे के पीछे से
झाँक रही उन निराश आंखों की बेबसी को
जो अपने हक के लिए
सरकारी दप्तरों के सीढ़ी पर
बैठकर हॉफ रहे हैं
कभी जाकर देखो उस ईमानदार
अफसर को जो व्यवस्था बदले चला था
मगर उसके पर इस तरह से कतर दिए गए
की वो उड़ने की तो छोड़ो
रेंग कर चलने में भी अक्षम हो गया है
अगर वास्तव में तुम
दुष्यंत के सीने में
जलती आग को
मह्शूश करना चाहते हो तो
ऐ.सी. कल्चर वाले
साहित्यिक गोष्ठियों और
मीडिया के चमकते फ्लेश से
बाहर निकल कर
एक बार आम आदमी के सीने में
धधकती आग को महसूस करो
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परिचय : डॉ अभिषेक कुमार
ग्राम + पोस्ट – सदानंदपुर
थाना – बलिया
जिला – बेगूसराय ( बिहार )
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