आधुनिक हिन्दी ग़ज़ल-शिल्प और कथ्य
– Nअनिरुद्ध सिन्हा
मैं यह मानता हूँ दुष्यंत कुमार हिन्दी ग़ज़ल के अनिवार्य हस्ताक्षर हैं। उनके ग़ज़ल -लेखन का कथ्य परिवेश जितना विशाल है,उतना ही हिन्दी ग़ज़ल के विकास में उनका योगदान है। वे हिन्दी ग़ज़ल-धारा के सर्वाधिक प्रखर और मुखर व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं। जीवन में जहाँ कहीं उनको विसंगति/विद्रूपता दृष्टिगत हुई,उनका न केवल व्यक्तिगत स्तर पर,बल्कि साहित्यिक स्तर पर भी विरोध किया।यही कारण है अन्य विधाओं की तुलना में ग़ज़ल लेखन में उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली और उनकी बातें सुनी गईं। साये में धूप में संग्रहीत ग़ज़लों के पाठ के बाद यह सहज ही धारणा बन जाती है कि राजनीति और जीवन उनके दो प्रमुख विषय हैं। एक ओर जहाँ राजनैतिक विद्रूपताओं के दर्शन होते हैं तो दूसरी ओर समाज के पीड़ित जनजीवन के। इन दो विषयों पर उन्होंने कुछ ज़्यादा कहा है । निर्धारित कथ्य की तटस्थता और वैशिष्ट्य के माध्यम से ग़ज़ल के नए सौंदर्य-शास्त्र की प्रतिष्ठा की,जिससे ग़ज़ल पर लगे पूर्व के सारे आरोप भरभरा कर गिर पड़े। फिर भी उनके कथ्य का एकाकी-विरोध समझ को कुछ-कुछ परेशान करता है। उनकी ग़ज़लों में प्रयुक्त विरोध को मुख्यतः दो वर्गों में विभाजित कर देखा जा सकता है (1)राजनैतिक व्यक्ति को लक्ष्य कर (2)पीड़ित समाज को लक्ष्य कर। इन्हीं दो विरोधों के कारण आज तक उनकी ग़ज़लों का राजनीतिकरण होता रहा है। हद तक इसे स्वीकार भी किया जा सकता है। उनकी ग़ज़लों में जीवन के कई और पक्ष प्रत्यक्ष रूप से गौण नज़र आते हैं। प्रश्न उठता है क्या उनकी वेदना,संवेदना की सघनता में भय से घिरी जनता और और विद्रूप राजनीति ही थी। उनके ग़ज़ल-संसार की गुंजलक में फंसे जीवन के अन्य बेचैन विषय एक अलग आख्यान रचते हैं और अंधेरे से निकलने के लिए एक तल्ख़ बेचैनी के साथ छटपटाते नज़र आते हैं। एक कारण यह भी हो सकता है उन्होंने बहुत कम ग़ज़लें लिखी हैं।अगर कुछ और लिखे होते तो मैं समझता हूँ जीवन के अन्य विषय भी उनकी ग़ज़लों में मजबूती के साथ देखने को मिलते। इतना कम लिखने के बाद भी लोकप्रियता के शिखर पर पहुँच जाना,यह क्या कम है। आज के ग़ज़लकार दुष्यंत की ग़ज़लों को ज़्यादा तरजीह देते हैं उन्हें दुष्यंत के कथ्य-संसार की संक्षिप्त ही सही आवश्यक ज्ञान और महत्वपूर्ण जानकारी तो मिलनी ही चाहिए।
खैर इस विषय पर विस्तार से चर्चा करने की गुंजाइश बनती है।
हम यह नहीं कह सकते अमीर खुशरो,कबीर या भारतेन्दु हिन्दी के प्रथम ग़ज़लकार थे। अभी भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है। किन्तु दुष्यंत के बारे में इतना तो कह ही सकते हैं उनके चेतन और अवचेतन में ग़ज़ल की संरचना और कथ्यगत,विधागत व्यवस्था इतनी गहराई तक बैठ गई थी कि बड़ी से बड़ी बात अपनी ग़ज़ल के शेरों में सहज ढंग से कह जाते थे। धीरे-धीरे ग़ज़ल-लेखन की यह परंपरा विकसित होती चली गई और यह परंपरा दुष्यंत कुमार से आरंभ होती है।
हिन्दी ग़ज़ल लेखन की विकसित होती परंपरा को देख कर यह सहज ही सोचा जा सकता है आनेवाले दिनों में हिन्दी की महत्वपूर्ण काव्य-विधा के रूप में हिन्दी में स्थापित होगी। साहित्य की अपनी गति है और इतिहास का अपना सच। समय-समय पर विधाएँ बदलती रही हैं। यह एक ऐसा सच है जो सभी जानते हैं।
शिल्प की चर्चा के क्रम में इसकी निर्धारित बहरों को थोड़ा जानने की कोशिश करते हैं, जो पूरी तरह हिन्दी के कुछ प्रचलित छंदों के साथ खड़ी हैं।
1-बहरे-हज़ज (मुसम्मन सालिम) –मफाईलुन(1-2-2-2)चार बार
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उसूलों पर जहाँ आंच आए ,टकराना ज़रूरी है
जो ज़िंदा हो,तो फिर ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है
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2-बहरे-हज़ज (मुसद्दस सालिम) मफाईलुन (1-2-2-2(तीन बार)
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3-बहरे-रजज़ (मुसम्मन सालिम) मुस्तफ इलुन (2-2-1-2)चार बार
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4-बहरे-रज़ज (मुसद्दस सालिम) मुस्तफ इलुन (2-2-1-2) तीन बार
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5-बहरे-रमल (मुसद्दस सालिम) फ इ ला तुन (2-1-2-2)तीन बार
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6-बहरे-कामिल (मुसम्मन सालिम) मुत फा इ लुन (1-1-2-1-2 चार बार
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7-बहरे-मुतकारिब (मुसम्मन सालिम) फ ऊ लुन (1-2-2 चार बार
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8-बहरे मुतदारिक(मुसम्मन सालिम फा इ लुन 2-1-2 चार बार
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9-बहरे-मुतदारिक (मुसद्दस सालिम) फा ई लुन (2-1-2)तीन बार
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10-बहरे-हज़ज (मुसद्दस महफूज) मफाईलुन मफाईलुन फऊलुन/फऊलान (1-2-2-2 1-2-2-2 1-2-2/1-2-2-2
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11-बहरे-हज़ज (मुसम्मन) मफ़ऊलु मफाईलु मफाईलु फऊलुन/फऊलान
2-2-1- 1-2-2-1 1-2-2-1 1-2-2/1-2-2-1
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12-बहरे-रज़ज (मुसम्मन) फाइलुन मफाइलुन फाइलुन मफाइलुन
2-1-2 1-2-1-2 2-1-2 1-2-12
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13-बहरे-रमल (मुसम्मन महफूज उल-आखिर
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन /फाइलान
2-1-2-2 2-1-2-2 2-1-2-2 2-1-2/ 2-1-2-1
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14-बहरे-रमल (मुसम्मन सालिम महफ़ूज)
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फइलुन /फालुन
2-1-2-2 1-1-2-2 1-1-2-2 1-1-2-2 /2-2
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15-बहरे-रमल (मुसद्दस सालिम मखबून )
फाइलातुन फ़इलातुन फ़इलुन/फालुन
2-1-2-2 1-1-2-2 1-1-2 2-2
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16-बहरे-मजारिअ मुसम्मन महफ़ूज
मफ़ऊलु फाइलातु मफाईलु फाइलुन/फाइलन
2-2-1 2-1-2-1 1-2-2-1 2-1-2/2-1-2-1
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17-बहरे-मजारिअ सालिम
मफ़ऊलु फाइलातुन मफ़ऊलु फाइलातुन
2-2-1 2-1-2-2 2-2-1 2-1-2-2
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18-बहरे-मुजतस मुसम्मन मखबून
मफाइलुन फइलातुन मफाइलुन फइलुन/फा-लुन
1-2-1-2 1-1-2-2 1-2-1-2 1-1-2-2/2-2
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19-बहरे-खफ़ीफ मुसद्दस सालिम
फाइलातुन मफाइलुन फइलुन /फालुन
2-1-2-2 1-2-1-2 1-1-2/ 2/2
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20-बहरे-रज़ज मुसद्दस मखबून
मफाइलुन फाइलुन फऊलुन
1-2-1-2 2-1-2 1-2-2
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21-बहरे-हजज मुसम्मन अखरब
मफ़ऊलु मफाईलुन मफ़ऊलु मफाईलुन
2-2-1 1-2-2-2 2-2-1 1-2-2-2
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ऐसे मैं मानता हूँ हिन्दी छंदशास्त्र(पिंगल) तथा छंदशास्त्र(इल्मे-अरूज़)का अध्ययन छंदशास्त्रियों का विषय है। ग़ज़लकारों को इन पेचीदगियों में पड़ने की ज़रूरत नहीं है। उन्हें तो केवल इतना जान लेना है हिन्दी के लघु-गुरु वर्ण क्या होते हैं तथा मात्रा-गणना किस प्रकार होती है। इसी प्रकार उर्दू के एक हर्फी तथा दो हुरूफ़ी रुक्न (घटक)क्या होते हैं और तक्ती किस प्रकार की जाती है।
मतला-यह ग़ज़ल का पहला शेर होता है,जिसकी दोनों पंक्तियों में तुक यानि काफिया होता है।
शेर-ग़ज़ल के मध्य भाग में आते हैं
मकता-जिसमें ग़ज़लकार का नाम/उपनाम आता है। यह ग़ज़ल का अंतिम शेर होता है।
जहाँ तक हिन्दी ग़ज़ल के कथ्य-संसार का प्रश्न है तो यह कहा जा सकता है इसके भीतर पूरी परिपक्वता के साथ घनघोर निराशा के काल में भी आशा की किरण दिखाई पड़ती है। आज की हिन्दी ग़ज़ल नकारात्मकता के स्थान पर सकारात्मक दृष्टिकोण को मजबूत करने में अत्यंत सफल रही है। अधिकांश ग़ज़लों में सामाजिक,आर्थिक एवं राजनीतिक विषमताओं के विरुद्ध संघर्ष और नवनिर्माण की आकांक्षा रक्तहीन क्रांति के द्वारा व्यक्त होती है। माधव कौशिक,ज्ञान प्रकाश विवेक,अशोक मिजाज,दरवेश भारती,हरेराम समीप,प्रेम किरण, डॉ मधुसूदन साहा, डॉ कृष्ण कुमार प्रजापति,विज्ञान व्रत, डॉ भावना,विकास आदि की ग़ज़लों को इस कसौटी पर परख सकते हैं।
बिंबों और प्रतीकों के प्रति आज के ग़ज़लकार काफी सजग हैं। उनके बिम्ब और प्रतीक परंपरा पोषित न होकर वैयक्तिक और नवीन हैं। आधुनिक जीवन की वास्तविक व्याख्या के लिए दरअसल नवीन बिम्ब-सृजन का अनल्प महत्व माना जाता है। यह कहा जा सकता है आज की ग़ज़लों में प्रयुक्त बिंबों मानवीय जीवन का मनोविज्ञान अपनी संपूर्णता में उतर आता है।
पिंजरे में भी उसका कलरव बोलेगा
पंछी तो जब तक है संभव बोलेगा
कमलेश भट्ट कमल
इस बार भी आशा की फसल लुट ही चुकी है
रखवाली कहीं फिर-से बिजूके को मिली है
हरेराम समीप
तुम्हारी आग शायद मोम भी पिघला नहीं सकती
हमारे हौसलों की आँच से पत्थर पिघलता है
महेश अग्रवाल
पार हो जाने का हो जिस आदमी में हौसला
बेहिचक है खोल देता नाव को तूफान में
डॉ मधुसूदन साहा
वादा करता है मुकर जाता है
जाने किस शख़्स के घर जाता है
बेकिनार दरिया में अपना पाँव डाला है
दोस्तों ने ये समझा हमने रोग पाला है
डॉ कृष्ण कुमार प्रजापति
ऐसा लगता है कि मैं तुझसे बिछड़ जाऊँगा
तेरी आँखों में भी सोने का हिरण आया है
अशोक मिज़ाज
आधुनिक काव्य-विमर्शों में आधुनिक ग़ज़ल का स्थान प्रमुखता के साथ सामने उभरकर आया है। कारण है इसने अपने पुराने सारे संस्कारों को छोडकर वर्तमान के यथार्थ को तार्किक,भावात्मक एवं सशक्त रूप से जनसामान्य के समक्ष प्रस्तुत करने का सामर्थ्य अपने भीतर पैदा किया है। आज की ग़ज़लों में अभिधामूला लक्षणा की अपेक्षा व्यंजना का अधिक प्रयोग मिलता है। प्रायः ग़ज़लकार अपनी ग़ज़ल में जनमानस के बीच प्रयुक्त होने वाले शब्दों के प्रति खूब आग्रहशील है। साथ ही अपनी ग़ज़लों में ग़ज़ल के भाव तथा कला-पक्ष दोनों की अभिव्यक्ति के प्रति काफी सजग और सचेष्ट तथा जनजीवन के अत्यंत निकट भी।
हिन्दी ग़ज़ल ने अपनी छोटी-सी यात्रा में ही अपनी ठोस ज़मीन तैयार कर ली है। एक तरफ जहाँ जीवन के मासूम सपने हैं वहीं दूसरी ओर जीवन की रक्षा और सर्जनात्मकता की चिंता है। प्रेम,और प्रेमगीत बचाने की भी उतनी ही चिंता है। ऐसे में अनेक निष्कर्ष हैं जो गैर ग़ज़ल आलोचकों के पास नहीं हैं। वे सभी ग़ज़लकारों और पाठकों के अपने हैं। हिन्दी ग़ज़ल की मुख्य चिंता विषय की विविध श्रेष्ठता है जिन्हें इन विषयों के आधार पर रेखांकित किया जा सकता है जिनकी गूंज आधुनिक ग़ज़लों में स्पष्ट रूप से सुनाई पड़ती है। मसलन—
1-सामाजिक संदर्भ
2-राजनीतिक संदर्भ
3-आध्यात्मिक संदर्भ
4-प्रेमपरक संदर्भ
5-सांस्कृतिक संदर्भ
6-अन्य
इन सारे संदर्भों की सूक्ष्म व्याख्या आज की हिन्दी ग़ज़लों का मुख्य विषय है। आज के आलोचकों से एक बहुत बड़ी भूल हो रही है ग़ज़ल के प्रति उपेक्षा और खीझ। यह जरूरी नहीं कि समाज का प्रामाणिक और विश्वसनीय लेखन ग़ज़ल के अतिरिक्त कोई अन्य विधा ही कर सकती है। वास्तविकता यह है फंटेसी का शिल्प मन की निगूढ़ वृतियों से जुड़ा होता है। मन की निगूढ़ वृतियों के शिल्प में ही समर्थ आलोचक अपनी आलोचना का प्रकाशन करता है,जो इनके पास नहीं है।
अंत में यही कहा जा सकता है हिन्दी ग़ज़ल की प्रगतिशीलता भारतीय जीवन पद्धति का निषेध नहीं है। आप इसे जो समझें ।
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परिचय: लेखक की कई रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। गजल और समीक्षा के क्षेत्र में चर्चित
संपर्क : गुलज़ार पोखर,मुंगेर (बिहार)811201 मोबाइल-7488542351
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