वो लक्षमण रेखा खींची थी तुमने..
अपने मधुर सबंधों के लिये…
वो आज तक ना लाँध पाई मैं…
मगर रूह से रूह के सबंध को भी ..
ना नाकार पाई मैं…
ओढ़ चुप से तुम्हारी धड़कन…
तेरी साँसों की आगोश़ में जा बसी..
लफ्ज़ बन बहने लगी..
तेरी कविताऔं मे
कभी बंध कभी रुबाई कभी कफि़या बन समाई…
तेरी गज़लों में
तेरे लफ्जों की आगोश में..
तेरी कलम का स्पर्श पा कर..
बिखरने लगी पन्नों पर..
विचरने लगी तेरे अंग संग..
उतर कर भर आई..
चाशनी सी..
लफ्ज़ दर लफ्ज़..
शेर दर शेर..
तुम्हारे भावों की जलेबी में..
2
सुनो!!
कुदरत के करिश्मों में से एक करिश्मा हो तुम
आऔ सामने बिठा कर तेरा सजदा़ करूं
आँखों में पाकीजगी,होटों पर दुआयें
हाथों में मेरे नाम की लकीरे
पेशानी पर मेरा मुकद्दर गुदवा लाये हो!!
लौबान की तरह जला दी आरूजू मैने
महका दिया तेरा मन आंगन
आतुलता का व्याकुलता की ओर यह प्रवाह..
सुनो!!
जो यह इश्क लाये हो सन्यासी सा
आँखों के जल से आचमन कर
आरजुऔं की समिधा में जला
हवन कुण्ड़ से उड़ते ,बिखरते धुयें संग
आ आवरण बना लूं तुझे!!
और हवन कुण्ड़.में बची भस्म में
जो इश्क बचा हो ,उसी को लपेट लूं खुद से
और हाँ —
इस तरह घुल जाऊं तुझमें….
3
तुम आओ!!
मनप्रीत सखा__
आइनों, रोशनी
बारिशों में घुल जाऔ
आसमान में लिखो मुझे
किसी इबारत सा
और बार बार पढो–
रंगरसिया !!!
मैं तो तेरी जोगन सी
इस मृतप्राय शरीर में भी
अमर हूं
तुम्हारी बरकतों की तरह
एक खुशबू जो
बस गई है मेरी पलकों पर
तुम्हारे नाम की तरह
रांझा
मैं हीर
सुनो राझां
तुम्हारी हीर
हरदम सहती
बहुत सी पीर
बहुत सी नावें
बहुत से परवाज़
इधर उड़ते हुए आये
मुझे लगा कि तुम हो!!!!
कोई ना था
थी तो फकत
तेरे होने की
उदास,बेरौनक सी उदासियां
सुनो
मेरे अहसासों की
प्रलय से पहले
सप्तर्षि मछली
और मनु बन आऔ
और प्रेम में पगे
इन वेदों को
जीवन दान दे जाऔ
यही मनुहार
बारम्बार
हर बार