विशिष्ट ग़ज़लकार :: मधुकर वनमाली

मधुकर वनमाली की तीन ग़ज़लें

भारत

जनम यह देश की खातिर,हमारी जान है भारत
तिरंगा झुक नहीं सकता, हमारी शान है भारत

बड़ी मुश्किल से हो पाया,वतन आजाद यह अपना
शहादत हो गई कितनी, नहीं आसान है भारत

चले उस राह पर गांधी,तिलक ने जो दिखाया था
मिटाया राज गोरों का ,नया उत्थान है भारत

न हिन्दू से न मुस्लिम से,वतन इंसान से अपना
चमन खिलता गुलिस्तां है,भरा गुलदान है भारत

हिमालय का शिखर उंचा, मुकुट है शीश पर इसके
दिया कुदरत ने जो हँसकर, वही फरमान है भारत

बहा करती सदानीरा पहाड़ों से समंदर तक
ज़मीं को सींचती ऐसे , उपजता धान है भारत

कहीं कश्मीर का केसर , कहीं पर सेब चंबा के
अनूठा देश है मधुकर, हमें अभिमान है भारत

 

गुलिस्तां हमारा

गुलों का चमन है गुलिस्तां हमारा
नई रौशनी में चमकता सितारा

नहीं काम आया सितम दुश्मनों का
बहा झील में फिर अमन का शिकारा

दहर में कहीं पर नहीं मुल्क ऐसा
कभी दुश्मनों का बने जो सहारा

कि जन्नत यहां है मुहब्बत यहां है
न कश्मीर दूजा न भारत हमारा

बराबर सभी हैं कि आईन ऐसा
सभी लोग राजे जम्हूरी इदारा

अमीरी से कमतर नहीं मुफलिसी है
जरूरत जरा सी कि सस्ता गुजारा

बड़ी फौज लेकर जो आए सितमगर
यहीं के हुए सब इसी को सँवारा

पहाड़ों ने सर पे मुकुट रख दिया है
लहर सागरों की धुले पांव सारा

वतन हिन्द का यह अमन का धनी है
मगर चोट सहता नहीं यह दुबारा

 

तिरंगा आसमां में

हिन्द का भी इस जहां में दौर चलना चाहिए
अब तिरंगा आसमां में खूब उड़ना चाहिए

एक रुख से गुलसितां बन आज बागों सा हुआ
इस चमन में और भी अब फूल खिलना चाहिए

फेंक दो परचम हमारा आसमानी अर्श पर
रौशनी सूरज जरा दो यह चमकना चाहिए

जो वतन के काम ना आए भला क्या जिंदगी
काम की कैसी जवानी डूब मरना चाहिए

घोल कर नफ़रत फिजां में जो हमें लड़वायगा
यार ऐसे कातिलों से अब संभलना चाहिए

चल पड़ें हम सरहदों पर मौत जालिम की बनें
बाज की ज्यों टोलियां दुश्मन दहलना चाहिए

ऐ खुदा हम मांगते हैं आज तुमसे किस्मतें
अब वतन की राह में हीं दम निकलना चाहिए

गुरबतों की धूप में यह खून पानी ना बने
मुल्क का हर एक बच्चा शेर बनना चाहिए

या ख़ुदा खुशहालियाँ दें, दे अमन की रौशनी
यह गुलिस्तां है जो मधुकर गुल महकना चाहिए

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *