रमेश ‘कँवल’ की ग़ज़लें
1
मुंह पे गमछा बाँधने की ठान ली
गाँव ने दो गज़ की दूरी मान ली
आपदाओं में भी अवसर खोजना
यह कला भी देश ने पहचान ली
मास्क, सैनीटाइज़र बनने लगे
देश ने किट की चुनौती मान ली
ट्रेन मजदूरों की ख़ातिर चल पड़ीं
बच्चों ने घर पर सुखद मुस्कान ली
शहर से जब सावधानी हट गयी
दारु की बोतल ने काफ़ी जान ली
कुछ मसीहा जब गले मिलने लगे
मौत ने दहशत की चादर तान ली
थी क़यादत ‘मोदी’ की जग को ‘कँवल’
राह भारतवर्ष ने आसान ली
2
दाल रोटी और दवाई के सिवा क्या चाहिए
लॉक डाउन में मेरे भाई भला क्या चाहिए
शर्ट टाई पैंट पहने कोई अब फ़ुर्सत कहाँ
अब नहाना खाना सोना है सखा क्या चाहिए
एक बिस्तर दो बदन माज़ी के ख्वाबे-दिलनशीं
घर है, टीवी, फैन से बेहतर हवा क्या चाहिए
शाहराहों पर गली कूचों में बेहद शोर है
पागलों सी चीखती ज़ालिम कज़ा क्या चाहिए
घर में रहिये घर में ही महफूज़ है यह ज़िन्दगी
घर से बाहर मौत है कहिये वबा क्या चाहिए
औरतें छल बल से बेबस हो गईं दालान में
मर्द की मर्दानगी ख़ुश है मज़ा क्या चाहिए
हमसे तो पूछी नहीं है खैरियत उसने ‘कँवल’
आप से किसने कहा किसने कहा क्या चाहिए
3
मजदूरों के लिए कोई लारी न आएगी
बस रेल जैसी कोई सवारी न आएगी
कुछ फ़ासला हो, हाथ मिलाएं नहीं अगर
कोरोना नाम की महामारी न आएगी
शमसान क़ब्रगाह के मंज़र तबाह हैं
औलाद मय्यतों पे हमारी न आएगी
सरकारी एहतियात को लायें अमल में आप
तो देखिएगा मौत की आरी न आएगी
महफूज़ घर में आप रहेंगे अगर ‘कँवल’
दावा है मेरा आपकी बारी न आएगी
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परिचय : रमेश ‘कँवल’ की कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं.
संपर्क : 6, मंगलम विहार कॉलोनी, आरा गार्डन रोड, जगदेव पथ, पटना – 800014 मोबाइल 8789761287