विशिष्ट कहानीकार : सीमा शर्मा
मैं,रेजा और पच्चीस जून यह उम्र ही ऐसी होती है। सब कुछ अच्छा लगता है। सुंदरता और शोख रंग तो खींचते ही हैं। पर जो हट कर है, वह और…
मैं,रेजा और पच्चीस जून यह उम्र ही ऐसी होती है। सब कुछ अच्छा लगता है। सुंदरता और शोख रंग तो खींचते ही हैं। पर जो हट कर है, वह और…
इकलसूमड़े हम सब हैरान थे । वर्मा दम्पत्ति का सदा उजाड़ और फीका सा रहने वाला मकान इस वक्त हमारे कस्बे के सबसे चतुर ठेकेदार की देख-रेख में अपना श्रृंगार…
अंगुली में डस ले बिया नगनिया ……. – डॉ भावना सुबह से ही अनमनी थी वह. जेठ का महीना तो जैसे कटता ही नहीं. दिन भी बहुत बड़े होते हैं…
मस्सा कथाकार – यासुनारी कावाबाता अनुवाद – सुशांत सुप्रिय कल रात मुझे उस मस्से के बारे में सपना आया। ‘मस्सा’ शब्द के जिक्र मात्र से तुम मेरा मतलब समझ गए…
किवाड़ों का पसीजापन उसका रुकना जैसे एक गजब हो गया था। न जाने वह क्यों रुक गयी थी? क्या भुला दिए गए लोगों को ऐसे रुकने का अधिकार होता है?…
किंबहुना – ए. असफल जीएम मीटिंग लेने वाले थे। आरती के हाथ पाँव फूल रहे थे। फाउन्डेशन की एक और प्रोजेक्ट आफीसर नीलिमा सिंह उसे नष्ट कराना चाहती है। जीएम…
उस महाभव्य भवन की आठवीं मंजिल के जीने से सातवीं मंजिल के जीने की सूनी-सूनी सीढ़ियों पर उतरते हुए, उस विद्यार्थी का चेहरा भीतर से किसी प्रकाश से लाल हो…
मूल लेखक : लुइगी पिरांदेलो अनुवाद : सुशांत सुप्रिय गिगी मियर ने उस सुबह एक पुराना लबादा पहन रखा था ( जब आप चालीस से ऊपर के हों तो उत्तर…