गिरिजा कुमार माथुर
- डाॅ. श्रीरंग शाही
प्रयोगवाद के शीर्षस्थ कवि गिरिजा कुमार माथुर का स्वर्गारोहण 10 जनवरी, 1994 को हुआ है। शमशेर बहादुर सिंह के महा प्रयाण के बाद आंसू सूखे भी नहीं थे, इसी बीच माथुर जी भी हमसे विदा हो गये। पिछले दिनों माथुर जी को विडला फाउन्डेशन का द्वितीय उत्कृष्ट व्यास पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इससे पूर्व व्यास पुरस्कार डॉ० नगेन्द्र और डॉ० शिव प्रसाद सिंह को मिल चुका है। श्री माथुर का जन्म 22 अगस्त 1919 में मध्य प्रदेश के अशोक नगर में हुआ था। श्री माथुर ने लखनऊ विश्व-विद्यालय से एम० ए० अंग्रेजी की परोक्षा पास की थी।
श्री माथुर की कविताओं में प्रेमिल भाव और मांसल अनुभूतियां मिलती हैं। 1937-38 में माथुर का कवि जीवन प्रारम्भ होता है ,जब छायावाद का अंतिम चरण था और प्रगतिवाद का आगमन हो गया था। शिव मंगल सुमन, डॉ० बच्चन, रामेश्वर शुक्ल अंचल, नरेन्द्र शर्मा, गिरिजा कुमार माथुर के साथ हिन्दी काव्य-गगन में पदार्पण करते हैं।
श्री माथुर की कविता पुस्तक ‘कल्पान्तर’ को 1988 में भारतीय भाषा परिषद् कलकत्ता ने पुरस्कृत किया था। 1943 में अज्ञेय जी ने तार सप्तक प्रथम खण्ड का सम्पादन किया था और इसके सात कवि थे-गिरिजा कुमार माथुर, राम विलास शर्मा, अज्ञेय, प्रभाकर माचवे, मुक्ति-बोध, नेमिचन्द जैन और भारत भूषण अग्रवाल ।
श्री गिरिजा कुमार माथुर प्रयोग-वाद के संस्थापक कवियों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। माथुर जी को निष्ठा रोमानियत और यथार्थ का कवि माना जाता है। अंग्रेजी साहित्य के पाण्डित्य के कारण माथुर जी की रचनाओं में अंग्रेजी साहित्य का काव्यशास्त्र का प्रतिफलन हुआ है। डॉ० नामवर सिंह ने माथुर जी को छायावादोत्तर काल का प्रमुख कवि माना है। श्री माथुर भारतीय प्रशासनिक सेवा के भी अधिकारी थे और दूरदर्शन के उप महानिदेक पद से अवकाश ग्रहण किया था। माथुर में छायावादी संस्कार भी प्रबल था । शिल्प एवं प्रयोग की दृष्टि से माथुर का काव्य छायावाद युग से आगे बढ़ता प्रतीत होता है। माथुर जी को प्रारम्भिक रचनाएँ ‘वीणा’ और ‘कर्मवीर’ में प्रकाशित हुई थीं। 1941 में आपका प्रथम काव्य संग्रह ‘मंजीर’ का प्रकाशन हुआ और 1988 में ‘साक्षी है वर्तमान का प्रकाशन होता है। ‘नाश और निर्माण’, ‘धूप के धान’ शिला पंख चमकीले’, ‘जो बांध नहीं
सका’ और ‘अखिरी नदी की यात्रा’ आपके प्रमुख काव्य-संग्रह हैं। ‘नाव और निर्माण’ का प्रकाशन 1946 में होता है और इस संग्रह की कविताओं में छायावादी रोमानियत और प्रगतिशील चेतना मिलती है। ‘नाश और निर्माण’ की कविताओं में कवि
की दुहरी मनःस्थितियां मिलती हैं। सौन्दर्यानुभूति की दृष्टि से माथुर के काव्य की अपनी विशिष्टता है। गेहूँ की बाली जैसी और कुसुमित मृगाल जैसी देह का माथुर जी ने चित्रण किया है।
कवि ने गाया –
“आज है केसर रंग रंगे हैं वन
रंजित शाम की फागुन की
खिली पीली काली सी
केसर के वसनो में छिपा तन
सोने की छांह सा गोरे कपोलों पर
होले से आ जाती पहिले ही पहिले के
रंगीन चुम्बद की सी ललाई।”
‘धूप के धान’ की कविताओं में प्रणय-बोध और यथार्थ बोध का संगम मिलता है। डॉ० जगदीश गुप्त ने ठीक ही कहा है कि झुकी हुई चेतना, प्रगाढ़ गोतिमयता, वस्तु को रूपायित करने वाली व्यंजक बिम्ब- योजना माथुर की कविता का सशक्त पक्ष है। ‘जो बंध नहीं सका’ काव्य कृति में माथुर की चेतना विभक्त मिलती है। ‘आखिरी नदी की यात्रा’ में माथुर जी की 41 कविताएँ मिलती हैं। कवि माथुर की मान्यता है कि संसार के सारे रिश्ते झूठे हैं और मात्र प्यार का सम्बंध और उसकी गंध ही शाश्वत है। कवि जीवन के सारे अस्तित्व को प्रेम के उपर अवलम्बित मानता है। कवि का कहना है कि हर युवती प्यार है, हर शरीर मस्ती है। कवि की दृष्टि में प्रेम जीवन की अनिवार्यता है –
“तुम्हें नहीं मालूम
कि प्यार के लिए उम्र नहीं होती
कोई वक्त, कोई जगह
कोई रोक-टोक नहीं होती।
तुम्हें नहीं मालूम
तुम्हारी देह का कुहुकता स्वाद
जो तुम मन के भीतर से उड़ेल कर
जबतक किसी को दे नहीं पायी
उसमें कितनी शराब है
कितनी ज्यादा संजीवनी है।
जिसे पा कर उम्र वापस मिल जाती है।”
कविवर माथुर का कहना था कि प्रेम एक उष्मा है और वह ऊर्जा है। “Love is vital Energy” कवि माथुर की प्रेम परक रचनाओं में शरीर और मन दोनों की आवाज सुनाई पड़ती है। देह धर्म की ललक भोगवादी दृष्टि भी माथुर जी की रचनाओं में मिलती है। वर्तमान युग में नई कविता के तीन मूर्धण्य कवि थे शमशेर बहादूर सिंह, केदारनाथ सिंह और गिरिजा कुमार माथुर ।शमशेर और माथुर हिन्दी नई कविता को विलखता छोड़कर चल बसे और आज डॉ० केदार नाथ सिंह अपने को एकाकी अनुभव कर रहे हैं।
कविवर माथुर ने अपने को लीक से हटाया था। कवि का कहना था कि क्या सत्य कहना पाप है ?
“हूँ प्रताड़ित
क्योंकि प्रश्नों के नये उत्तर दिये हैं,
है चरम अपराध
क्यों मैं लीक से इतना अलग हूँ
माथुर जी के काव्य का मूल स्वर प्रणय, पीड़ा, निराशा और वेदना का है। कवि में छायावादी रोमांस की प्रवृत्ति है। नारी के रुप-सौंदर्य, उसकी मधुर दीप्ति के प्रति कवि में एक ललक है। कवि को रंगीन शाम में रेशम के वस्त्र पहने हुई गोल गोरी रेशम की चूड़ियां पहनी हुई नारी की याद आती है।
‘चूड़ी का टुकड़ा’ नाम की कविता में कवि की प्रणय-भावना मिलती है। कवि प्रणय की भावना से मदहोश हो जाता है।
“पूस की ठिठुरन भरी इस रात में
कितनी तुम्हारी याद आयी।
याद आये मिलन वे
मसली सुहागिन सेज पर वे सुमन ।”
अज्ञेय जी ने भी ऐसा ही मादक चित्र अंकित किया है –
“तुम्हारे नैन पहली भोर की दो ओस बूंदे हैं
अछूती ज्योर्तिमय भीतर द्रवित
मानो विधाता के हृदय में जाग ही गयी हो
भाव करुणा की अपरिमित।”
कविवर माथुर साम्यवाद से प्रभावित रहे और आप को सोवियत लैंड पुरस्कार भी मिला था । ‘एशिया का जागरण’ नाम की कविता में कवि ने गाया –
“हो एक प्राण, हो एक चरण, हो एक दिशा जनता निकली
इतिहास सूर्य के अश्व मुड़े
युग-जीवन ने करवट बदली
जनता जनार्दन आज बढ़ी, करने आजादी का वंदन।”
“मैं वक्त के हूँ सामने” नाम की कविता पुस्तक पर माथुर जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। इसी कालजयी रचना पर कवि को व्यास सम्मान मिला था। माथुर जी मृत्यु के समय तेहत्तर वर्ष के थे। श्री माथुर के तीन पुत्र हैं- अशोक
माथुर, पवन माथुर और अमिताभ माथुर। पत्नी संवुत माथुर और पुत्री वीणा बसंल माथुर के महा प्रयाण का दुख झेल रही हैं। गिरिजा कुमार माथुर की कविता ‘पन्द्रह अगस्त’ राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत है।
“आज जोत की रात पहरुए सावधान रहना
खुले देश के द्वार अचल दीपक समान रहना ।
शोषण से मृत है समाज कमजोर हमारा घर है।
किन्तु, आ रही नई जिन्दगी यह विश्वास अमर है ।।”
‘नया कवि’ माथुर की चर्चित कविता है। कवि माथुर ने नई कविता के उत्स को स्पष्ट किया है –
“क्या करूँ,
उपलब्धि की जो सहज सीधी आंच क्या करूँ
जो शम्भूधनु टूटा तुम्हारा
तोड़ने को उसे विवश है।”
शम्भूधनु यहां प्रतीक है। यह मिथक भी है।
कवि माथुर का कहना है कि नया कवि उपलब्धि करना चाहता है और प्रगति की ओर प्रयाण करना चाहता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि कविवर माथुर नई कविता के शीर्षस्थ कवि थे और उन्होंने मानवतावाद को भी अपनी रचनाओं में रुपायित किया था ।
श्री माथुर का अवसान हिन्दी कविता के लिए अपूरणीय क्षति है।
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