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Author: admin

संपादक की कलम से

संपादक की कलम से ( तीसरा संस्करण )

July 1, 2017August 30, 2017

सावन हे सखी सगरो सुहावन कहते हैं, समुद्र मंथन के बाद भगवान शिव -शंकर ने जब हलाहल का पान किया तो उनका पूरा शरीर विष  के ताप से नीला हो…

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संपादकीय

संपादकीय –

 

 

संपादकीय –

हिंदी ग़ज़ल के प्रणेता और जनमानस की आवाज़ थे दुष्यंत

दुष्यंत हिंदी ग़ज़ल के प्रणेता हैं, जिन्होंने अपनी समसामयिक ग़ज़लों के माध्यम से जनमानस के भीतर अपनी मजबूत जगह बना ली तथा हिंदी ग़ज़ल में अनंत संभावनाओं का द्वार खोल दिया। निदा फाजली ने बहुत ही सही कहा है कि “दुष्यंत की नज़र उनके युग की नई पीढ़ी के गुस्से और नाराजगी से सजी बनी है ।यह गुस्सा और नाराजगी उस अन्याय और राजनीति के कुकर्मों के खिलाफ नए तेवरों की आवाज थी, जो समाज में मध्यवर्गीय झूठेपन की जगह पिछड़े वर्ग की मेहनत और दया की नुमांइदगी करती है । दुष्यंत कुमार ने  पहली बार न केवल हिन्दी ग़ज़ल को जनमानस में स्थापित किया, बल्कि  पारंपरिक ग़ज़ल की रूढ़ियों से भी  मुक्त भी किया । दुष्यंत ने अपने संग्रह ‘साये में धूप ‘ की भूमिका में ये स्वीकार किया है कि ” उर्दू और हिन्दी अपने -अपने सिंहासन से उतरकर जब आम आदमी के पास आती हैं तो उनमें फर्क कर पाना मुश्किल हो जाता है ।मेरी नीयत और कोशिश यह रही है कि दोनों भाषाओं को ज्यादा से ज्यादा करीब ला सकूँ ।इसलिए ये ग़ज़लें उस भाषा में कही गयी हैं ,जिसे मैं बोलता हूँ ।” दुष्यंत ने हिंदी ग़ज़ल को जमीन दी, जिस पर हिंदी ग़ज़ल पूरी मजबूती के साथ खड़ी है. दुष्यंत की 27 सितंबर को जयंती है. इस बार का अंक हिंदी ग़ज़ल के प्रणेता और आम आदमी के कवि दुष्यंत कुमार पर केंद्रित है़. पत्रिका में प्रस्तुत सामग्री पर अपने विचारों से अवगत करायेंगे, ऐसी उम्मीद है

  • डॉ भावना

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आंच व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है. इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं. लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक महीने की एक तारीख को प्रकाशित की जाती है. कृपया रचनाएं इमेल पर भेजें. रचनाओं के मौलिक व किसी अंतरजाल पर प्रकाशित नहीं होने का प्रमाण भी संलग्न करें.
इमेल – bhavna.201120@gmail.com ,vinay.prabhat@gmail.com

संपादक –            भावना
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