चीन की खतरनाक महात्वाकांक्षा और भारत सहित अन्य देश : रत्नेश कुमार मिश्रा

चीन की खतरनाक महात्वाकांक्षा और भारत सहित अन्य देश

                                                          – रत्नेश कुमार मिश्रा

विश्व आज चीन की महात्वाकांक्षा एवं उसके विनाशकारी साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के कारण कोरोना जैसे अबूझ एवं गंभीर बीमारी की आग में जल रहा है. अमेरिकाख्, इंग्लैंड, ब्राजील, इटली, आस्ट्रेलिया एवं रूस जैसे शक्तिशाली देश भी आज इस समस्या के सामने घुटने टेक चुके हैं और त्राहिमाम कर रहे हैं. ये सभी देश इस भयानक आपदा के लिए चीन को दोषी ठहरा रहे हैं. उनसे मुआवजे की मांग कर रहे हैं.

इधर चीन एक ओर विश्व को घातक बीमारी दे दिया है, दूसरी ओर इसका फायदा उठा कर सभी देशों को पीपीई, जांच किट व मास्क जैसे उपकरण बेचकर लाभ कमा रहा है. भारत सहित कई देशों में इनके उपकरण तो दोषपूर्ण एवं नकली निकल गए, जिन्हें सभी देश चीन को वापस भेजने की योजना बना रहे हैं.

भारत का प्राचीनकाल में चीन से बड़ा मधुर संबंध रहा है, लेकिन वहां कम्युनिस्ट शासन की स्थापना के बादद से ही चीन की नीयत भारत के प्रति अच्छी नहीं रही है. वह भारत सहित आसपास के देशों के साथ विस्तारवादी एवं तानाशाही नीति अपनाता रहा है. वह भारत पर 1962 में मित्रता की संधि के बावजूद युद्ध थोप चुका है. वह अभी भी कश्मीर के एक भाग पर, हौंगकौंग, ताईवान एवं तिब्बत पर अपना अवैध कब्जा जमाए हुए है. अभी भी वह बार-बार भारत के सिक्किम एवं अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता रहता है. वह भारत को घेरने के लिए इसके पड़ोसी देश पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश एवं मालदीव को आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग देकर भारत के विरुद्ध उकसाता रहता है.

चीन वर्तमान में विश्व को भयानक एवं गंभीर रोग देकर भी लज्जित होने के बदले अपनी विस्तारवादी एवं साम्राज्यवादी नीतियों को कार्यान्वित कर रहा है. अद्यतन समाचार के अनुसार वह दक्षिण चीन सागर में तो 100 से अधिक छोटे-छोटे द्वीपों का पुन: नामाकरण कर दिया है. जिस पर अमेरिका ने आपत्ति जतायी है.

वह विश्व की मंदी का फायदा उठा कर विश्व के बहुत सारे कंपनियों को खरीद रहा है. भारत में ही उसने एचडीएफसी बैंक के काफी शेयर खरीद कर उसमें हिस्सेदारी हासिल कर लिया है. तब भारत सरकार ने हाली ही में यह नियम बनाया है कि पड़ोसी देश को भारत के किसी कंपनी में हिस्सेदारी खरीदने के लिए इसकी मंजूरी लना आवश्यक होगा.

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री अपने देश के सरपंचों को संबोधित करते हुए स्पष्ट किया है कि यह दुखदायी समय भी भारत के लिए सुनहरा अवसर लेकर आ सकता है. बस हमारे देश को हर क्षेत्र में आत्मनिर्भ्र बनना चाहिए. इस समय भारत विश्व में अपनी प्रतिष्ठा एवं सामर्थ्य को स्थापित कर सकता है. आज विश्व के कई देश भारत से विनम्र आग्रह करके दवा की मांग कर रहे हैँ. भारत ने उन्हें दवा भेज भी दी है. आज विश्व का चीन से मोहभंग हो गया है. कोरोना की समाप्ति के बाद विश्व के कई देश चीन के साथ अपने संबंधों का विश्लेषण करेंगे. वह अपना रुख भारत की ओर कर सकते हैं. बहुत से कारणों से जो कार्य भारत सरकार नहीं करती है, वह देश की जनता कर सकती है. यहां की जनता को समझना चाहिए कि वे टॉर्च, इमरजेंसी लाइट, कैंची एवं खिलौने से लेकर टीवी, फ्रिज व मोबाइल जैसी महंगी चीजें चीन की बनी खरीदते है. हम 35 लाख करोड़ डॉलर का सामान चीन से मंगाते हैं और 20 लाख करोड़ डॉलर का सामान अपने देश से चीन में भेजते हैं. इस तरह प्रतिवर्ष 15 लाख करोड़ डॉलर का हमें व्यापारिक घाटा उठाना पड़ता है. इसी तरह हम टिकटॉक और जूम जैसे चीनी एप का प्रयोग कर रहे हैं. हाल ही में भारत सरकार ने निर्देश जारी किया है कि जूम एप हमारे देश में सुरक्षित नहीं है. इससे डेटा की चोरी हो रही है.

अगर हम चीनी सामान एवं एप इस्तेमाल बंद कर दें तो हमें उसे प्रतिवर्ष 35 लाख करोड़ का कुल एवं 15 लाख करोड़ का शुद्ध व्यापारिक क्षति पहुंचा सकते हैं. वहां इससे लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे. अभी जो स्थिति है, उससे दूसरे देश भी चीन से व्यापार नहीं करेंगे. ऐसे कृतघ्न और साम्राज्यवादी देश की यह सबसे बडी सजा होगी. वह हमारे देश से कमा कर हमें ही धमकाता है. कभी अरुणाचल में तो कभी डोकलाम में. अब ऐसा नहीं हो पाएगा.

अभी भी समय है कि कमजोर अंतर्राष्ट्रीय संस्था यूएन को मजबूत किया जाए. इसके लिए पांच शक्तिशाली देशों के वीटो पावर को समाप्त किया जाना चाहिए. उम्मीद है कि बहुत सारे नन वीटो वाल देश कोरोना समस्या की समाप्ति के बाद यह मांग जरूर उठाएंगे. सुरक्षा परिषद् के सदस्यों की संख्या अब 15 से ज्यादा होनी चाहिए. यह मांग बहुत पहले से लंबित है. सभी देशों को समान अधिकार होना चाहिए. वीटो का अधिकार किसी देश को नहीं होना चाहिए. कोई भी प्रस्ताव सुरक्षा परिषद् में बहुमत से पारित होना चाहिए. ऐसा नहीं होता है तो भारत सहित सभी नन वीटो वाले देशों को यूएन से त्यागपत्र दे देना चाहिए. ऐसी स्थिति में यूएन की प्रासंगिकता ही समाप्त हो जाएगी. चीन एवं किसी देश को वीटो का अधिकार रहते उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई प्रस्ताव पारित नहीं हो सकता है और वह देश पुन: कोरोना जैसे अपराध कर सकता है एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी संस्था उसकी सहायता कर सकती है.

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परिचय : लेखक शिशु वाटिका स्कूल के प्राचार्य हैं. सामयिक मुद्दों पर इनके लेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं.

मो. 9708027323

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