ग़ज़ल के वजूद का दस्तावेजः चुप्पियों के बीच :: डॉ पंकज कर्ण
ग़ज़ल के वजूद का दस्तावेजः चुप्पियों के बीच डॉ पंकज कर्ण डॉ भावना संवेदनशील और विवेक संपन्न ग़ज़लकार हैं। अपनी रचनात्मक मान्यताओं और सिद्धांतों पर वे पूरी मजबूती के साथ…
ग़ज़ल के वजूद का दस्तावेजः चुप्पियों के बीच डॉ पंकज कर्ण डॉ भावना संवेदनशील और विवेक संपन्न ग़ज़लकार हैं। अपनी रचनात्मक मान्यताओं और सिद्धांतों पर वे पूरी मजबूती के साथ…
मां – रेखा दुबे कितना सुंदर रूप तुम्हारा जैसे गंगा जल की धारा , शान्त , शाश्वत ,रूप बेल सा कर्तव्यनिष्ठा से,परिपूरित था, हम ढूंढ रहे थे,तिनका-तिनका माँ रूप तुम्हारा…
ज्योति रीता की छह कविताएं लड़कियों का मन कसैला हो गया है इन दिनों लड़कियों का मन कसैला हो गया है अब वह हँसती नहीं दुपट्टा भी लहराती नहीं अब…
सुरेन्द्र रघुवंशी की पांच कविताएं अन्नदाता मौसम की मार से बड़ी होती है सरकार की मार कि किसी भी मौसम के किसी भी सत्र में वे सदन में बिल लाकर…
1 बहुएँ-बेटे आये घर गुलजार हो गया ! आँगन खिल-खिल बच्चों से इस बार हो गया ! अधिक रौशनी दीपों में दिख रहा बंधु है पुलकित होता रह-रह कर हृद-प्यार…
एक उदास सिम्फ़नी – सुशांत सुप्रिय ”रात वह होती है जब तुम सोए हुए हो और तुम्हारे भीतर अँधेरा भरा…
मरछिया जयप्रकाश मिश्र अनाथ मरछिया कुत्ते के जूठे पत्तल चाट-चाटकर युवती हो गयी थी । आदर्श की रेशमी चादर ओढ़कर सिद्धान्त बघारने वाले उसकी प्रतीक्षा में पलक पाबड़े बिछाये बैठे…
1 दर्द का इतिहास है हिन्दी ग़ज़ल एक शाश्वत प्यास है हिन्दी ग़ज़ल प्रेम, मदिरा, रूप की बातें भरी अब नहीं बकवास है हिन्दी ग़ज़ल आदमी के साथ नंगे पांव…
अंकुश – संतोष दीक्षित साहेब सरकारी संत थे। एक सरकारी मठ के प्रधान थे।उन्हें खाने के बाद फल खाने की आदत थी। एक दोपहर पेट भर…
योग के साथ, घर में योग कुमार कृष्णन कोविड-19 महामारी के बीच लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चुनौतियाँ बढ़ती जा रही हैं। इस अप्रत्याशित समय में योग…