विशिष्ट गजलकार : ओमप्रकाश यती

1
कभी लगती मुझे भीगे नयन की कोर है अम्मा
मगर हरदम मेरी उम्मीद का इक छोर है अम्मा

बिखरने से बचाती है, सभी को बाँधकर रखती
अनूठे प्रेम की, ममता की ऐसी डोर है अम्मा

पिता को टोकती है, रोकती है वो कभी मुझको
कभी इस ओर है अम्मा, कभी उस ओर है अम्मा

हमें लगता है जब भी रात काली ख़त्म कब होगी
चली आती हमारे पास बनकर भोर है अम्मा

विदा के बाद गुड़िया की,सम्हल पाई नहीं अब तक
भले मजबूत लगती है मगर कमज़ोर है अम्मा

2
जिसने गमलों से सँवारी छत है
उसके फूलों की तो क्यारी छत है

ध्यान इतना तो ज़रा रखिएगा
आपका फ़र्श हमारी छत है

धूप थोड़ी सी हमें भी दीजै
आपके पास तो सारी छत है

कौन दीवार की हालत देखे
सबको बरसात में प्यारी छत है

चाँदनी आके यहाँ लेटेगी
इसलिए हमने पसारी छत है

प्रेम के पाठ पढ़े थे जिसपर
अाज भी याद वो प्यारी छत है

जो हमेशा है हमारे सर पर
वो हथेली ही हमारी छत है

3
हँसी ख़ामोश हो जाती, ख़ुशी ख़तरे में पड़ती है
यहाँ हर रोज़ कोई ‘दामिनी’ ख़तरे में पड़ती है

जुआ खेला था तो ख़ुद झेलते दुशवारियाँ उसकी
भला उसके लिए क्यों द्रौपदी ख़तरे में पड़ती है

हमारे तीर्थों के रास्ते हैं इस क़दर मुश्किल
पहुँच जाओ अगर तो वापसी ख़तरे में पड़ती है

पहाड़ों – जंगलों से तो सुरक्षित है निकल आती
मगर शहरों के पास आकर नदी ख़तरे में पड़ती है

तभी वो दूसरे आधार पर ईनाम देते हैं
अगर प्रतिभा को देखें, रेवड़ी ख़तरे में पड़ती है

ज़रा बच्चों के ‘मिड-डे-मील’ को तो बख़्श दो भाई
ये हैं मासूम, इनकी ज़िन्दगी ख़तरे में पड़ती है

परोसा है ग़ज़ल के नाम पर फिर ‘फेसबुक’ ने कुछ
नहीं ‘लाइक’ करूँ तो दोस्ती ख़तरे में पड़ती है

4
जहाँ मन हो बिछा लेते हैं बिस्तर लेके चलते हैं.
वो घर-परिवार, बर्तन, नून-शक्कर लेके चलते हैं.

न जाने किस जगह कब आइनों से भेंट हो जाए,
वो जब चलते हैं तो दो-चार पत्थर लेके चलते हैं.

अब उनके पास दौलत है,अब उनके पास है रूतबा,
अकेले क्यूँ चलेंगे लाव – लश्कर लेके चलते हैं

भले ही क्रोध के अंगार लेकर आ रहे हैं वो,
हम उनके पास अपने ढाई आखर लेके चलते हैं.

यहाँ तो डर लगा रहता है बुलडोजर का ही हरदम
चलो भाई यहाँ से टीन-टप्पर लेके चलते हैं

दिलों में खाइयाँ लेकर पड़े हैं चुप्पियाँ ओढ़े
हम उनके बीच कुछ संवाद के स्वर लेके चलते हैं.

5
उड़ता है साथ लेकर अरमान किसानों का
बादल नहीं है ये है भगवान किसानों का

हिन्दू ने जलाया तो, मुस्लिम ने जलाया तो
हर बार ही जलता है खलिहान किसानों का

बारिश नहीं हुई तो,बारिश अधिक हुई तो
हर हाल में होता है नुक़सान किसानों का

लॉकर में नहीं रक्खा,बंकर में नहीं रक्खा
आकाश के नीचे है सामान किसानों का

यह देश किसानों का,कहते हैं सभी लेकिन
इस देश में कब होगा सम्मान किसानों का
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परिचय : लेखक अभियंता हैं. इनकी दो गजल संग्रह प्रकाशित है. देश के कई महत्वपूर्ण कवि-सम्मेलनों में शिरकत की है. कई संस्थानों की ओर से इन्हें सम्मानित किया जा चुका है.
संपर्क – एच – 89, बीटा – II ग्रेटर नोयडा – 201308
मो. 09999075942
yatiom@gmail.com

 

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