बीमार व्यक्ति हमेशा भ्रम में जीता है. कभी वह देखता है कि उसे पहाड़ पर से कोई धक्का दे रहा है तो कभी कई नरमुंड उसका पीछा कर रहे हैं और वह भागा जा रहा है… भागता जा रहा है. लेकिन वह जैसे ही यथार्थ की दुनिया में कदम रखता है तो उसके स्वप्न बदल जाते हैं. परिस्थितियों से भागता नहीं, वह इंतजार करता है, सब कुछ ठीक होने का. पर, कुछ भी ठीक नहीं होता. स्थितियां बद से बदतर हो जाती है, तब बौद्धिक तबका के आगे कई प्रश्न उठते हैं. पिछले दिनों गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से 40 बच्चों की मोत को लेकर सोशल मीडिया पागलों की तरह जहर उगलता रहा. किसी ने डॉक्टर को जल्लाद कहा तो किसी ने जीवनपर्यंत डॉक्टरों को न दिखाने की कसमें खायी. कुछ ही दिनों बाद पता चला कि ये सब कमीशन का खेल था. चंद पैसे मानव जीवन से महत्वपूर्ण हो गये हैं. क्या मनुष्य के पास कोई ऐसा जेब है तो स्वर्ग लोक तक जमीर बेच कर कमाए हुए अकूत धन को ले जा सके. धन उपार्जन की यह कैसी होड़ है. आखिर, हम ऐसे धन का करेंगे क्या ?
बच्चों की मौत की पीड़ा कम भी नहीं हुई थी कि बिहार बाढ़ की भीषण चपेट में आ गया. लगभग 500 से अधिक जानें गयीं. बच्चों को दफनाने के लिए सूखी जमीन तक मयस्सर नहीं थी. हर तरफ हाहाकार मचा था. लोग रात-रात भर बांध पर नजरें टिकाएं थे. जैसे ही बांध टूटने की सूचना मिलती लोग बच्चों और परिवार को सुरक्षित रिश्तेदारों के यहां भेजने के इंतजाम में लग जाते. इस भौतिक युग में जहां लोग टेलीफोन पर हालचाल लेने पर कतराते हैं. इस आपदा ने सबको एक कर दिया. इस त्रासदी में धन की महत्ता को सिरे से नकार कर मानवता को महफूज करने का एक अवसर मिला. शरणार्थी शिविर हो या रिश्तेदारें का घर हर आदमी आदमी की भाषा समझ चुका था. डूब चुके थे ईंट, बालू और सीमेंट से बने आलीशान आशियाने. रिश्तेदारों की झोपड़ियां ही प्यारी लग रही थीं. प्रकृति के आगे हम कितने बेबस हैं, कितने लाचार हैं, यह आज सभी को समझ में आ रहा है. बिहार अभी बाढ़ से जूझ रही रहा है कि राम-रहीम के कारनामों ने हमें और विचलित कर दिया. सीधी-सादी जनता को अपने जाल में फंसा कर उल्लू सीधा करने वाले इन बाबाओं की पोल खोल जाते-जाते सुकून जरूर दे गया. सीबीआई के जज जगदीप सिंह को सैल्यूट करने का मन हो आया. जिन्होंने भारी दबाव के बाजवूद 20 साल की सजा व 30 लाख जुर्माना सुना कर हमें गौरवान्वित होने का अवसर दिया.लेकिन भीड़ के उपद्रवी होने का भी एक रहस्य है, जिसकी पड़ताल गंभीरता से होनी चाहिए …
– भावना