1
सफर में रहनुमाई चाहता हूँ
कहाँ तुमसे जुदाई चाहता हूँ
मैं ज़िम्मेदार हूँ अपने किये का
न उसकी मैं बधाई चाहता हूँ
ये कैसी ज़िद मेरे हिस्से में आई
मैं अपनों से विदाई चाहता हूँ
भटक जाओ न राहों में कभी तुम
तुम्हारी मैं कलाई चाहता हूँ
दिये हैं ज़ख्म जिसने ढेर सारे
उसी से मैं दवाई चाहता हूँ
2
अपने हिस्से में प्यार रखते हैं
लोग चेहरे हज़ार रखते हैं
मुस्कुराकर उसे ही दे देते
हम कहां ग़म उधार रखते हैं
डर गए हैं यहां सभी इतने
पास अपने कटार रखते हैं
हम वो दीपक नहीं जो बुझ जाएँ
आंधियों से करार रखते हैं
वक़्त के साथ जो नही चलते
दिल में गर्दो गुबार रखते हैं
3
तुमसे ज्यादा पागल हैं नहीं
इसलिए पत्थर से घायल हैं नहीं
यूँ पटकिये पांव अपना भी नहीं
आपके पावों के पायल हैं नहीं
चन्द सिक्कों की तरह मत बांधिये
आपके हम शोख आँचल हैं नहीं
तोड़ दे जो सरहदों की रूह को
हम कोई ऐसे मिसाइल हैं नहीं
अब सितारे चाँद जुगनू आ गए
आसमां पे और बादल हैं नहीं
…………………………………….
सपंर्क – गुलजार पोखर, मुंगेर