हेमलता – एक मखमली आवाज़ :: सलिल सरोज

हेमलता – एक मखमली आवाज़
“अँखियों के झरोखों से, मैने देखा जो साँवरे
तुम दूर नज़र आए, बड़ी दूर नज़र आए
बंद करके झरोखों को, ज़रा बैठी जो सोचने
मन में तुम्हीं मुस्काए, बस तुम्हीं मुस्काए”
16 मार्च 1978 को प्रदर्शित हुई फिल्म “अँखियों के झरोखों से” के इस टाइटल ट्रैक को आप चाहे जितनी बार भी सुन लीजिए ,आप फिर से इसे दोबारा सुनने से अपने आप को रोक नहीं पाएँगे।  रविन्द्र जैन का बेहतरीन गीत और संगीत आपको किसी और ही दुनिया में लेके जाता है ; लेकिन जो चीज़ आपको उस दुनिया में खो जाने और रूक जाने पर मजबूर करती है वह है इस गीत को गाने वाली हेमलता की दैविक आवाज़।आपने अगर नदियों का कलकल नहीं सुना ,पंछियों  को चहचहाते नहीं सुना,गाँव में छप्पर से टपकते हुए बारिश की बूँदों को नहीं सुना, किसी सद्यस्नाता स्त्री को रेत के पथ पर पायल छनकाते नहीं सुना या फिर आपने कोयल को भी नहीं सुना तो आप केवल और केवल हेमलता को सुनिए। मेरा यकीन ही नहीं यह दावा है कि आपको इस आवाज़ से प्यार होते वक़्त नहीं लगेगा।  संगीत की समझ ,स्वरों का उच्चारण, लय -ताल की सूझ -बूझ और  भगवान् के द्वारा प्रदत्त रूहानी आवाज़ ,सब मिल कर हेमलता को गाते हुए किसी देवी से कम नहीं बनाते हैं।  अगर सरस्वती माँ को कोई गाते सुना होगा तो यकीनन हेमलता की आवाज़ जरूर उससे मिलती होगी। हेमलता के गाए एक एक गीत अपने आप में अनमोल मोती की तरह हैं। ” तू इस तरह से मेरी ज़िंदगी में शामिल है ” ( आप तो ऐसे न थे ),”एक दिन तुम बहुत बड़े बनोगे एक दिन ” (अँखियों के झरोखों से) ,”बबुआ ओ  बबुआ”, ” कौन दिशा में लेके चला रे बटोहिया” (नदिया के पार ),” तू जो मेरे सुर में “(चितचोर),”ले तो आए हो हमें सपनों के गाँव में “,खुशियाँ ही खुशियाँ “( दुल्हन वही जो पिया मन भाए ),” चंदा को ढूँढ़ने “( जीने की राह )-एक एक गीत आपको यह सोचने पर मजबूर कर देगी कि यह इंसान की नहीं किसी देवी की ही आवाज़ हो सकती है।
हेमलता को मुक़म्मल पहचान तब मिली जब रवींद्र जैन ने उन्हें फिल्म फकीरा (1976) के गाने “सुन के तेरी पुकार” के लिए ब्रेक दिया।उसी वर्ष, रवींद्र जैन ने राजश्री बैनर की फिल्म चितचोर के लिए अपनी आवाज़ का इस्तेमाल किया जिसके लिए उन्होंने फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। इसके बाद, हेमलता ने 1980 और 1990 के दशक में राजश्री प्रोडक्शन की विभिन्न फिल्मों में खुद को स्थापित किया।रवींद्र जैन के साथ, उन्होंने कई अन्य गीतों पर काम किया था। उनमें से “अँखियों के झरोखों से” है। बिनाका गीत माला (एक रेडियो शो जो एल्बम बिक्री के रिकॉर्ड संकलित करता था) के अनुसार, यह वर्ष 1978 में नंबर एक गीत बन गया। हेमलता को इस गीत के लिए सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया था। इसे YouTube पर लाखों व्यूज मिले हैं। वह एकमात्र भारतीय पार्श्व गायिका हैं जिन्होंने के जे येसुदास के साथ अधिकतम हिंदी गाने रिकॉर्ड किए हैं।इसके अलावा, उसने रामानंद सागर के महाकाव्य टीवी सीरियल रामायण के लिए अपनी आवाज दी है (वह पारंपरिक मीरा भजन पायोजी मेन राम रतन धन पायोजी के प्रदर्शन के लिए एक एपिसोड में खुद भी दिखाई दी थी), साथ ही साथ उत्तर रामायण (लव कुश) और श्री कृष्ण पूरी श्रृंखला के दौरान।वह एकमात्र बॉलीवुड गायिका थीं, जिन्हें सिखों के विश्व समुदाय और पंजाब सरकार के साथ-साथ पवित्र अकाल तख्त के लिए चुना गया था, जो कि गुरमीत संगीत का प्रदर्शन करने के लिए सिक्ख खालसा पंथ के 300 वर्षों के उत्सव के लिए मूल रागों में रचे गए थे।
“हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा”
मैंने अँखियों के झरोखों फिल्म के गाने अपने पिताजी को सुनते देखा और तब से ही मेरे जहन में यह आवाज़ रच-बस सी गयी। मेरे मोबाइल ,मेरे कार ,मेरे लैपटॉप हर जगह यह गीत मेरे साये की तरह लगी है जो मुझे शुकून पहुँचाती है। पिताजी बताते हैं कि इस फिल्म में पहली बार नायिका के मरने का फिल्मांकन इस तरीके से किया गया कि फिल्म ख़त्म होने के बाद हॉल के बाहर हर दर्शक आँखेँ पोंछता हुआ नज़र आ रहा था। फिल्म की कहानी और उस पर हेमलता की आवाज़ में गाना “जाते हुए ये पलछिन” आपके ह्रदय को चीर कर रख देती है।आप नायिका और नायक की छटपटाहट स्वयं  महसूस कर सकते हैं और जब नायिका की मौत होती है इस गीत के ख़त्म होने के साथ ,सारे दर्शक स्तब्ध रह जाते हैं। रंजीता और सचिन ने जितना बेहतरीन अभिनय किया है ,उस पर हेमलता की आवाज़ और प्रभावी हो जाती है।
आप ने आज तक आँख खोलकर स्वप्नलोक में पहुँचने का अनुभव नहीं लिया है तो एक बार ,बस एक बार हेमलता को जरूर सुने ; आपको हर संशय दूर होता हुआ दिखेगा।
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परिचय : सलिल सरोज, कार्यकारी अधिकारी, लोक सभा सचिवालय
संसद भवन,नई दिल्ली
9968638267

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