विशिष्ट ग़ज़लकार : विकास

1
प्यार हमने किया छोड़िये छोड़िये
चाक दामन सिया छोड़िये छोड़िये

शोख़ पुरवईया दिल दुखाती रहीं
साथ उनके जिया छोड़िये छोड़िये

ये न समझो कि सागर से हम दूर थे
अश्क फिर भी पिया छोड़िये छोड़िये

साथ चलते हुए ख़ुद को देखा करें
आईना ले लिया छोड़िये छोड़िये

जिस्म से खेलने का उसे शौक था
ज़ख्म उसने दिया छोड़िये छोड़िये

2
मुहब्बत के नज़ारे सो रहे थे
मैं रोया जब सितारे सो रहे थे

दवा लेकर भी करता क्या भला मैं
मेरे तो ज़ख्म सारे सो रहे थे

जगा आया उन्हें अब थपकियों से
वो जो सपने कुँवारे सो रहे थे

सितम भी ढा गई थी तेज़ बारिश
सड़क के जब किनारे सो रहे थे

नहीं पहचान पाया उनको शायद
अंधेरों के सहारे सो रहे थे

3
हंसाया मुझे कल रुलाने से पहले
मेरी आरज़ू को मिटाने से पहले

बिछड़ जाने का दुख उन्हें भी मुझे भी
तमाशा हुआ दिल फ़साने से पहले

ग़मो की नजाकत का उन्हें क्या पता हो
कि जो तोड़ डाले बनाने से पहले

मुझे आइने का भरम दे रहे हैं
वही डर रहे हैं दिखाने से पहले

तुम्हें रंजो ग़म की ख़बर ही कहां थी
मेरी प्यास उमड़ी बुझाने से पहले

4
रेत पर नाम पहले लिखा आपने
बेवफ़ा मैं नहीं फिर कहा आपने

ये भरोसा रहे हैं अकेले नहीं
आइना हाथ में ले लिया आपने

मैंने ये भी सुना आप क़ातिल हुए
ज़ख्म कैसे किसी को दिया आपने

नींद मेरी है जो आपकी हो गई
क्या किया आपने क्या किया आपने

मेरी आँखों का पानी लहू बन गया
चुपके चुपके हमेशा छला आपने

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