उदास- उदास सफ़र था उदास रस्ता भी
उदास लगता था मुझको ख़ुद अपना साया भी
हमारी रात उजालों से कब हुई रौशन
बना के चाँद उसे आइना में देखा भी
ज़मीं ही सहरा में तब्दील हो न जाए कहीं
वो धूप है कि उबलने लगा है दरिया भी
वो अपने ख़त से भी अंजान था मैं क्या करता
तो उसका नाम दिखा कर उसे पढ़ाया भी
उसे समझना भी आसान कुछ नहीं था,और
बदल-बदल के वो मिलता था अपना चेहरा भी
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परिचय :ग़ज़लकार की कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं