दुष्यंत के सीने में जलती आग : डॉ अभिषेक कुमार

दुष्यंत के सीने में जलती आग  डॉ अभिषेक कुमार   अगर वास्तव में तुम दुष्यंत के सीने में जलती आग को महसूस करना चाहते हो तो कभी जाकर देखो उस…

दुष्यंत की कविता : डॉ. पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’

दुष्यंत की कविता हिन्दी ग़ज़ल के स्थापक दुष्यंत कुमार अपने समकालीन साहित्यकारों के बारे में भी कविताएं लिखा करते थे, आज वे रचनाएं महत्त्वपूर्ण साहित्यिक दस्तावेज हैं । जिनके माध्यम…

ख़ास कलम :: दिवाकर पांडेय चित्रगुप्त

दिवाकर पांडेय चित्रगुप्त की पांच ग़ज़लें 1 कीट-पतंगें ही निकलेंगे इल्ली से, हासिल क्या है धेला-टका-रूपल्ली से ज्यों चूहों की रखवाली में बिल्ली से, उतनी ही उम्मीदें रखना दिल्ली से…

ख़ास कलम :: सुबीर कुमार भट्टाचारजी

सुबीर कुमार भट्टाचारजी की तीन कविताएं  आनंदमयी माँ द्वारा चोर का हृदय परिवर्तन आनंदमयी माँ जा रही थीं ट्रेन से एक हाथ बाहर था खिड़की के उन्होंने उस हाथ में…

खास कलम :: मोनिका सक्सेना

दोहे दूषित जल से हो रहा, मानव जीवन त्रस्त। हर प्राणी अब हो गया, रोग, व्याधि से ग्रस्त।। नारे, भाषण से नहीं, होगा विकसित देश। साथ कर्म भी चाहिए, बदलेगा…

ख़ास कलम :: पवन कुमार

पवन कुमार की तीन कविताएं मजदूरों की रामकहानी मज़दूरो की रामकहानी तुमसे नही सुनी जाएगी   तुम हो राजा राजमहल के सुख ,वैभव में जीने वाले प्यास भला क्या पहचानोगे…

रेत की तरह फिसल जाये उम्मीद :: शबनम सिन्हा

रेत की तरह फिसल जाये उम्मीद : शबनम सिन्हा चिलचिलाती धूप में टपकते पसीने के बाद भी आगे बढ़ते कदम इस उम्मीद के साथ कि पेट भरने के लिये हो…

ख़ास कलम – जयप्रकाश मिश्र

दोहे :: महानगरीय समस्याएँ जयप्रकाश मिश्र   नंगेपन की दौड़ में, महानगर है आज। बिना शर्म की नग्नता,  फिर भी करती नाज।।1।।   भीड़-भाड़ की जिन्दगी, मिलता  ट्रैफिक जाम। घुटन…