डॉ़. शाही : साहित्य के गाँधी
– बलराम भूषण
श्रीरंग शाही अब हमारे बीच नहीं हैं। यह जानकर हृदय में जो वेदना उठ रही है, उसका वर्णन इन पंक्तियों से संम्भव नहीं लग रहा है। इन शब्दों से ऐसा महसूस हो रहा है कि किसी ने गाल पर अचानक थप्पड़ जड़ दिया हो और मैं अवाक् कुछ नहीं कर पा रहा हूँ।
जी हाँ, यह प्रकृति का सच है। श्री शाही जी नहीं रहे। लेकिन उनकी साहित्य के प्रति निष्ठा, साहित्यकारों को प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा। मानव जाति के इतिहास में उन थोड़े व्यक्तियों का वर्णन है, जिनके पास आत्मविश्वास था। इसी आत्मविश्वास के कारण श्री शाही जी साहित्य की दुनिया में लम्बे समय तक याद किये जाते रहेंगे। शिक्षण के क्षेत्र में बडे पदों पर रहते हुए भी उनका सादगी भरा जीवन चर्चा का विषय बना रहा। बिहार ही नहीं देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनकी लेखनी प्रकाशित हुई है। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि क्षेत्रीय भाषा बज्जिका के विकास के लिए उन्होंने जो कार्य किया, वह बज्जिका भाषी भूला नहीं पायेंगे। उन्होंने पत्र के ही माध्यम से देश के कोने-कोने के रचनाकारों से सम्पर्क किया। खासकर नये लेखकों को पत्र के ही माध्यम से विभिन्न पत्रिकाओं में सम्पादक से सम्पर्क कर उनके रचनाओं के लिए स्थान भी दिलाया।
शाही जी वो मानव थे जो जीवन भर दूसरों के लिए जिये। उनका पत्र मेरे पास भी आता रहता था। मेरी तमन्ना थी कि एक बार उनसे मिलूँ। लेकिन काश !यह हो पाता। एक बार उन्होंने लिखा था कि लेखनी ऐसी होनी चाहिए जो मानव-जाति का कल्याण करे। उनकी महानता इसी वाक्य में झलकती है। तभी तो मेरे मन में एक बात बार-बार गूँज रही है। क्यों न, उन्हें एक उपनाम दिया जाय। साहित्य का उपनाम। मेरे ख्याल से ‘साहित्य का गाँधी उन्हें कहा, जा सकता है। – साहित्यिक क्षेत्र में रहतें हुए उन्होंने गाँधी दर्शन का अक्षरश: पालन किया। व्यक्ति शरीर और कपड़ा से महान नहीं होता है। महान किसी का व्यक्तित्व और विचार होता है। उनका व्यक्तित्व खासकर युवाओं के लिए आदर्श रहेगा। वे अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन साहित्य का समाज सदा उनका ऋणी रहेगा।
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ग्राम-सरसौला पो०-जिला- शिवहर