आधुनिक हिन्दी ग़ज़ल-शिल्प और कथ्य : अनिरुद्ध सिन्हा

आधुनिक हिन्दी ग़ज़ल-शिल्प और कथ्य – Nअनिरुद्ध सिन्हा मैं यह मानता हूँ दुष्यंत कुमार हिन्दी ग़ज़ल के अनिवार्य हस्ताक्षर हैं। उनके ग़ज़ल -लेखन का कथ्य परिवेश जितना विशाल है,उतना ही…

पारंपरिक जनजातीय लोक कला सोहराई – कुमार कृष्णन

पारंपरिक जनजातीय लोक कला सोहराई – कुमार कृष्णन झारखंडी संस्कृति में सोहराई कला का महत्व सदियों से रहा है। बदलते परिवेश में कथित आधुनिकता के नाम पर लोगों का शहरीकरण…

आलेख : डॉ. मुकेश कुमार

कमल सुनृत वाजपेयी के काव्य में बसंत ऋतु का चित्रण बहुआयामी  प्रतिभा की धनी कवयित्री कमल सुनृत वाजपेयी का जन्म 10 फरवरी, सन् 1947 ई. में यवतमाल (मध्यप्रदेश) में पं.…

संत ब्रह्मानन्द सरस्वती और उनका जीवन दर्शन : डॉ मुकेश कुमार

संत ब्रह्मानन्द सरस्वती और उनका जीवन दर्शन – डॉ मुकेश कुमार जब सूर्य का उदय होता है तो अन्धकार का विनाश निश्चित ही होता है। कस्तूरी अपनी सुगन्ध वातावरण में फैलाकर सारे पर्यावरण को सुगन्धित बना देती है। उसी प्रकार विश्व कल्याण के लिए व अज्ञान के अन्धकार को समाप्त करने के लिए इस पवित्र धरा पर भगवान किसी न किसी महापुरुषों, सन्तों के रूप में अवतार लेता है। क्योंकि जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि का स्वरूप मनुष्यों पर नास्तिक, पापी, दुराचारी और बलवान मनुष्यों का अत्याचार बढ़ जाना तथा लोगों में सद्गुण-सदाचारों की अत्यधिक कमी और दुर्गुण-दुराचारों की अत्यधिक वृद्धि हो जाना। तभी किसी न किसी अवतार रूप की आवश्यकता पड़ती है। तब भगवान किसी अवतार रूप में जन्म लेता है। इसी प्रकार से गीता में भी बताया गया है- ”यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानि र्भवति भारत। अभ्युत्थान धर्मस्य तदात्माने सृजाम्यहम्।।“1 अर्थात् (भारत)-हे भारत वंशी अर्जुन, (यदा,-यदा धर्मस्य (जब जब धर्म की), (ग्लानिः)-हानि और (अधर्मस्य)-अधर्म की, (अभ्युत्थानम्)-वृद्धि, (भवति)-होती है, (तदा)-तब-तब, (हि)-ही, (अहम्)-मैं, (आत्मानम्)-अपने-आपको (सृजामि), साकार रूप से प्रकट करता हूँ। तो इसी प्रकार की पुण्य आत्मा जो दयायुक्त हृदय वाली, यज्ञमय जीवन धारण करने वाली, श्रेष्ठ योगी व जिसके हृदय में पशु, पक्षी, वृक्ष, पर्वत, मनुष्य, देवता, पितर, ऋषि,…

‘नयी नारी’ – स्त्री–मुक्ति का नया प्रस्थान : डॉ पूनम सिंह

‘नयी नारी’ – स्त्री–मुक्ति का नया प्रस्थान – डॉ पूनम सिंह सामाजिक , राजनीतिक चेतना के चेतना के क्रांतिकारी सर्जक बेनीपुरी ने जिस समय ‘नयी–नारी’ की परिकल्पना की थी; उस…

प्रसाद और बेनीपुरी के ऐतिहासिक नाटकों की चरित्र योजना :: डॉ शेखर शंकर मिश्र

प्रसाद और बेनीपुरी के ऐतिहासिक नाटकों की चरित्र योजना – डॉ शेखर शंकर मिश्र नाटक दृश्यकाव्य की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विधा है, जिसे ‘अवस्था की अनुकृति’ कहा गया गया है |…

रामवृक्ष बेनीपुरी एक अद्भुत रचनाकार

रामवृक्ष बेनीपुरी एक अद्भुत रचनाकार – संजीव जैन हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के लेखकों में रामवृक्ष बेनीपुरी एक विशिष्ट स्थान के अधिकारी हैं, परंतु हिन्दी  साहित्य के इतिहास में…

गेहूँ और गुलाब :: रामवृक्ष बेनीपुरी

गेहूँ और गुलाब गेहूँ हम खाते हैं, गुलाब सूँघते हैं। एक से शरीर की पुष्टि होती है, दूसरे से मानस तृप्‍त होता है। गेहूँ बड़ा या गुलाब? हम क्‍या चाहते…

आलेख : अनिरुद्ध सिन्हा

हिन्दी ग़ज़ल – संवाद और संदर्भ – अनिरुद्ध सिन्हा इससे सहमत हुआ जा सकता है कि दुष्यंत कुमार से पहले हिन्दी ग़ज़ल के क्षेत्र में जो बहुत सारी वैचारिक तथा…

आलेख : डॉ मनमीत कौर

आदिवासी स्त्रियाँ (निर्मला पुतुल की कविताओं के विशेष संदर्भ में)                                                                      – डॉ मनमीत कौर वर्तमान भारत में आदिवासियों की कुल आबादी लगभग आठ प्रतिशत है। इसमें आदिवासी स्त्रियों इसका…