आजा तेरे हुस्न का सदक़ा मैं उतार दूँ
फूल सारे बाग़ के आज तुझपे वार दूँ
तेरी सारी उलझनें हँस के मैं संवार दूँ
तेरे सारे रंजो ग़म खुशियों से बुहार दूँ
हर ख़ुशी तुझे मिले प्यार बस मुझे मिले
बेक़रारी ले के मैं चैन दूँ क़रार दूँ
ये ज़माना तुझको भी याद मुद्दतों करे
अक्स तेरा अपने लफ़्ज़ों में यूं उतार दूँ
इल्तिज़ा है मेरी ये दे मुझे तू इतना हक़
सोचते हुए तुझे ज़िन्दगी गुज़ार दूं
ख्वाइशें कई मेरी ,एक है ये उनमें से
अपनी ख्वाहिशों का मैं तुझको एक हार दूँ
रूठ कर छुपा है क्यों शायरी के फन मेरे
आ तुझे संवार दूं आ तुझे निखार दूं।
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कुछ दिन से तेरे साथ कोई बात नहीं है
लगता है मुद्दतों से मुलाक़ात नहीं है
कुछ फूल हैं सूखे हुए कुछ अश्क़ हैं ताज़ा
देने को तुम्हें और कुछ सौग़ात नहीं है
ख़ाली नहीं इक दिन भी तसव्वुर से तेरे यार
ग़ाफ़िल तेरी यादों से कोई रात नहीं है
नज़रों से समझ जाऊं तेरे दिल का फ़साना
इतना बड़ा आलिम तो मेरी ज़ात नहीं है
कुछ शेर मेरे आपकी ख़िद मत में है हाज़िर
जज़्बात हैं ये मेरेे , महज़ बात नहीं है
तिश्ना न कहीं उम्र गुज़र जाए तबस्सुम
क़िस्मत में मेरी क्या कोई बरसात नहीं है?
