विशिष्ट ग़ज़लकार :: पंकज सिद्धार्थ

ग़ज़ल

  • पंकज सिद्धार्थ 

माँ अपनी संतान के सर पर आँचल को फैलाती है
धूप में शीतल छाया देकर सुख उसको पहुँचाती है

आशीर्वाद के फूल निछावर उसपर करती रहती है
अपना खाना उसे खिलाकर खुद भूखी रह जाती है

दया का सागर माँ का हृदय धारा है उपकार भरा
दूध पिलाकर अपने रोते बच्चे को बहलाती है

हाय रे कलयुग तेरी गंगा कैसी उल्टी बहती है
जब संतान बड़ी होती है मां को दुख पहुँचाती है

माँ की सेवा में ऐ “पंकज” सौंप दो अपने जीवन को
माँ के चरणों की मिट्टी से स्वर्ग की खुशबू आती है

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