दोस्तो! साहित्य में नौ रस होते हैं. सोचा भी नहीं था कि कभी दस वांँ भी रस होगा और उसका नाम होगा – वायरस.
कविताओं में सबसे ख़तरनाक रस होता है ‘वीभत्स’. मगर ‘कोरोना वायरस’ इससे भी डरावना है. कवि को इस पर भी कलम चलानी पड़ेगी और मेरे जैसा सुकुमार कवि (प्रेमिल गीतों का रचयिता) इस दुर्दांत विषय पर भी रचना लिखेगा, यह अकल्पनीय था.
बहरहाल, देश की राजधानी कह रही है, आकाशवाणी कह रही है और सावधानी कह रही है कि सिर्फ़ – बचिये. लापरवाही का इतिहास मत रचिये.
लीजिए, कठिन विषय पर सरल-सी रचना –
कोरोना क्या करेगा…
रक्खेंगे फ़ासला तो, कोरोना क्या करेगा
दिल में है हौसला तो, कोरोना क्या करेगा
घूंघट को काड़ियेगा, मत मुँह उघाड़ियेगा
ग़र है वो मनचला तो, कोरोना क्या करेगा
बैठेगी दूर कमला, सिमटेगी घर में विमला
ठिठकेगी निर्मला तो, कोरोना क्या करेगा
दस बार उठके चलिये, साबुन से हाथ मलिये
फिर लाख है बला तो, कोरोना क्या करेगा
नुस्खे बहुत हैं सस्ते,…. बस! दूर से नमस्ते
यह सीख ली कला तो, कोरोना क्या करेगा
माना कि आँख बरसे, मिलने को प्राण तरसे
जब दूर है गला तो, कोरोना क्या करेगा
सड़कों पे घूमने का, मस्ती में झूमने का
छोड़ोगे चोचला तो, कोरोना क्या करेगा
चौखट पे होगा ताला, कोई न मिलने वाला
जब ख़त्म मामला तो, कोरोना क्या करेगा
हिम्मत की कुल्हाड़ी है
घटती रौनक, हर दिन बढ़ती दाढ़ी है
चेहरा क्या है? पूरी आँगनबाड़ी है
बैठे – बैठे कितने दिन तक खाएंगे
अर्थ – व्यवस्था पूरी टेढ़ी – आड़ी है
इसीलिए तो अपना देश अजूबा है
साँसें गायब, मगर चल रही नाड़ी है
धीरे – धीरे ही मंजिल तक पहुँचेगी
नीचे कुत्ता, ऊपर – ऊपर गाड़ी है
होते – होते ब्याह बिचारे ठिठक गए
बनती-बनती ठहर गई अब लाड़ी है
इधर ‘नाइटी’ के दिन में भी जलवे हैं
अलमारी में उधर सिसकती साड़ी है
भैंस हमारी भी क्या जच्चा से कम है
कोरोना के बीच जनी इक पाड़ी है
सही वक़्त आने दो फिर बतलाएंगे
बुरे वक़्त की चादर कैसे फाड़ी है
नर-भक्षी है समय, इसे हम काटेंगे
पास हमारे हिम्मत की कुल्हाड़ी है
झाग साबुन में
गा रहे सब एक ही धुन में
क्या मजे हैं लॉक डाउन में
हाथ धोए इस कदर मलकर
आ गए हैं झाग साबुन में
स्वाद अबकी खूब आएगा
इन करोंदे.. और जामुन में
साड़ियों के लद गये हैं दिन
सब सुखी हैं आज गाउन में
गोरियांँ….. गोरी हुईं ऐसी
रंग होगा दंग फागुन में
वायरस में कौन करता है
प्यार वाली बात ‘नाउन’ में
मत डरा ऐ यार! कोरोना
सिर्फ़ आया खून दातुन में
कौन तुमको देखने वाला
ब्लैक में हो या कि ब्राउन में
फर्क़ तो बिल्कुल नहीं दिखता
आपमें औ’ प्याज-लहसुन में
वक़्त ने…. जंजीर बांँधी है
पायलों की आज रुनझुन में
रम्भाएं बदल गईं
सोना-उठना बदल गया है, दिनचर्याएंँ बदल गईं
जितने गले लिपटते थे सबकी मुद्राएँ बदल गईं
पहले बहुत शिकायत थी हम उनके द्वार नहीं जाते
अब कहते स्वागत करने की सभी प्रथाएंँ बदल गईं
हाथ मिलाना, पास बिठाना, गले लगाना सब गायब
कठिनाई का युग है इसमें प्रेम-कथाएंँ बदल गईं
सोओ-जागो, खेलो-कूदो, खाओ-पीओ, मौज करो
चाँद – सितारे – सूरज सबकी परम्पराएँ बदल गईं
पूनम को छत पर पहुँचे तो सारी रात अँधेरी थी
हँसा पड़ोसी, फिर बोला सर! चंद्रकलाएँ बदल गईं
मंचों पर तो हँसी-ठिठौली और चुटकुले कविता थे
“लाइव” पर आते ही देखो सभी विधाएँ बदल गईं
सबके ओठों पर चौपाई, भगवद्गीता गूँज रही
एक साथ उर्वशी, मेनका, सब रम्भाएंँ बदल गईं
सरस्वती-पुत्रों के घर में रामराज्य की झलक मिली
रामदुलारी सीताओं में….जनकसुताएँ बदल गईं
कितनों के अच्छे दिन आए, कितनों के अभिशाप कटे
कहिये, कई अहिल्याओं में, आज शिलाएंँ बदल गईं
हमने देखा झाँक-झाँक कर जब पत्नी की आँखों में
हँसकर बोलीं अब तो घर की, सभी फिजांएंँ बदल गईं
ऑनलाइन पर
दृश्य अब प्यारे मिलेंगे, ऑनलाइन पर
वक़्त के मारे मिलेंगे, ऑनलाइन पर
मंच गायब, अब लिफाफे भी नदारद हैं
मुफ़्त बेचारे मिलेंगे, ऑनलाइन पर
आस्मां! तेरा समूचा हाल खाली है
चाँद औ’ तारे मिलेंगे, ऑनलाइन पर
फ़िक्र मत करिये ज़रा भी घर बसाने की
ब्याहता – क्वांरे मिलेंगे, ऑनलाइन पर
ज़िंदगी! तू तो पड़ी है लॉक डाउन में
दर्द सब खारे मिलेंगे, ऑनलाइन पर
क्या करें परिचारिकाएंँ अब विमानों की
पायलट सारे मिलेंगे, ऑनलाइन पर
मंच पर जितने भी दारासिंह बनते थे
शान से हारे मिलेंगे, ऑनलाइन पर
आप मछली तो बनें पहले सुनहरी-सी
ढेर से …चारे मिलेंगे, ऑनलाइन पर
क्या करेंगे आप दोनों पार्क में जाकर
भाई! फव्वारे मिलेंगे, ऑनलाइन पर
जाल फैलाते दिखे थे ताल में जो कल
सारे मछुआरे मिलेंगे, ऑनलाइन पर
शुक्रिया दिल से तुम्हारा मित्र! कोरोना
दिख रहे असली सितारे, ऑनलाइन पर
…प्यार सूझा है
ये अचानक कौन सा व्यवहार सूझा है
लॉक डाउन में तुम्हें भी प्यार सूझा है
राम-सीता देख लेता काश मंदिर में
चोर को केवल अकेला हार सूझा है
डॉक्टर थे, दुष्ट को वे मारते कैसे
सिर्फ़ सेवा के लिए बीमार सूझा है
योजना थी घूमने को दूर निकलेंगे
व्यस्त रहने को तुम्हें इतवार सूझा है
कीजिए उपचार उसका जो दुआएँ दे
आपको इसके लिए गद्दार सूझा है
फैसला है देश को मिलकर बचाएंगे
मित्र को इसमें भी हाहाकार सूझा है
कारखाना खोलिए,फिर पूजिये लक्ष्मी
मंच पर यह कौन-सा व्यापार सूझा है
बाँह में भरकर,अचानक चूम लूँ तुमको
दर्द का मुझको यही उपचार सूझा है
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परिचय : दिनेश प्रभात गीत और ग़ज़ल में चर्चित नाम है. ये गीत गागर पत्रिका का संपादन भी कर रहे हैं. भोपाल में रहते हैँ