लहराती हसीं जुल्फ़ें काजल की धार से
कैसे बचेगा कोई तिरछी कटार से
पतली है कमर तेरी हंसों -सी चाल है
खुशबू बदन से आए जैसे बहार से
काली घटा में ऐसी छिटकी है चाँदनी
निखरी है सारी दुनिया तेरे ही प्यार से
हैरानगी है सबको जन्नत की हूर तुम
जाती हो भला कब-कब मिलने को यार से
वह जीत गयी है यहाँ उल्फ़त के जंग में
ग़म है मगर उसे भी “किंकर “की हार से