विद्वान प्राध्यापक डॉ. वचनदेव कुमार :: डॉ. प्रो. श्रीरंग शाही

विद्वान प्राध्यापक डॉ. वचनदेव कमार

– डॉ. प्रो. श्रीरंग शाही

हिन्दी के सुप्रसिद्ध विद्वान डॉ. वचनदेव कुमार का देहावसान एक मार्च 1994 को हो गया है और उनके महाप्रयाण से बिहार का हिन्दी जगत सूना हो गया है। डॉ. वचनदेव कुमार रांची विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के आचार्य और अध्यक्ष थे और 31 जनवरी 1994 को आपने अवकाश ग्रहण किया था।

अवकाश ग्रहण के उपरान्त डॉ. कुमार अपनी जन्मभूमि मनिअप्पा, बरौनी ,बगूसराय में निवास कर रहे थे। डॉ. कुमार ने रामदयालु सिंह कॉलेज मुजफ्फरपुर और पटना कॉलेज हिन्दी विभाग की सेवा की थी।

डॉ. वचनदेव कुमार सहज पुरूष थे ।उनका स्वभाव भी सरल था। डॉ. वचनदेव कुमार एक कवि, कहानीकार, निबंधकार, आलोचक, अनुबंधाता, कोशकार, वैयाकरण, और संपादक के रुप में यशस्वी रहे। डॉ. कुमार साठोत्तरी हिन्दी कविता के प्रबल स्तम्भ थे।

बिहार ग्रंथ कुटीर पटना द्वारा आपकी दो कविता पुस्तकें प्रकाशित हैं। कविताएँ बेमौसम की और ईहामृग । ईहामृग का प्रकाशन 1962 में हुआ था और इस संकलन में वचनदेव जी की पच्चास कविताएं हैं। रात का चित्र डाॅ कुमार ने दो रूपों में खींचा है।

“मजदूरीन सी रात
थक गयी ढोते ढोते कोयला

दूसरा चित्र है-

सनलाइट धुले टीनीवाल मिले
कपड़े पसारकर
बैठ गयी घोबिन सी वह
नदी के किनारे।”

डॉ. कुमार ने रात की उपमा मजदूरिन और धोबिन से की है। यहां स्वच्छ धवल चांदनी को सनलाइट और टिनोपाल से बिभूषित किया गया है। भारती-भवन पटना से डॉ. कुमार की दो पुस्तकें व्याकरण भास्कर और निबंध-भास्कर छात्रों के बोच लोकप्रिय रही हैं। ये दोनों पुस्तकें छठे वर्ग से लेकर स्नातक वर्ग के छात्रों के लिए भी आधार-ग्रंथ है, निबंध-भास्कर के निबंधों में डॉ. कुमार का कवित्व-मुखरित हो जाता है। भावना और रचना-प्रधान निबंत्र एक प्याली चाय में कबि की नई कविता जाग उठती है।

एक कप टी
तुमने दी ।
हमने पी –
ही-ही-ही-

नींद नहीं आयी – को स्पष्ट करते हुए डॉ. कुमार ने रात से पूछा है

-“तुम रात भर जगते हो
तोसंतोष है
केवल मैंने ही घोखा नहीं खाया।”

आज सर्वत्र बेकारी है। इस समस्या का समाधान कैसे होगा। डॉ. कुमार ने
परिवार-नियोजन पर व्यंग्य करते हुए कहा है –

“बेकारी की कठिन समस्या
का हल होगा सच्चा ।
घर-घर में यदि जनम ले
बिना पेट का बच्चा ।”

प्रयोगवादी कवि अज्ञेय ने प्यार का बल्ब फ्यूज होते देखा था। डॉ. कुमार बेकार युवकों को देखकर चिन्ताग्रस्त हो जाते हैं-

“उनके दर्जन भर बच्चे
जब मिलकर चिल्लाते हैं
मेरे माइन्ड की बिजली के
सब बल्ब फ्यूज हो जाते हैं।”

राष्ट्र-निर्माता दो खण्डों में भारती-भवन से ही प्रकाशित हैं और इस पुस्तक में महापुरुषों की जीवनियाँ हैं। भारती-भवन ने डॉ. कुमार द्वारा संपादित कथा-यात्रा का भी प्रकाशन किया है। बिहार ग्रंथ कुटीर से डॉ. कुमार की दो आलोचनात्मक पुस्तकें प्रकाशित हैं ।निराला आलोचकों की दृष्टि में और उर्वशी विचार और विश्लेषण / राजकमल प्रकाशन ने तुलसी-विविध संदभों में का प्रकाशन किया है। स्पष्टतः डॉ कुमार तुलसी, निराला और दिनकर साहित्य के अधिकारी विद्वान माने जाते हैं।

लोक-भारती इलाहाबाद से डॉ. कुमार की पुस्तक साकेत विचार और विश्लेषण का प्रकाशन हुआ है। डॉ. कुमार संम्कृत साहित्य के भी अधीन विद्वान माने जाते हैं। आपने संस्कृत साहित्य का इतिहास भी लिखा है जिसका प्रकाशन नेशनल पब्लिसिंग हाउस, नई दिल्ली द्वारा हुआ है। आचार्य देवेन्द्र नाथ शर्मा और डॉ. वचनदेव कुमार के सम्पादकत्त्व में तुलसी साहित्य विवेचन और मूल्य-कन का भी प्रकाशन नेशनल द्वारा ही हुआ है। शिवसागर मिश्र पर डॉ. वचनदेव कुमार ने जमकर लिखा है।

देवेन्द्र कु० पाण्डेय ने शिवसागर मिश्र के उपन्यासों का शास्त्रीय अध्ययन पर शोध-प्रबंध डॉ. वचनदेव कुमार के ही निदेशन में 1980 में रांची विश्वविद्यालय में समर्पित किया था । डॉ. कान्ति सिह नई दिल्ली के निदेशन में 1988 में बंगलौर विश्व-विद्यालय में आर्यर एस० विल्सन ने डॉ. वचनदेव कुमार की काव्य-साधना का विवेचन एवं मूल्यांकन पर शोध-प्रबंध प्रस्तुत किया था । हास्य और व्यंग्य के लेखक के रुप में भी डॉ. कुमार प्रख्यात रहे हैं। 1980 में डॉ. बालेन्दु शेखर तिवारीजी ने डॉ० वचनदेव कुमार की व्यंग्य रचनाएँ का सम्पादन किया था और पुस्तक का प्रकाशन प्रज्ञा प्रकाशन रांची द्वारा हुआ है। डॉ० वचनदेव कुमार ने तैंतीस पुस्तकों की रचना की थी और वे सभी प्रकाशित हैं। डॉ० कुमार का देहावसान 62 वर्ष की आयु में हुआ है। जब उन्होंने पच्चास वर्ष पूरा किया था तो डॉ० बालेन्दु शेखर तिवारी के सम्पादकत्त्व में एक पुस्तक का प्रकाशन हुआ था “डॉ० वचनदेव कुमार अद्धशती मूल्याङ्कन”। इसी पुस्तक का प्रकाशन 1984 में ग्रंथ-प्रतिष्ठान रांची द्वारा हुआ था। डॉ० कुमार विमल, डॉ० त्रिभुवन सिंह, डॉ० कैलाश चन्द्र भाटिया, डॉ० राममूर्ति त्रिपाठी, डॉ. प्रेमशंकर और डॉ० कमल किशोर गोयनका ने डॉ० कुमार के व्यक्तित्व और कृतित्त्व पर प्रकाश डाला था । डॉ० कमार आज हमारे बीच नहीं हैं, पर उनका उत्कृष्ट साहित्य उनको अमरता प्रदान करता है मैं इस महान साहित्यकार को स्मृति-तर्पण देता हूँ।

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