खास कलम : गरिमा सक्सेना

रक्षाबंधन

बहन-भ्रात के प्यार का, यह अनुपम त्योहार।
रक्षाबंधन जोड़ता, दिल से दिल का तार।।

कच्चा धागा प्रेम का, बाँध भ्रात के हाथ।
माँगे भगिनी भ्रात से, जन्म-जन्म का साथ।।

रोली, मस्तक पर लगा, राखी बाँधे हाथ।
बहन दुआयें दे रही, चूम भ्रात का माथ।।

बेटी को नित कोख में, मार रहा संसार।
ऐसे में कैसे मने, राखी का त्योहार।।

नवबेलों ने वृक्ष के, राखी बांधी हाथ।
हर आँधी तूफान में, भय्या देना साथ।।

चूम लिफाफे में रखा, राखी, रोली प्यार।
यूँ बहना ने भ्रात से, जोड़े दिल के तार।।

सज-धज कर बहना चली, भय्या के घर आज।
राखी के त्योहार पर, बढ़ा खुशी का ब्याज।।

आओ बाँधें, राखियाँ, हम धर्मों के द्वार।
ताकि धर्म रक्षक बनें, नहीं बनें तलवार ।।
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परिचय : चर्चित रचनाकार, गीत व दोहा के कई संग्रह प्रकाशित
सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन, कवर डिजायनिंग, चित्रकारी
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