खास कलम : अजय नमन

1
ये समझना अधूरी हैं बातें कई
उँगलियाँ हाथ की जो शरारत करें

दूर हो जायेंगी मुश्किलें राह की
दो क़दम ही सही साथ चलना कभी
रोज़ धागे सा जलता मिलूँगा तुम्हे
मोम सी देह लेकर पिघलना कभी

कल किताबों में हम क़ैद हों उम्र भर
अब चलो इस तरह की मुहब्बत करें
ये समझना अधूरी हैं बातें कई
उँगलियाँ हाथ की जो शरारत करें

बात ही बात में रूठ जाती है वो
क्या कहूँ किस तरह से मनाता हूँ मैं
कल नई जिंदगी जी सकूँ इसलिए
रोज़ बीते दिनों को भुलाता हूँ मैं

दूर होता नहीं दर्द सीने से जब
आँसुओं से भला क्या शिकायत करें
ये समझना अधूरी हैं बातें कई
उँगलियाँ हाथ की जो शरारत करें

दूर कितने भी हों कल किनारे यहाँ
बूँद कोई नदी से कहाँ दूर है
पास तुम हो तो सारा जहाँ पास है
दूर तुम हो तो सारा जहाँ दूर है

बढ़ न जाएं कहीं फासले और भी
दूरियों से अगर हम बगावत करें
ये समझना अधूरी हैं बातें कई
उँगलियाँ हाथ की जी शरारत करें

2
तुम अधिक उसको समझना
मैं जहाँ पर कम लिखूँगा

हर खुशी से दूर हूँ मैं हर खुशी है दूर मुझसे
प्यार के कल फिर शुरू होंगे नये दस्तूर मुझसे
पूछ लेना आसमां से जानते हैं ये सितारे
चार दिन से ही नहीं हम तो जनम से हैं तुम्हारे

अर्थ जो चाहे निकालो उम्र भर के ग़म लिखूँगा
तुम अधिक उसको समझना मैं जहां पर कम लिखूँगा

क्या कहूं कितनी मुझे अब याद आती है तुम्हारी
नींद आँखों से लिपटकर है हज़ारों बार हारी
जी लिया था कल को मैंने हाँ तुम्हारे साथ रहकर
दो किनारों में बटे हैं दो कदम हम साथ बहकर

ये क़लम जब भी उठेगी प्यार के मौसम लिखूंगा
तुम अधिक उसको समझना मैं जहाँ पर कम लिखूँगा

3
आज खोलो अधर तुम नया कुछ लिखूँ
रोज़ गाता हूँ मैं गीत गाये हुए

आज दिल भी धड़कने से कर दे मना
इस तरह से न मुझको सताओ अभी
मुस्कुराकर गले से लगा लो मुझे
उँगलियाँ हाथ से न छुड़ाओ अभी

याद आया मुझे आईना देखकर
इक ज़माना हुआ मुस्कुराये हुए
आज खोलो अधर तुम नया कुछ लिखूँ
रोज़ गाता हूँ मैं गीत गाये हुए

डाल से बेड़ियां ये ज़माना भले
रोक सकता नहीं आज मेरे कदम
रूह से रूह अब मिल गयी इस तरह
दो बदन का बचा ही कहाँ है भरम

नींद आएगी मुझको कहाँ उम्र भर
ख़्वाब तेरे अगर जो पराये हुए
आज खोलो अधर तुम नया कुछ लिखूँ
रोज़ गाता हूँ मैं गीत गाये हुए

नाम उठने का लेती नहीं है कलम
सुन रहा हूँ कि स्याही भी नाराज़ है
लौट आती है कुछ दूर जाकर अजय
प्यार की जब भी दी मैंने आवाज़ है

मैं अकेला नहीं हूँ सफर में यहां
हैं सितारे अभी जगमगाये हुए
आज खोलो अधर तुम नया कुछ लिखूँ
रोज़ गाता हूँ मैं गीत गाये हुए

4
उधर वो भूख से तड़पे इधर भर पेट खाऊँ मैं
कोई अपना पुकारे तो कहो कैसे न जाऊँ मैं

गुज़ारी रात काटे दिन मगर गुम है ख़बर तेरी
जगत को भूल बैठा पर न भूला हूँ डगर तेरी
समझ पाया नहीं अब तक न होती तुम तो क्या करते
ज़माना तो डराता ही स्वयं से भी स्वयं डरते

जो रूठा ही नहीं मुझसे उसे कैसे मनाऊँ मैं
कोई अपना पुकारे तो कहो कैसे न जाऊं मैं

कभी वो हार जाती थी कभी मैं हार जाता था
भरे तूफान में मिलने समंदर पार जाता था
अकेले तुम भले होगे अकेले हम नहीं रहते
वही आँसू मुझे प्यारे जो आँखों से नहीं बहते

कि उससे प्यार है कितना कहो कैसे बताऊँ मैं
कोई अपना पुकारे तो कहो कैसे न जाऊँ मैं

5
लोगों को कितना समझाया
हमने खोकर ही सब पाया
आँसू छोड़ गया आँखों में
दुख में जिसका साथ निभाया

लिखते लिखते ग़म के किस्से
टूटी आज कलम है मेरी
सबने देखे शब्द बिखरते
आँख न देखी नम है मेरी

देख मुखौटे इंसानों के
मुझको कोई रूप न भाया
आँसू छोड़ गया आँखों में
दुख में जिसका साथ निभाया

जो कहने से घबराता था
अब कहने वो आया हूँ मैं
गीतों का साया है मुझमें
या गीतों का साया हूँ मैं

वो ख़ुद मुझको याद नहीं है
जो सबको सौ बार बताया
आँसू छोड़ गया आँखों में
दुख में जिसका साथ निभाया

 

कुछ शब्दों में लिख जाएगी
मेरे जीवन की परिभाषा
मरघट पे ही पूरी होगी
इस तन की अन्तिम अभिलाषा

अन्त समय ये सोच रहा हूँ
आख़िर क्यूँ दुनिया में आया
आँसू छोड़ गया आँखों में
दुख में जिसका साथ निभाया

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *