पुस्तक समीक्षा :: एटमी हथियारों की होड़ पर गंभीर सवाल ‘रुई लपेटी आग’ :: ऋचा वर्मा 

एटमी हथियारों की होड़ पर गंभीर सवाल ‘रुई लपेटी आग’ :: ऋचा वर्मा 

(अवधेश प्रीत की पुस्तक ‘रुई लपेटी आग’ की समीक्षा)

अपने पहले उपन्यास ‘अशोक राजपथ’ से समकालीन उपन्यास लेखन में धूम मचाने वाले अवधेश प्रीत का दूसरा उपन्यास ‘रुई लपेटी आग’, ‘पोखरण की धरती पर पखावज का उत्सव’ के टैगलाइन के साथ आया है। पूर्वी उत्तर प्रदेश की माटी की सुगंध एवं राजस्थान के नाथद्वारा के श्री नाथ मंदिर से उठती पखावज की संगीत लहरियों के पृष्ठभूमि पर उकेरा गया यह उपन्यास समान वेग से पोखरण की धरती पर हुए परमाणु परीक्षण से उपजे दुष्परिणामों और विभीषिकाओं को बहुत ही प्रामाणिक तौर पर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता है।
संगीत ,चिकित्सा ,विज्ञान ,और सामरिक प्रवीणता पर श्रमसाध्य शोध के उपरांत लिखा गया यह उपन्यास अपने दो मुख्य पात्र अरुंधती जो देश की एक प्रसिद्ध पखावज वादिका है, और डॉक्टर कलीम‌उद्दीनअंसारी उर्फ कल्लू, न्यूक्लीयर सांइटिस्ट जिसने 1998 में पोखरण में हुए परमाणु परीक्षण में एक अहम् भूमिका निभाई थी, को लेकर बहुत ही संतुलित गति से अन्य पात्रों के सहारे आगे बढ़ते हुए समकालीन वैश्विक पृष्ठभूमि में एटमी हथियारों के होड़ तथा भारत और पाकिस्तान जैसे गरीब देशों की युद्ध में संलिप्तता पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है। इन्हीं पात्रों में से हैं बया और शकील बलोच ,जो आक्रांत हैं परमाणु परीक्षण से उपजे रेडिएशन के कुप्रभावों से और अपनी अपनी तरह से आवाज़ उठा रहे हैं इसके विरुद्ध।
युद्ध और परमाणु विस्फोट बनाम संगीत और शायरी अर्थात विनाश बनाम सृजन का अद्भुत संयोग चित्रित इस उपन्यास में प्रेम एक मधुर रस की भांति प्रवाहमान है। अब वह चाहे अरु और कल्लू के बीच का अव्यक्त प्रेम हो, हरदेव प्रताप बच्चू और मोनीषा चटर्जी का जिद भरा प्रेम हो या फिर बया और दीप के बीच का अनकंडीशनल प्यार ! और कुछ इसी तरह के प्रेम के धागे से जुड़े पंडित राम रतन रामायणी और अबूल अंसारी ।
कथा के अंत में पाकिस्तान के जेल में मानवाधिकार कार्यकर्ता शकील बलोच का का मारा जाना और भारत में उसके नज़्म को बया के स्वर और अरुंधती के पखावज के थाप के बीच गाते हुए ‘पोखरण में परमाणु विस्फोट का श्राद्ध’ का मनाया जाना नि:संदेह भारत के अविच्छिन्न प्रजातांत्रिक मूल्यों को उजागर करता है।
उपन्यास की भाषा को पात्रों के अनुकूल रखी गयी है। किस्मत और व्यवस्था की मारी हुई पात्र गुनी के माध्यम से ‘अंग अंग बथ रहा था’ और ‘चिरौरी’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है, ऐसे शब्दों को सहेज कर रखना जरूरी है तथा ताकि हमारी भाषा समृद्ध हो सके‌।
आजकल जिस तरह हमारे देश में सांप्रदायिकता ने अशांति फैला रखी है जिस तरह तीसरे विश्व युद्ध का आगाज होता दिख रहा है रुई में लगी आग की तरह परमाणु बम के बल पर पूरी दुनिया अंदर अंदर सुलग रही है वैसे समय में वैज्ञानिक कलीमुद्दीन के माध्यम से कहवाना कि,’ अगर सरहद ना हो तो युद्ध भी नहीं होगा’ इस उपन्यास को एक अनिवार्यतया पढ़ने वाला ..मस्ट रीड उपन्यास बनाता है।
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उपन्यास: रुई लपेटी आग
लेखक: अवधेश प्रीत
प्रकाशक: राजकमल
मूल्य:299 रुपये

समीक्षक :: ऋचा वर्मा

 

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