कैलाश झा किंकर गीत, कविता व ग़ज़ल के प्रमुख हस्ताक्षर रहे हैँ. साहित्य की विभिन्न विधाओ में ये निरंतर सृजन कर रहे हैं. पिछले दिनों कोरोना संक्रमण के कारण इनका निधन हो गया. आंच परिवार श्रद्धांजलि स्वरूप इनकी ग़ज़लें प्रकाशित कर रहा है –
क़ै़लाश झा किंकर की ग़ज़लें –
1
चन्द सिक्के थमा के लूटेगा
बात मीठी सुना के लूटेगा
संत-सा लग रहा है ऊपर से
पास अपने बिठा के लूटेगा
कोई पत्थर नहीं पिघलता है
उसको ईश्वर बता के लूटेगा
तीरगी को मिटा नहीं सकता
एक दीया दिखा के लूटेगा
है भरोसा नहीं मुझे उसपर
मुझको अपना बना के लूटेगा
2
सँभालूँ ज़िन्दगी को या कि तेरी दोस्ती को
नहीं रस्ता दिखाने की जरूरत है नदी को
समय की धार पर बहते गए अनगिन सफीने
कहाँ कुछ याद है पूछो जरा नूतन सदी को
किसी से जा के मिलना या बिछुड़ना है किसी से
यही तो सिलसिला जीवन में मिलता आदमी को
हमेशा के लिए कोई नहीं आता जमीं पर
खिला लूँ मुस्कुराकर ज़िन्दगी-दर-ज़िन्दगी को
ग़ज़ल हो गीत या कविता-कहानी की हो महफिल
अदब की इन नदी में हर खुशी मिलती सभी को
3.
जिन्हें ढूँढ़ती हैं निगाहें मेरी।
पहुँचती न उन तक सदायें मेरी।।
करूँ तो करूँ क्या मैं कुछ बोलिए
कुबूलें कभी तो दुआएं मेरी।
सफ़र ज़िन्दगी का सुहाना बने
अगर थाम लें आके बाँहें मेरी।
मुसलसल सताती रही मुफलिसी
कभी कम तो हों आपदाएं मेरी।
दबी थीं अभी तक दबीं रह गयीं
ज़मीं में सिसकती कलाएं मेरी।
मेरे दिन यकीनन फिरेंगे कभी
फलेंगी सभी कामनाएं मेरी।
4.
बचानेवाला तो सबसे बड़ा है।
वही ईश्वर वही सबका खुदा है।
बचेगी ज़िन्दगी तो फिर मिलेंगे
ये कोरोना न जाने क्या बला है।
मुसलसल है कहर ज़ारी अभी भी
नज़र आती नहीं कोई दवा है।
ज़माने भर की खुशियाँ खो गयी हैं
ये कैसा रोग आकर छू गया है।
बढ़ा इन्सान पर ख़तरा जियादा
फ़लक पे मौत की काली घटा है।
हसीं लगती नहीं कोई भी सूरत
निगोड़ा मास्क चेहरे पर लगा है।
5.
सजाओ मुहब्बत से घर साँवरी।
तुम्हें चाहिए सुख अगर साँवरी।।
तुम्हारी हँसी से विहँसता है घर
सुबह-शाम दिन-दोपहर साँवरी।
सरल रास्ते को न कोसा करो
बनाओ न मुश्किल सफ़र साँवरी।
मैं कब से खड़ा हूं तुम्हारे लिए
उठाकर तो देखो नज़र साँवरी।
किसी को डराओ न डर के रहो
बनो तुम हमेशा निडर साँवरी।
है जिसके भी दिल में अदावत भरी
फिरेगा वही दर-ब-दर साँवरी।
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संक्षिप्त परिचय
कैलाश झा किंकर
जन्मतिथि-12:01:1962
जन्म स्थान-पर्रा,बीरपुर, बेगूसराय(बिहार)ननिहाल में
पैतृक गाँव-हरिपुर, अलौली,खगड़िया(बिहार)
शिक्षा-एम.ए.,एल.एल.बी.
प्रकाशित कृतियां -संदेश,दरकती जमीन,कोई-कोई औरत,जत्ते चलै चलैने जा,ओकरा कोय सनकैने छै,तीनों भुवन की स्वामिनी, चलो पाठशाला,हम नदी की धार में,देखकर हैरान हैं सब,ज़िन्दगी के रंग हैं कई,ईमान बचाए रखते हैं,मुझको अपना बना के लूटेगा,जानै जौ कि जानै जाता ,दूरी न रहेगी,ग़ज़ल तो गाँव -घर तलक पसर गयी,छूट जाए वो दामन नहीं हूँ,जे होय छै से बढ़ियें होय छै,ऋतु सुरभि आदि (कविता, गीत,ग़ज़ल की हिन्दी और अंगिका भाषा में प्रकाशित किताबें)
संकलनों में-
1-ग़ज़ल दुष्यंत के बाद,भाग-2,नई दिल्ली
2-अपनी कविता अपनी व्यथा-कर्नाटक
3-ग़ज़ल-गंगा,गाजियाबाद
4-दोहा मंथन,नई दिल्ली
5-ग़ज़ल-कुम्भ-2018, नई दिल्ली
6-ग़ज़ल कुम्भ-2019,नई दिल्ली
7-भारत के बाल कथाकर, भाग-1,गाजियाबाद
8-सिलसिला,जौनपुर
9-दोहा-दर्शन,गाजियाबाद
10-चम्पा फूले डारे-डार,भागलपुर
11-गुनगुनाएँ गीत फिर से-भाग-1,नई दिल्ली
12-गुनगुनाएँ गीत फिर से,भाग-2,नई दिल्ली
13-गुनगुनाएँ गीत फिर से,भाग-3,नई दिल्ली
14-कुंडलिया कानन,राजस्थान
15-बूँद बूँद में सागर,नई दिल्ली
सम्पादन- महामूर्ख सम्मेलन स्मारिका, खगड़िया जिले के साहित्यकार, कात्यायनी ,अंगिका अनियतकालीन-9 अंक, स्वाधीनता संदेश, वार्षिक के 18 अंक, कौशिकी, त्रैमासिक के 71अंक
विशेष-लगभग दो सौ पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।आकाशवाणी और दूरदर्शन से रचनाएँ प्रसारित।पंजाबी,अंग्रेजी, मगही, और अंगिका में रचनाएँ अनुदित ।
सम्मान -बिहार,झाड़खंड,उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब,हरियाणा, दिल्ली,पश्चिम बंगाल, चेन्नई,कर्नाटक आदि प्रान्तों की साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित/पुरुस्कृत