विशिष्ट गीतकार : रंजन कुमार झा

बीती यादों के अनगिन सहारे लिए
गीत मैंने लिखे हैं तुम्हारे लिए

वो तुम्हारी छुअन का जो अहसास था
मिल रही निज धरा से ही आकाश था
मांग हमने गगन से सितारे लिए

कोई तुमसे जुदा कर, न ले जाए छिन
दो तुम्हारे नयन तकते थे रात-दिन
उन नयन से मिलन के इशारे लिए

पर मेरी साधनाएं अधूरी-विकल
रह गयी, गैर के संग गए तुम निकल
आँख के बहते अश्रु के धारे लिए

अब हो उस पार तुम बीच में है नदी
बिन तुम्हारे लगे चार पल भी सदी
बह रही धार गुमसुम किनारे लिए

(२)
तुम्हें देख मेरे गीतों ने अपना है शृंगार किया

तुम आईं तो मन-आँगन की महक उठी यह फुलवारी
गेहूँ-सरसों के खेतों-सी झूम रही मन की क्यारी
ऋतु वसंत आया जीवन में, खुशियों ने अभिसार किया

शब्दों को हैं प्राण मिल गए, मिली काव्य को है काया
कलम हो रहे मतवाले, छंदों ने गान मधुर गाया
मुग्ध नयन से कविताओं ने प्रिय! को चूमा,प्यार किया

तुम आईं जीने की आशा लिए हुए ज्यों आँचल में
जैसे काले मेघ बरसने आन पड़े हों मरुथल में
खुशियों से भींगी आँखों ने गालों को मझधार किया

 

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