पुस्तक समीक्षा : अनिरुद्ध सिन्हा

मानवीय संवेदना के रस से युक्त”अभी तुम इश्क़ में हो”

छंदमुक्त कविता के जिस दौर में लोग मांग के अनुसार कविता लिख रहे हों, उस दौर में अगर कोई अपने गीतों और ग़ज़लों के माध्यम से साहित्य में अपनी मज़बूत उपस्थिति दर्ज़ करवा रहा हो तो थोड़ा चौंकना पड़ता है। ऐसे तो भारतीय कविता का छंद ही उसका सबसे बड़ा यथार्थ है। भारत की सांस्कृतिक विरासत ही शब्दमय है।लेकिन आधुनिक दौर में कविता लेखन के लिए सुविधाजनक स्पेस तैयार कर लिया गया है । कविता लेखन का सारा खेल आत्म सम्मोहनकारी मुग्धता से एक विराट लेखकीय बोध की तरह सम्पन्न होता रहा,जहाँ कविता गौण हो गई और कवि प्रधान हो गए।आश्चर्य तो तब होता है जब ऐसी कविता के पक्ष में प्राध्यापकीय अय्यासी का जलवा भी देखने को मिल जाता है। शास्त्रीय काव्य शायद ही इस प्रकार की कविता को कविता के रूप में स्वीकार करेगा। कविता को काव्यात्मक बनाने के लिए छंद के विभिन्न रूपों का सहारा लेना होगा। शब्दों की पहचान,उनके गूढ अर्थों का ज्ञान,उनकी अर्थच्छटाओं से परिचय और उनके सांगीतिक लक्ष्यों का ज्ञान आवश्यक है। गति को क्रमबद्ध करने,सुनाई देनेवाली ध्वनियों को क्रमबद्ध करने का प्रयास गीत और ग़ज़ल रचने का एक महत्वपूर्ण और स्थायी कार्य है और यह सब निरंतर साधना के बल से ही मिलता है।
सार्थक लेखन और सर्जनात्मकता की इसी दिशा की खोज में पंकज सुबीर की आकर्षक कलेवर में एक पुस्तक “अभी तुम इश्क़ में हो”शिवना प्रकाशन से छपकर पाठकों के समक्ष आई है। 120 पृष्ठीय पुस्तक में ग़ज़ल,गीत कविता और कहानी हैं जिनमें सौंदर्य और प्रेम के कई ऐसे बिम्ब हैं जो सुबीर के भीतर की नवीनता,सूक्ष्मता और आज के प्रेम की जटिलता को दर्शाते हैं। इनके प्रेम का विषय व्यापक और जटिल है।

अजनबी हम आज से हैं पर सफ़र तो है वही
सिर्फ़ कह देने से होता है कहीं रस्ता अलग
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हमारे दिल का वो आँगन जहाँ तारे न थे कल तक
उसी में चौदहवीं का चाँद पूरा जगमगाया है
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ये दुनिया है मुहब्बत की,नहीं दफ़्तर है सरकारी
यहाँ मत सोचिए कि कुछ बिना पैसे नहीं होगा
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प्रेम की सबसे बड़ी विशेषता है वह भले क्यों न विभिन्न रूपों में प्रकट हुआ हो,सबकी राह एक ही है और वह है सौंदर्यप्रत्यय जिसका मतलब रस तत्व से। रस और आनंद तथा आनंद और आत्मतत्व एक ही हैं। अस्तु,रस आत्मा की सरलतम और स्वकीय अनुभूति है और आत्म सुंदरता से यह गुण उदित होता है। इसको समझने के लिए सौंदर्यवादी नियमों से होकर गुज़रना पड़ता है। वर्णित प्रथम शेर में जीवन के विलक्षण यथार्थ की ओर इशारा किया गया है। हम यहाँ मान सकते हैं प्रेम का जीवन दर्शन, जीवन को स्वप्नशील और आशावादी नहीं बनाता और न ही जीवन जगत को आकर्षित करता है,विकर्षित और विरक्त ही करता है।इस शेर के सामने जीवन को रखकर देखना होगा जहाँ जीवन के यथार्थ को नए सिरे से विचारने और पुनर्मूल्यांकित करने की ज़रूरत महसूस होगी। पंकज सुबीर कौन सा सफ़र की बात कर रहे हैं यह जानना ज़रूरी हो जाता है। प्रेम और मानव-जीवन दोनों अपनी सगुण वास्तविकता में मूर्त हुए हैं और यह चित्रण वियोग से होते हुए चेतना के यथार्थ तक जाता है। निसर्ग प्रकृति और मनुष्य की कृतियाँ दोनों के भीतर समान्य रूप से यह शेर प्रवेश करता है।
संग्रह में संकलित इस गीत की पंक्तियों में जीवन तत्व की स्थिरता और चिरंतनता की अभिव्यक्ति मिलती है जो जीवन दर्शन की कोमल प्रियता का लक्षण ही कहा जा सकता है…
दरख्तों से गिरते हुए ज़र्द पत्ते
हवाओं में यूँ ही बिखरते रहेंगे
ये मौसम है मौसम,कहाँ ये रूके हैं
गुज़रते रहे हैं,गुज़रते रहेंगे
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भले आज कितनी हसीं ज़िंदगी है
मगर मौत हर वक़्त सिर पर खड़ी है
हक़ीक़त यही है,मगर सब इसी से
मुकरते रहे हैं,मुकरते रहेंगे
ऐसा नहीं कहा जा सकता वर्णित गीत की पंक्तियां निराशा की बंद गली में अवसाद और वेदना की अस्वस्थ भावना प्रकट कर रही हैं। मेरे विचार से दरख्तों से गिरते हुए ज़र्द पत्ते के माध्यम से जीवन यथार्थ की इससे अच्छी व्याख्या हो ही नहीं सकती।
मनोवैज्ञानिक यथार्थवाद के हिमायती कवि/लेखक पंकज सुबीर की इस पुस्तक में जीवन प्रेम के मानोवैज्ञानिक कुहासे से निकालने लिए जीवन यथार्थ की आंधियों के साथ ताल-मेल बिठाने की कोशिश की गई है। मनोविश्लेषण और अंतश्चेतनावाद के सूक्ष्म सिद्धांतों के प्रकाश में जीवन और जीवन प्रेम की नवीनता,मौलिकता और आयाम की गहराई की व्याख्या पाठकों को चौंकाने में सफल हुई है। कुल मिलाकर पुस्तक में जीवन यथार्थ की एक दार्शनिक उद्भावना है जिसके आस-पास प्रेम है जो लौकिक भी है और अलौकिक भी।

समीक्षित कृति
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अभी तुम इश्क़ में हो
कवि/लेखक-पंकज सुबीर
प्रकाशक-शिवना प्रकाशन,सीहोर
मूल्य-100/-
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परिचय : अनिरुद्ध सिन्हा,गुलजार पोखर,मुंगेर(बिहार)811201 मोबाइल-7488542351
Email-anirudhsinhamunger@gmail.com

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