जानकीवल्लभ शास्त्री के गीत में संगीत पुस्तक के लेखक डॉ अरविंद कुमार ने यह काम कर दिखाया है, जो शास्त्री जी पर शोध करने वाले दर्जनों शोध कर्ताओं से संभव नहीं हो सका. हिंदी जगत अभी तक शास्त्री जी को एक गीतकार के रूप में जानता-पहचानता है. लेकिन उनके गीतों पर सांगीतिक दृष्टि से अब तक विचार नहीं हुआ था. इस काम को डॉ अरविंद कुमार ने पूरा किया है. इसके लिए संपूर्ण हिंदी जगत उनका आभार स्वीकार करता है. संस्कृत के एक आचार्य धनंजय ने गीत, नृत्य और वाद्य के सम्मिलित रूप को संगीत कहा है. अत. संगीत के धरातल पर शास्त्री जी की गीत की गरिमा किस सीमा तक कायम रख पाती है, इसे लेखक ने बताया है. यह एक अनूठी पुस्तक है. शास्त्री जी पर ऐसी पुस्तकें आज तक लिखी नहीं गयी थी. सांगीतिक परिधि में लाकर किसी गीत को पहचानना बड़ा कठिन काम है. गीत लिखने वाले गीतकार भी ऐसा नहीं कर पाते. इस पुस्तक के लेखक साहित्यिक रुचि के व्यक्ति हैं और संगीत तो उनकी अपनी चीज है. फलत. शास्त्री जी के गीतों को संगीत के धरातल पर लाकर इन्होंने जो पहचान देने का काम किया है, जो अपने आप में पूर्णता को चरम बिंदु पर कायम है. सामवेद की रचना सिद्ध करती है कि पुरातन काल से ही मनुष्य गीत एवं संगीत से संबद्ध रहा है. आज तो विविध रूपों में प्रस्तुत ये गीत एवं संगीत मनुष्य को आह्लादित करने में सक्षम सिद्ध हो चुके हैं. इस पुस्तक के लेखक को आज के परिष्कृत युग की अच्छी पहचान है और तदनुकूल परिष्कृत एवं परिवर्द्धित गीत एंव संगीत के परिवेश को लक्ष्य करते हुए ऐसी समृद्ध रचना प्रस्तुत कर लेखक ने अपने नाम को चिरकालिक रूप में यशस्वी बना लिया है.
गीत-संगीत के संदर्भ में हमें याद रखना चाहिए कि इनमें सहज संबंध है. हमारे यहां जो लीला गान की परंपरा रही है, उसमें पद-शैली की रचनाएं प्रमुख है और उनमें संगीत समाहित है. फर्क प्रभाव के स्तर पर रहता है. संगीत हमें परम तत्व की ओर ले जाता है. वह श्रोता के सांस्कृतिक उन्नयन का साधन है. सच्चे संगीतकार अपने गायन से हमारी चेतना को ऊर्ध्वमुखी बना देते हैं. संगीत की संगति पाक गीत को जो गति प्राप्त हो जाती है उससे प्रभाव और संप्रेषण में सम्मोहन की क्षमता बढ़ जाती है. जिन गीतकारों को संगीत की जानकारी रहती है, उन्हें मंच पर विशिष्ट होने का सुख सहज ही मिल जाता है. किंतु रूपंकर कलाओ में सर्वोत्तम पद काव्य को ही प्राप्त है.
इस पुस्तक की सामग्री अत्यंत उपयोगी है. शास्त्री जी काव्य अनलंकृत नहीं है, वह केवल अर्थलय को ही परम सत्य नहीं मानता. वह आनंद की साधनावस्था का काव्य है तो आनंद की सिद्धावस्था का भी. अरविंद ने पूरी विनम्रता और सत्य निष्ठा के साथ शास्त्री जी के गीतों में संगीत तत्वों का उद्घाटन और विवेचन किया है. उनका यह अध्ययन यांत्रिक होने से बच गया है. इसलिए कि लेखक संगीत में गहरी रुचि रखता है. यह संगीत का मात्र एक पेशेवर प्राध्यापक नहीं है, संगीत उनके स्वभाव में शामिल है. इस पुस्तक के अंत में शास्त्री जी के कुछ महत्वपूर्ण गीतों की अरविंद ने जो स्वरलिपि प्रस्तुत की है, वह संगीत के शिक्षार्थियों के बड़े काम की सिद्ध होगी.
पुस्तक : जानकीवल्लभ शास्त्री के गीतों में संगीत
लेखक – डॉ अरविंद कुमार
संगीत विभागाध्यक्ष, मगध महिला कॉलेज,
पटना विश्वविद्यालय, पटना
मो. 9835681230
समीक्षक : डॉ आश नारायण शर्मा
सेवानिवृत्त प्रोफेसर, हिंदी विभाग
आरडीएस कॉलेज