कवि सत्यनारायण और हिन्दी नवगीत
- डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफ़री
सत्यनारायण हिन्दी के महत्वपूर्ण गीतकार हैं.बिहार का राज्य गीत इनके द्वारा रचा गया है-
मेरे भारत के कंठ हार
तुझको शत -शत वंदन बिहार
यह वो गीत है, जो हमारी विरासत और गौरव को दिखाता है. इसमें अपने देश की आत्मा बसती है.
सचमुच इस गीत में जो राज्य की गाथा है,जैसी संस्कृति उसमें झलकती है, वैसा गीत लिखना सिर्फ़ कवि सत्यनारायण के ही वश की बात थी.
कवि सत्यनारायण को मैंने बहुत सुना और बहुत पढ़ा है. कई बार कवि सम्मेलनों में उनके संचालन में सुनने और पढ़ने का मौक़ा मिला है. बेगूसराय के गोदरगांवां के एक कवि सम्मेलन में मैं आमंत्रित नहीं था लेकिन लगभग पचीस किलोमीटर की दूरी तय कर मैं सिर्फ इसलिए सुनने पहुंचा था कि उस कवि सम्मेलन का संचालन सत्यनारायण कर रहे थे. असल में उनकी आवाज़ में एक जादू है, एक कशिश है एक आकर्षण है जो सहसा किसी को अपनी ओर खींच लेता है. उनके पास शब्द हैं और जिस शब्द का वह इस्तेमाल करते हैं,मानो यह शब्द उनके इशारों पर नाचते फिरते हैं. उनकी आवाज़ में एक दर्द है, एक संवेदना है एक टीस है जो आपको पागल बना देता है. उनका व्यक्तित्व इतना विराट है कि आप उन्हें किसी महफ़िल में छुपा कर नहीं रख सकते जैसे कोई खुशबू या जैसे किसी चिराग़ को कैद नहीं किया जा सकता. उनका विराट व्यक्तित्व बहुत कुछ निराला, दिनकर और जानकी वल्लभशास्त्री में मिल जाता है.
13 सितंबर 1935 को ग्राम कौलोडिहरी, भोजपुरी में जन्मे सत्यनारायण प्रसाद उर्फ सत्यनारायण इतिहास में स्नातकोत्तर करने के बाद 1993 में सरकारी सेवा से निवृत हुए. उन्हें बिहार सरकार ने 2020-21 में नागार्जुन सम्मान से सम्मानित किया था.भारत सरकार द्वारा 2023 में भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार मिला.वह विश्व हिंदी सम्मेलन में दक्षिण अफ्रीका गए. नालंदा खुला विश्वविद्यालय के कुलगीत की रचना की. दर्जन से अधिक उनकी किताबें हैं. तुम ना नहीं कर सकते,सुनें प्रजाजन जहां उनके काव्य संग्रह हैं.वहीं टूटते जलबिंब तथा सभाध्यक्ष हंस रहा है- उनके गीतों का संग्रह है. यह बात कम लोग जानते हैं कि जेपी आंदोलन में उनकी महती भूमिका रही.उन्होंने सैंकड़ो नुक्कड़ गीत लिखे जिसे चौक- चौराहों पर गाये गए. इस गीत ने आंदोलन की दिशा बदल दी. यहां तक कि वो जेपी आंदोलन के कवि कहकर पुकारे जाने लगे. उनका स्वभाव कुछ ऐसा रहा कि कभी उन्होंने अपने को प्रमोट नहीं किया. पटना के कवि सम्मेलन में जब संचालक ने उनके बारे में कुछ बातें बताई तो कवि सत्यनारायण ने कविता पाठ करने से पहले कहा कि कभी भी कवि को नहीं कविता को बोलने देना चाहिए.
हिंदी साहित्य में जो नवगीत की परंपरा विकसित हुई, सत्यनारायण इस आंदोलन के साथियों में से थे. नवगीत स्वतंत्र भारत के मोहभंग की स्थिति का एक गेय काव्य शैली है, जिसने परंपरागत भाषा, घिसे-पिटे छंद पुराने हो चुके प्रतीक,धूमिल बिंब आदि की जगह नए तौर तरीके से मनुष्य के जीवन यथार्थ और अनुभूति को अभिव्यक्त किया.
सत्यनारायण के गीत महज काग़ज़ की शोभा बढ़कर नहीं रहे,बल्कि यह गीत एक आंदोलन बनकर उभरे हैं.उनके गीतों ने विशेष कर जेपी आंदोलन के समय एक क्रांति पैदा की अपने समय के तमाम आलोचकों ने सत्यनारायण के गीत -रचना की प्रशंसा की. गीतकार नचिकेता ने कहा – सत्यनारायण की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण इनकी प्रखर सामाजिक चेतना तथा समसामयिक राजनीति का गहरा बोध है. प्रसिद्ध आलोचक नंदकिशोर नवल का मानना है कि अपने नुक्कड़ कविताओं में वह साधारण जनता के बीच से उभड़े हुए एक साधारण कवि हैं, जो दुर्लभ वैशिष्टय से युक्त हैं. लेनिन ने लिखा है कि जब तुम्हारा विचार उलझे हुए लगे तो जनता के पास जाओ वे सुलझ जाएंगे. सत्यनारायण की कविता इसका साक्षात प्रमाण हैं. जाने माने साहित्यकार विद्याभूषण का मानना है कि कथ्य की जितनी इंद्रधनुषी विविधता सत्यनारायण जी के नये- पुराने गीतों में है, इससे इस कवि के क़द की ऊंचाई स्वमेव ऊपर उठ जाती है.
सत्यनारायण के कई गीत लोगों की ज़बान पर हैं इसकी वजह है कि यह गीत गांव- सड़क, चौराहे पर नुक्कड़ सभा में गाये गए हैं. गीत का तर्ज भी कुछ ऐसा है कि स्वयं हमारी ज़बान पर चढ़ जाता है –
बंदी होगा धरना होगा
जो भी होगा करना होगा
ठठरी देह पेट खाली है
बदहाली पर बदहाली है
उनको देखो उनकी हमदम
होती होली दिवाली है
इन सफेदपोशों से अब तो
सब हिसाब करना होगा
असल में सत्यनारायण के गीतों में भारत की आत्मा बसती है, इसलिए उन्होंने गीत को महज गाने के लिए नहीं एक क्रांति लाने के लिए रचा है.जैसे दुष्यंत ने स्त्री की गुफ्तगू कही जाने वाली ग़ज़ल को एक इंकलाब की तरह पेश किया था. आग की बात दुष्यंत भी करते हैं और सत्यनारायण भी दोनों के यहां आग विरोध,बगावत और क्रांति का प्रतीक है-
अभी अंधेरा गया नहीं है
हो पाया कुछ नया नहीं है
जलने दो हां जलने दो
आग साथियों पलने दो
एक ऐसे समय में जब शासन और सत्ता के खिलाफ कुछ बोलना मना हो. वर्ष 1977 में सत्यनारायण ने साहस के साथ एक गीत की रचना की और लोगों से अहवाहन किया –
हो जाओ तैयार साथियों अभी नहीं तो कभी नहीं
ऐसा चला जुलूस का चक्कर
हम तुम सब हैं हक्का-बक्का
अबकी रहे इरादा पक्का
छोड़ो पिछला पंजा छक्का
करो वोट से वार साथियों अभी नहीं तो कभी नहीं
यह गीत उनकी किताब सुनें प्रजाजन में मौजूद है. ऐसा नहीं है कि इस तरह का उनका यह अकेला गीत है उन्होंने इस तरह के अनगिनत गीत लिखकर वर्तमान सरकार के अत्याचार के विरुद्ध एक माहौल खड़ा किया था-
सन सतहत्तर की ललकार
दिल्ली में जनता सरकार
फिर वह इतने पड़ नहीं रुक आगे की पंक्तियों में कांग्रेस शासन की पोल खोल कर रख दी –
भैया सुन लो पक्की बात
कांग्रेस हाथी का दांत
इसकी अंतड़ी बावन हाथ
गिरगिट का अड्डा है यार
उनके गीत राजनीति की फैली गंदगी को जनता के सामने लाकर उसे साफ़ करने का काम करते हैं.यों ही नवगीत को खुली कविता की संज्ञा नहीं दी गई है. जाहिर है सत्यनारायण के गीतों के कथ्य उलझे हुए नहीं होते. वह साफगोई से सारी बातें करते हैं-
देखो नया तमाशा देखो
राजनीति के नील गगन में
यह रंगीन कुहासा देखो
यह भी नहीं है कि डरी और सहमी हुई जनता का उन्हें ज्ञान नहीं है, वरना वह ऐसा नहीं कह पाते –
भीतर संशय बाहर भय है
दबे पांव चल रहा समय है
आलोचक डॉ. राजेश सिंह ने माना है कि मानव को भय, अभाव और अन्याय से मुक्त कराना ही नवगीतकार का महत्तम उद्देश्य है. सत्यनारायण भी इन उद्देश्यों को लेकर चलने वाले गीतकार हैं.वह हर हाल में बढ़ने का संदेश देते हैं-
पंछी की कब रुकी उड़ानें
घात लगाकर भले शिकारी
साध रहे हों लाख निशाना
ऐसा नहीं है कि सत्यनारायण की नज़र सिर्फ राजनीतिक घटनाक्रम पर गई है. उनके गीत जीवन के हर क्षेत्र की नुमाइंदगी करते हैं. यहां प्रकृति भी है, गांव और शहर भी है, गलत सही फैसला करती है अदालतें भी हैं, जीवन के आरंभ से ही मासूम लोगों के लिए बनी क़त्ल गाहें भी हैं-
आंख पर
पट्टी चढ़ाये
बेखबर मुंसिफ़ अदालत
गांव बस्ती
शहर कस्बा
हर तरफ हैं क़त्लगाहें
कवि सत्यनारायण ने कई ग़ज़लें भी लिखीं. यह अलग बात है कि उनके गीत रूप के आगे उनकी ग़ज़ल ढक सी गई है. इसलिए उनकी ग़ज़लों का जिक्र कम ही होता है.असल में उनकी ग़ज़लों का भी वही तेवर है जो दुष्यंत की शायरी में दिखता है.वह अपनी ग़ज़लों में भी किसी इश्क हुस्न की बात नहीं करते बल्कि उनके अंदर भी एक क्रांति के बीज डाल देते हैं.उनकी कुछ ग़ज़लों के कुछ शेर देखने योग्य हैं-
फिर चिरागों से धुआं उठने लगा कुछ कीजिए
अब तो इस घर में भी दम घुटने लगा कुछ कीजिए
रात का आलम अगर होता तो कोई बात थी
दिन निकलते आदमी लुटने लगा कुछ कीजिए
ठीक इसी तरह जनता सरकार की कार्य शैली पर उन्होंने कुछ ग़ज़लें कही थी. एक दो शेर आप भी देखें –
बुझ गए हैं दिन के सब मंज़र कि शाम आने को है
रहगुज़र में अब अंधेरों का मुक़ाम आने को है
आंधियों का नाम लेकर फूल रौँदे जाएंगे
दोस्तों अब तो चमन में वो निज़ाम आने को है
असल में कवि सत्यनारायण के साहित्य का फ़लक काफी विस्तृत है. उन्होंने नवगीत को प्रतिष्ठा दिलाई. नवगीत के माध्यम से एक इंक़लाब खड़ा किया. गीत को चाहने वाले जनता की एक फ़ौज तैयार की.
हिंदी काव्य परम्परा का बेमिसाल गीतकार और अपनी पीढ़ी का इकलौता गवाह कवि सत्यनारायण पटना के डी ब्लॉक में ठीक शत्रुघ्न सिन्हा के घर के पास कई बीमारियों से लड़कर ज़िंदादिली से मुकाबला कर रहे हैं. उनके घर पर मिलने -जुलने वालों की एक क़तार है, क्योंकि हर शख्स उस वटवृक्ष की छांह में कुछ वक्त गुज़ार लेना चाहता है. आने वाले वक्त में बिहार को इस बात पर गर्व होगा कि उनके पास सत्यनारायण जैसा एक कवि भी है.
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परिचय : डॉ.जियाउर रहमान जाफरी साहित्य की विभिन्न विधाओं में लिखते हैं. इनके कई ग़ज़ल-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. समीक्षा और आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं.
संपर्क : ग्राम /पोस्ट -माफ़ी, वाया -अस्थावां, ज़िला -नालंदा, बिहार 803107
मो. 6205254255