खास कलम : लकी निमेष

1
अगर जो गाँव को छोडूँ तो बस्ती रूठ जाती है
अगर मैं शहर ना जाऊँ तरक्की रूठ जाती है

मुहब्बत में शिकायत का अलग अपना मज़ा देखा
मुझे जब देर होती है तो खिड़की रूठ जाती है

कि बूढे बाप की मज़बूरियों से क्या उसे मतलब
ज़रा सा कम मिले सामान लड़की रूठ जाती है

नही आसान लोगो दुश्मनी ऐसे नही निभती
अगर खामोश बैठूगां तो बर्छी रूठ जाती है

किसे अच्छा लगेगा यूँ ग़मो में मुब्तिला होना
खुशी का क्या करू साहिब ये जल्दी रूठ जाती है

परेशां हूँ बहुत इस ज़िन्दगी से क्या करू लेकिन
लकी’ जो डूबना चाहूँ तो कश्ती रूठ जाती है

2
बश्तियां क्यो जल रही है शहर में
बारिशें होने लगी दोपहर में

देख अपने हाथ से ही मार दे
अब मज़ा कुछ भी नही है ज़हर में

और कोई टोटका तू आज़मा
कुछ नही रख्खा तेरे अब सहर में

दहशतो के सायें तारी हो गयें
कब तलक ज़िन्दा रहेगें कहर में

क्या ज़रूरत है बड़े तूफान की
डूबती है नाव बस इक लहर में

राह कब से देखता है ये लकी’
मौत तू आजा किसी भी पहर में

3
मुझसे मेरा हाल न ऐसे पूँछा कर
आकर मेरे पास ज़रा सा बैठा कर

खुश होती है अपनी तारीफे सुनके
मेरे बारे में भी थोड़ा सोचा कर

सोंच सकू मै दुनियादारी की बातें
एे चारागर कुछ तो मुझको अच्छा कर

ज़िन्दा कैसे रह पाऊगाँ ऐसे मै
देख तरस खाले तू ग़म को आधा कर

या तो कह दे साफ नही कर सकता है
या फिर जैसा चाहूँ बिल्कुल वैसा कर

बेगानो के जैसे रहता है घर में
अपना बनके आना है तो आया कर

4
बहुत पछतायें तुझसे रूठके हम
रहेगें खुश तुझे अब छोडके हम

हमें आवाज ना दे ठीक है सब
करें भी क्या भला अब लौटके हम

ज़ुदा होने का हमको शौक़ ना था
अलग तुझसे हुए कुछ सोचके हम

नही अब शौक़ तेरे दिल में क्या है
बहुत ही थक गये है पूँछके हम

किसी भी काम का रिश्ता नही था
चले आये वो रिश्ता तोड़के हम

उसे क्या शौक़ हमको प्यार करता
हुए बदनाम उसको चाहके हम

5
कि जिससे प्यार होता है उसे सोचा नही जाता
बहुत चाहा मगर हमसे कभी रूठा नही जाता

उसे ग़र प्यार हमसे है दिखाई हर जगह देगा
किया है क्या हमारे साथ ये पूँछा नही जाता

कि तेरा शौक़ है दिल को चुराके चैन से सोना
मगर हमसे किसी का ख्वाब यूँ लूटा नही जाता

मुहब्बत में मुहब्बत का सलीका सीख लेना तू
कि इस राह- ए- मुहब्बत में कभी पलटा नही जाता

गलत है जब मरेगें साथ में कुछ भी नही होगा
किसी की याद है दिल में कोई तन्हा नही जाता

सभी को शौक़ है करले कभी दीदार हूरों का
कि ज़न्नत में लकी कोई मगर ज़िन्दा नही जाता
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परिचय : लकी निमेष, रौजा- जलालपुर
ग्रैटर नौएडा, गौतम बुद्ध नगर

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