विशिष्ट ग़ज़लकार :: अनिरुद्ध सिन्हा

मां

  • अनिरुद्ध सिन्हा

सच पूछो तो ममता की जंज़ीर चुरा ली है
मैंने माँ से माँ की ही तस्वीर चुरा ली है

कुछ बिखरी उम्मीदों ने तक़दीर चुरा ली है
जैसे रांझा से दुनिया ने हीर चुरा ली है

उसको ही सोचा है मैंने उसकी ही है चाह

कैसा ममता का आँचल है उसके सीने पर
पूरे घर की जिसमें माँ ने पीर चुरा ली है

दूर कहीं बैठा मैं अक्सर सोच रहा होता
किसने मेरी उल्फ़त की जागीर चुरा ली है

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