विशिष्ट ग़ज़लकार :: डॉ रोहिताश्व अस्थाना

1
दर्द का इतिहास है हिन्दी ग़ज़ल
एक शाश्वत प्यास है हिन्दी ग़ज़ल

प्रेम, मदिरा, रूप की बातें भरी
अब नहीं बकवास है हिन्दी ग़ज़ल

आदमी के साथ नंगे पांव ही
हो रही संत्रास है हिन्दी ग़ज़ल

आजकल की ज़िन्दगी का आइना
पेश करती खास है हिन्दी ग़ज़ल

गुनगुनाओं दोस्तों हर हाल में
आज दिल के पास है हिन्दी ग़ज़ल

काव्य की चर्चित विधा बन जाएगी
एक दृढ़ विश्वास है हिन्दी ग़ज़ल

2
आपके संग यदि जिया होता
साथ खुशियों का काफ़िला होता

2
पहले मिलते तो बात बन जाती
आसमां हमने छू लिया होता

उम्र भर पींजरे में तड़पा हूं
दर्द सबको पता नहीं होता

मौत यदि ज़िन्दगी को मिल जाती
लाश बनकर न यूं ही जिया होता

आंसुओं की जुबान का मतलब
काफ़िरों को नहीं पता होता

तुम जो आ जाते मौत पर मेरी
मर्सिया कितना खुश्नुमा होता

3
ज़िन्दगी भर मैं परेशान रहा
हर कदम मेरा इम्तिहान रहा

गैर तो गैर सही अपना भी
कोई मुझ पर न मेहरबान रहा

कैदियों की तरह जिया बेशक
यातनाओं भरा मकान रहा

किसको अपना कहें यहां बोलो
कोई दिल का न मेज़बान रहा

बोलना तक मना रहा मुझको
यार, मैं यूं न बेजुबान रहा

चन्द सांसें बुझी-बुझी बाकी
काफ़िला मेरा बेईमान रहा

उम्र भर प्यार के लिए तरसा
कोई मेरा न क़द्रदान रहा

4
तुम चली गई, तुम चली गई
देकर होठों पर प्यास नई

क्या-क्या उपमाएं दूं तुमको
अपमान तुम्हारे कई-कई

चुम्बन, आलिंग, अभिनंदन
की रात गई, अब भोर नई

मधुमय, मधुऋतु ही मांगी थी
आ गयी कहां से तप्त मई

आंखें-आंखों की भाषा में
जाने क्या तुमसे बात हुई

आ जाते यादों के आंसू
बिन मौसम के बरसात हुई

क्या कभी पार कर पाएंगे
प्रिय साथ तुम्हारे नदी नई

5
आग पानी के लगाकर देखिए
रेत का इक घर बनाकर देखिए

आंसुओं में आंख नम हो जाएगी
खूब हंसकर खिलखिलाकर देखिए

झेलनी हो दोस्त की यदि दुश्मनी
पास में अपने बसाकर देखिए

झूठ कहने से नहीं बच पाएंगे
आप गंगाजल उठाकर देखिए

डाक से जल्दी पहुंच जाएगा ख़त
इक कबूतर तो उड़ाकर देखिए

खोजना हो यदि विरोधाभास तो
इस ग़ज़ल को गुनगुनाकर देखिए

6
अक्सर ही सिर भन्नाता है
नहीं कोई भी सहलाता है

रंग-ढंग इनके ठीक नहीं हैं
जिनसे जन्मों का नाता है

पता नहीं कब क्या हो जाए
संशय से मन घबराता है

शांति, अहिंसा शब्दकोश में
इनसे अपना क्या नाता है

आजादी के काम न आया
देशप्रेम वह सिखलाता है

अजब-अनोखा जादूगर वह
शब्द जाल से भरमाता है

कैसा माली रखा आपने
उपवन खुद ही मुरझाता है

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डॉ रोहिताश्व अस्थाना जाने-माने ग़ज़लकार और कहानीकार हैं. ग़ज़ल के अलावा इनके कई उपन्यास प्रकाशित हैं. कई पुस्तकों का इन्होंने संपादन भी किया है.

सपंर्क : डॉ रोहिताश्व अस्थाना, बावनचुंगी चौराहा, हरदोई

 

 

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